आतंकवाद पर अंकुश के लिए ‘एक दिमाग, एक दृष्टिकोण’ हो

Edited By Updated: 26 Nov, 2022 04:45 AM

there should be  one mind one approach  to curb terrorism

भारत के 2 शीर्ष नेताओं ने 2 प्रमुख चिंताओं को राष्ट्रीय फोकस में ला दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि जहां कुछ देश ‘अपनी विदेश नीति के हिस्से के रूप में’ आतंकवाद का समर्थन करते

भारत के 2 शीर्ष नेताओं ने 2 प्रमुख चिंताओं को राष्ट्रीय फोकस में ला दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि जहां कुछ देश ‘अपनी विदेश नीति के हिस्से के रूप में’ आतंकवाद का समर्थन करते हैं वहीं अन्य ‘आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई को रोक कर’ ऐसा करते हैं। इस संदर्भ में मोदी ने कहा है कि ऐसे देशों पर एक लागत लगाई जानी चाहिए। मगर विवादास्पद बिंदू है कि यह कैसे संभव है? यह एक आसान लक्ष्य नहीं है। हाल ही में नई दिल्ली में हुए एक सम्मेलन में प्रधानमंत्री के भाषण का शीर्षक ‘नो मनी फॉर टैरर’ था, जिसमें 72 देशों और 15 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने भाग लिया था। 

आतंकवाद के प्रति समान शून्य सहनशीलता दृष्टिकोण का आह्वान करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कुछ देश आतंकी समूहों को राजनीतिक, वैचारिक और वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं और कभी-कभी इसके खिलाफ कार्रवाई को रोकने के लिए आतंकवाद के समर्थन में अप्रत्यक्ष व्यवस्था करते हैं। आतंकवाद का समर्थन करने वाले दो प्रमुख देश चीन और पाकिस्तान हैं। टैरर फंडिंग पर हुए सम्मेलन में ये दोनों देश नदारद थे। 

नरेंद्र मोदी ने सही ही कहा था कि देशों को मिलकर कट्टरवाद और उग्रवाद की समस्या का समाधान करना चाहिए। और कहा कि जो कोई भी कट्टरता का समर्थन करता है उसके लिए किसी भी देश में कोई स्थान नहीं होना चाहिए। इस गिनती पर मोदी के प्रस्ताव पर कोई भी विवाद नहीं उठा सकता लेकिन अफसोस की बात यह है कि वैश्विक भू-राजनीति अब तर्कसंगत आधार पर संचालित नहीं होती है। पहियों के भीतर पहिए हमेशा होते हैं और कोई भी निश्चित नहीं हो सकता कि कौन-सा पहिया किस देश और  किस उद्देश्य के लिए काम करता है। गृहमंत्री अमित शाह ने आतंकी फंडिंग के खिलाफ वैश्विक प्रयासों को अधिक प्रभावी ढंग से समन्वित करने के लिए भारत में एक स्थायी सचिवालय स्थापित करने का सुझाव दिया है। 

अमित शाह ने आतंकी वित्त पोषण से लडऩे के लिए ‘5 स्तंभों’ की रणनीति का सुझाव दिया है। उनका मानना है कि आतंकी वित्त पोषण आतंकवाद से भी ज्यादा खतरनाक है। शाह ने वैश्विक समुदाय से आतंकवाद के ‘डायनामाइट से मैटावर्स’  और ‘ए.के. 47 से आभासी सम्पत्ति’ में परिवर्तन पर ध्यान देने को कहा है। आतंक पर नकेल कसने के लिए ‘एक दिमाग, एक दृष्टिकोण’ का आह्वान करते हुए केंद्रीय गृहमंत्री कहते हैं कि, ‘‘हम मानते हैं कि आतंकवाद का खतरा किसी भी धर्म, राष्ट्रीयता या समूह से जुड़ा नहीं होना चाहिए।’’ हम इसे स्वीकार करें या न करें, आतंकवाद पाकिस्तान में उन्हीं ताकतों के समर्थन से पनप रहा है जिसमें भारत जैसे शांति प्रिय लोकतंत्र सबसे ज्यादा पीड़ित हैं। छद्म युद्ध के बीच जम्मू-कश्मीर और देश के कुछ अन्य भागों में हुई बेगुनाहों की हत्या पर घडिय़ाली आंसू भी नहीं बहाए गए हैं। 

