विकास दुबे अभी ‘मरा नहीं’, शायद कभी मरेगा भी नहीं (2)

Edited By ,Updated: 21 Jul, 2020 02:27 AM

vikas dubey is not yet dead may not ever die 2

विपक्ष की राजनीति के बाद धीरे-धीरे जनसंघ और आज भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई और धीरे-धीरे वही हो रहा है जिसकी आशंका लगभग 68 वर्ष पहले गुरु गोलवलकर जी ने व्यक्त की थी। पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी ने भाजपा को एक वैचारिक और नैतिक आधार दिया। एकात्मक...

विपक्ष की राजनीति के बाद धीरे-धीरे जनसंघ और आज भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई और धीरे-धीरे वही हो रहा है जिसकी आशंका लगभग 68 वर्ष पहले गुरु गोलवलकर जी ने व्यक्त की थी। पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी ने भाजपा को एक वैचारिक और नैतिक आधार दिया। एकात्मक मानववाद का मंत्र दिया। उनसे मिलने और बात करने का कई बार मौका मिला। मैं अम्बाला में प्रचारक था। जनसंघ के एक कार्यक्रम में वे आए। कार्यक्रम में तो मैं नहीं जा सकता था। पार्टी ने चाय पर कुछ नागरिकों और पत्रकारों को बुलाया। मैं भी गया। बातचीत में एक बुद्धिजीवी ने प्रश्र किया कि आप कांग्रेस के भ्रष्टाचार की बात करते हैं परन्तु यदि जनसंघ में भ्रष्टाचार आ गया तो आप क्या करेंगे। उपाध्याय जी ने बड़ी दृढ़ता से कहा-‘‘ऐसा कभी नहीं हो सकता।’’ 

उन्होंने फिर कहा कल्पना करिए यदि हो जाए तो क्या करेंगे। उपाध्याय जी ने फिर कहा कि जनसंघ का मार्गदर्शन संघ के स्वयं सेवक कर रहे हैं। इसलिए ऐसा कभी नहीं हो सकता। वे सज्जन अड़े रहे और कहने लगे यदि हो ही जाए तो आप क्या करेंगे। पं. दीन दयाल उपाध्याय जी ने बड़े विश्वास और क्रोध से कहा, ‘‘यदि ऐसा हो ही जाए तो हम पार्टी को भंग कर देंगे और फिर से नई पार्टी बनाएंगे।’’ 

भारतीय जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी ने इन आदर्शों को सुरक्षित रखा। मुझे याद है एक बार हिमाचल में भाजपा के 29 और कांग्रेस के 31 विधायक जीते-कुछ निर्दलीय विधायक तो बिकने को तैयार थे-मुझ पर दबाव डाला जा रहा था कि जैसे-तैसे सरकार बनाओ। मैंने कहा कि विधायकों को खरीद कर सरकार नहीं बनाऊंगा। मैं कहा करता था कि मैं जिंदा मांस का व्यापारी नहीं हूं। विधायक मेरे विरुद्ध हो गए। मैं चिंतित हुआ। अटल जी पठानकोट आए। मेरे मित्र एल.आर. वासुदेवा जी के घर ठहरे थे। जाकर उनसे मिला और सारी बात कही। कहने लगे-तुम्हारी बात तो ठीक है पर सब जगह से दबाव भी है।

अपनी बात करके वापस आया। मुझ पर और दबाव बढ़ा। मैंने अटल जी को फोन किया कि मैं नेता पद से त्यागपत्र दे रहा हूं। नया नेता चुनिए और सरकार बनाइए। अटल जी जयपुर में थे, वहीं से वक्तव्य दिया,‘‘हिमाचल की जनता ने हमें विपक्ष में रहने का आदेश दिया है। हम दल-बदल से सरकार नहीं बनाएंगे।’’ मुझे बड़ी राहत मिली। 29 विधायकों के साथ हमने विपक्ष की शानदार भूमिका अदा की। एक विचार आया कि 29 विधायकों को लेकर पूरे प्रदेश का भ्रमण किया जाए। इतने बड़े कार्यक्रम के लिए साधनों की आवश्यकता थी। 

