चुनावी जंग में न्यायपालिका पर अनुचित दबाव

Edited By ,Updated: 02 Apr, 2024 05:23 AM

undue pressure on judiciary in electoral battle

निष्पक्ष चुनावों के लिए ई.डी., सी.बी.आई. और इंकम टैक्स की कार्रवाई और गिरफ्तारी पर रोक लगाने के लिए विपक्षी नेताओं ने चुनाव आयोग से एक्शन लेने की मांग की है लेकिन नेताओं के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई को रोकने के लिए चुनाव आयोग के पास कोई कानूनी अधिकार...

निष्पक्ष चुनावों के लिए ई.डी., सी.बी.आई. और इंकम टैक्स की कार्रवाई और गिरफ्तारी पर रोक लगाने के लिए विपक्षी नेताओं ने चुनाव आयोग से एक्शन लेने की मांग की है लेकिन नेताओं के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई को रोकने के लिए चुनाव आयोग के पास कोई कानूनी अधिकार नहीं हैं। सरकारी एजैंसियों की कार्रवाई के खिलाफ विपक्षी नेताओं को अदालत से जल्द राहत नहीं मिले, इसके लिए दूसरी तरह से आक्रामक दबाव बनाया जा रहा है। 

600 वकीलों ने चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर कहा है कि एक खास समूह राजनीतिक एजैंडे के तहत न्यायपालिका पर अनुचित दबाव बना रहा है। पत्र के अनुसार 2019 के आम चुनावों से पहले भी न्यायपालिका पर दबाव बनाने की कोशिश की गई थी। सोशल मीडिया में इस चिट्ठी को प्रधानमंत्री मोदी के शेयर करने के बाद विवाद और सरगर्मी बढ़ गई है। बंगलादेश युद्ध के बाद इंदिरा गांधी की प्रचण्ड बहुमत वाली सरकार ने सभी संवैधानिक संस्थानों के साथ न्यायपालिका पर कब्जे की शुरुआत की थी। 

तीन दशक बाद 2014 में मोदी सरकार को विशाल बहुमत मिला। पिछले 10 साल की अनेक घटनाओं से साफ है कि पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ से न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर कुठाराघात हो रहा है। 2018 में सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने प्रैस कांफ्रैंस करके चीफ जस्टिस के खिलाफ अनेक आरोप लगाए थे। उनमें से जस्टिस रंजन गोगोई चीफ जस्टिस बने और रिटायरमैंट के बाद उन्हें राज्यसभा सदस्यता मिली। उसके बाद विपक्षी दलों ने तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग लाने का असफल प्रयास किया। सनद रहे कि संविधान लागू होने के 74 साल बाद अभी तक किसी भी भ्रष्ट जज को महाभियोग से हटाया नहीं गया है। 

सुप्रीम कोर्ट में याचिका निरस्त : आजादी की लड़ाई में गांधी, नेहरू, पटेल और डॉ. अम्बेडकर जैसे वकीलों का बड़ा योगदान था। विधानसभा और संसद में वकीलों की मौजूदगी से संविधान को मजबूती मिलती है, इसलिए राजनीति में वकीलों की दखलअंदाजी अच्छी है लेकिन अदालत में राजनीति से संविधान कमजोर होता है। बंगाल की घटनाओं से साफ है कि वकील और जज कानून की बजाय सियासत के एजैंडे से संचालित हो रहे हैं। अदालतों में सत्ता या विपक्ष की तरफ से सियासी बंदूक चलाना गलत और गैर-कानूनी है। 

पिछले साल सूरत की अदालत ने मानहानि के मामले में राहुल गांधी को 2 साल की सजा सुनाई थी। उसके बाद 14 पार्टियों के नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट से जांच एजैंसियों की मनमानी पर रोक लगाने की मांग की थी। विपक्षी नेताओं के अनुसार 2004 से 2014 के बीच सी.बी.आई. ने 72 मामले दर्ज किए, जिनमें 43 मामले विपक्षी नेताओं के खिलाफ थे लेकिन 2014 के बाद दर्ज 124 मामलों में 118 मामले विपक्षी नेताओं के खिलाफ हैं। चीफ जस्टिस चन्द्रचूड़ ने कहा कि नेताओं को वी.आई.पी. का खास दर्जा नहीं दिया जा सकता। ई.डी. और सी.बी.आई. की कार्रवाई के लिए अगर कोई गाइडलाइन बनाई गई तो उसके खतरनाक अंजाम हो सकते हैं। जजों के रुख को देखते हुए याचिका वापस ले ली गई। 