जो महत्वपूर्ण बिंदू सामने आता है वह यह है कि जिस तरह से अमरीका ने आतंक की बुरी ताकतों की मदद करने और उन्हें उकसाने के लिए अपनी ताकत के साधनों का इस्तेमाल किया है यह वास्तव में एक महान विरोधाभास है। यहां सवाल यह नहीं है कि कौन अमरीकी विरोधी या कौन समर्थक मुद्राएं बना रहा है। वास्तव में मुद्दे प्रकृति में मौलिक हैं जिसके सही उत्तर पर मानव सभ्यता निहित है। 

शायद अमरीकियों को उन भारतीयों से कुछ सबक सीखना होगा जिन्होंने आतंकवाद के साथ जीना सीख लिया है। शायद अमरीका को आतंकवाद से त्रस्त देशों की कठोर वास्तविकताओं के सामने आने में अभी समय लगेगा। यह निश्चित रूप से एक मेहनती कवायद है क्योंकि स्वतंत्रता और स्वाधीनता का अर्थ भी आधिकारिक तौर पर सुरक्षा मजबूरियों के रूप में कहे जाने वाले नाम में बदलाव के दौर से गुजर रहा है। यह स्पष्ट रूप से बदल जाएगा। यहां तक कि अमरीकी लोगों की जीवनशैली भी काफी हद तक बदल जाएगी। 

अमरीकी बुद्धिजीवियों के एक वर्ग के लिए ङ्क्षचता की बात यह है कि क्या अमरीका आने वाले वर्षों में स्वतंत्रता, मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक मानकों के रक्षक के रूप में अपनी वैश्विक प्रधानता को बनाए रखने में सक्षम होगा? आने वाला समय निश्चित रूप से जमीनी हकीकत के साथ कष्टदायक समायोजन की मांग करेगा। बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि अमरीकी नेतृत्व अपने घरेलू और वैश्विक मामलों की संचालन कैसे करता है।

बेशक वैश्विक आतंकवाद से लडऩे में अमरीका का अपना एक एजैंडा है। यह सच है कि वाशिंगटन वैश्विक अभियान का एक बहुत बड़ा हिस्सा है, फिर भी अमरीका की रणनीतियों और भू-राजनीतिक व तेल हितों के साथ आतंकवाद पर भारतीय दृष्टिकोण का शायद ही कोई एकीकरण है। जाहिर-सी बात है कि आतंकवाद पर भारतीय वैश्विक दृष्टिकोण अमरीकी गणनाओं और रणनीतियों से काफी अलग है। 

जम्मू-कश्मीर और भारत के अन्य हिस्सों में इस्लामाबाद प्रायोजित आतंकवाद के हाथों वर्षों तक एक साथ पीड़ित रहने के बाद भारतीय दृष्टिकोण मूल रूप से पाकिस्तान केंद्रित है। खैर, आतंकवाद तो आतंकवाद है। जन-जागरूकता पैदा करने के लिए इसकी ङ्क्षनदा करनी जरूरी होगी। अफसोस की बात है कि सार्वजनिक जीवन में सिद्धांतों और मूल्यों से रहित नेता जटिल राजनीति के बीच मुसलमानों को संदेह के दुष्चक्र में घसीट रहे हैं। उन्हें राष्ट्रीय जीवन की मुख्यधारा में लाने के लिए इसका विरोध और जांच करनी होगी। भारतीय मुसलमानों को पाकिस्तान के चश्मे से देखना एक भारी भूल होगी।-हरि जयसिंह
     

IPL
Royal Challengers Bengaluru

190/9

20.0

Punjab Kings

184/7

20.0

Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

RR 9.50
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!