मेरे परम मित्र विधायक हरि नारायण सिंह सैनी जी आगे आए, सारी व्यवस्था की। पूरे प्रदेश में स्वागत हुआ। एक जगह मैंने जनसभा में भावुक होकर कहा, ‘‘यदि आपने पांच सीटें और दी होतीं तो आज हम आपको किसी और रूप में मिलते।’’ लोगों की आंखों में आंसू थे। उसके बाद 1990 के चुनाव में उसी कारण भाजपा को वह ऐतिहासिक जीत मिली, जो पहले कभी किसी को नहीं मिली थी और न ही आज तक किसी को मिली है। समझौते में भाजपा ने 51 सीटें लड़ीं और 46 जीतीं। अखबारों में जीतने वालों की चर्चा नहीं होती थी। चर्चा यह होती थी कि वे पांच अभागे कौन हैं जो इस लहर में भी हार गए। 

मैं मुख्यमंत्री बना। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह एकनाथ राणाडे जी चंडीगढ़ आए। उनसे मेरा व्यक्तिगत स्नेह संबंध था। मैं चंडीगढ़ जाकर मिलने की बात सोच ही रहा था कि उनका संदेश आया कि वे स्वयं मुझे मिलने आ रहे हैं। शिमला में संघ का कोई कार्यक्रम नहीं था, केवल मुझे मिलने के लिए आए। कमरे में प्रवेश करते ही मुझे गले से लगाकर प्यार किया और कहने लगे, ‘‘अपने स्वयं सेवक का वैभव देखने आया हूं।’’ कुछ देर उनसे बातें हुईं। मेरी धर्मपत्नी संतोष भी मिली। केवल जलपान किया, वापस जाने लगे तो मेरे कंधे पर हाथ रखकर कहा, ‘‘सत्ता की राजनीति में आएहो तो अपने स्वयंसेवक के आदर्शवाद को सुरक्षित रखना।’’ 

इतिहास इस प्रकार की घटनाओं से भरा पड़ा है। भारत के राजनीतिक इतिहास में मेरे जैसे बहुत से कार्यकत्र्ताओं ने कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं। सत्ता की राजनीति की परन्तु आदर्शवाद को कभी नहीं छोड़ा। सत्ता मिलती गई परन्तु मुझे इस बात का बहुत दुख है कि सत्ता के साथ-साथ हमारी पार्टी भी सत्य को छोड़ती चली गई। मैं कई दिन सोचने के बाद आज यह लेख लिख रहा हूं। अब सक्रिय राजनीति में नहीं हूं इसलिए लेखक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मेरा अधिकार है। सत्ता की राजनीति में हमारी पार्टी भी आदर्शों से समझौता करने लगी। दलबदल में शामिल होने लगी। मेरी तरह बहुत से स्वयंसेवक कार्यकत्र्ता दुखी होते रहे। आज भी आंसू बहा रहे हैं। 

मैं उस दिन सबसे अधिक निराश और दुखी हुआ जब पार्टी ने यह लक्ष्य सामने रखा-कांग्रेस मुक्त भारत बनाएंगे। मुझे लगा हमारा लक्ष्य भ्रष्टाचार और गरीबी मुक्त भारत बनाना होना चाहिए। मनुष्य एक बूंद पानी को नष्ट नहीं कर सकता। सुखाओ तो बर्फ बन जाएगा-जलाओ तो भाप बन कर सिर पर चढ़ेगा। हम कौन होते हैं किसी पार्टी को समाप्त करने वाले। एक और बात ध्यान में आई, भारत में एकमात्र अखिल भारतीय पार्टी केवल कांग्रेस है, बाकी अधिकतर दल परिवारों के या प्रदेशों के हैं। भारत जैसे इतने बड़े देश में कोई और दल पूरे देश का राष्ट्रीय दल नहीं बन सकता। कांग्रेस के समाप्त होने पर हमारे सामने कोई विपक्ष ही नहीं होगा और एक स्वस्थ व सशक्त विपक्ष के बिना लोकतंत्र नहीं चल सकता। इसलिए कांग्रेस मुक्त भारत का मतलब विपक्ष मुक्त भारत होगा। फिर कांग्रेस  स्वयं ही आत्महत्या कर रही है। हम अपने सिर पर इस पाप का बोझ क्यों ले रहे हैं?-शांता कुमार (पूर्व मुख्यमंत्री हि.प्र. व पूर्व केन्द्रीय मंत्री)

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