कानून के अनुसार अपराधी व्यक्ति अन्य व्यक्ति के अपराध के आधार पर खुद के दोषमुक्त होने का दावा नहीं कर सकता। संविधान में संसद, सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच शक्तियों का विभाजन है, इसलिए अदालतें हर मर्ज की दवा नहीं हो सकतीं। संविधान के उस पवित्र सिद्धांत के अनुसार ही चीफ जस्टिस चन्द्रचूड़ ने पिछले साल विपक्षी दलों की याचिका को निरस्त करते हुए सही कहा था कि ऐसे मामलों में न्यायालय की बजाय नेताओं को जनता की अदालत में पक्ष रखना चाहिए। उस याचिका को दायर करने में शामिल 14 में से 3 पार्टियां तेलुगू देशम, जे.डी. (यू) और जे.डी. (एस) अब एन.डी.ए. में शामिल हो गई हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने भ्रष्टाचार को खत्म करने की गारंटी देते हुए भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ कार्रवाई जारी रखने का बयान दिया है, लेकिन विपक्ष के अनुसार, अधिकांश भ्रष्ट नेताओं को एन.डी.ए. में शामिल होने पर क्लीन चिट मिल रही है। 

सीनियर वकीलों का अनुचित वर्चस्व : सुप्रीम कोर्ट की जज नागरत्ना ने नोटबंदी के साथ राज्यपालों की भूमिका की आलोचना की है। जस्टिस गवई के बयानों से भी लोगों को यह हौसला मिलता है कि सुप्रीम कोर्ट सफलतापूर्वक संविधान के संरक्षक की भूमिका निभा रहा है लेकिन वकीलों के आरोप-प्रत्यारोपों के बीच न्यायिक बिरादरी को कई पहलुओं पर आत्मचिंतन की जरूरत है। कॉलेजियम हो या एन.जे.ए.सी., दोनों तरीकों से अच्छे और बुरे सभी तरह के जज नियुक्त हुए हैं। वकालत के पेशे में सेवा के साथ गुणवत्ता का प्रभाव बढ़े तो न्यायपालिका में बेहतर जजों की नियुक्ति होगी। संविधान में समानता के सिद्धांत को सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है लेकिन सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ के सीनियर वकील चेहरों के वर्चस्व से अनुकूल फैसले लेने की जुगत में संविधान की धज्जियां उड़ाते हैं। इससे योग्य वकीलों का मनोबल टूटने के साथ न्यायिक अनुशासन भंग होता है। 

पुलिस राज्य सरकारों के इशारे पर, तो ई.डी., सी.बी.आई. और इंकम टैक्स केन्द्र सरकार के इशारे पर काम कर रही हैं। लेकिन विपक्षी दल सत्ता में आने पर इन एजैंसियों के दुरुपयोग को रोकने की बजाय, भाजपा को सबक सिखाने की बात कर रहे हैं। इससे सत्ता बदलने के बावजूद बेहतर बदलाव की उम्मीद खत्म हो रही है। मुख्तार अंसारी की मौत के बाद पंजाब के जेलमंत्री का वीडियो वायरल है, जिसमें तत्कालीन कांग्रेस की सरकार पर माफिया को संरक्षण का आरोप है। कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री अब भाजपा में शामिल हो गए हैं और ‘आप’ अब ‘इंडिया’ गठजोड़ का हिस्सा है। 

फर्जी मुकद्दमे के आधार पर मुख्तार को पंजाब की जेल में रखने के खेल में नेताओं के साथ वकीलों और जजों की बड़ी भूमिका थी। महाराष्ट्र में प्रफुल्ल पटेल को सी.बी.आई. की क्लीन चिट पर हल्ला है लेकिन कुछ साल पहले वह विपक्ष के ‘इंडिया’ गठजोड़ का हिस्सा थे। इसलिए लिस्टिंग, सुनवाई और बेल आदि मामलों में नियमों की एकरूपता के लिए वकीलों को प्रयास करना चाहिए, सीनियर वकीलों के रसूख और चेहरे की बजाय कानून के तहत  सुनवाई हो तो अदालतों में समानता के साथ आम लोगों को जल्द न्याय मिलेगा।-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट) 

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