जब सांसदों ने काम ही नहीं किया तो वेतन, सुविधाएं और पैंशन क्यों

Edited By ,Updated: 30 Mar, 2024 06:01 AM

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भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। यहां की संसद सबसे बड़े लोकतंत्र का मंदिर कहलाती है। वर्तमान में यानी 17वीं लोकसभा के 543 सदस्य हैं। इन 543 सांसदों को देश की जनता अपने वोट के अधिकार के इस्तेमाल से 5 साल के लिए चुन कर भेजती है।

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। यहां की संसद सबसे बड़े लोकतंत्र का मंदिर कहलाती है। वर्तमान में यानी 17वीं लोकसभा के 543 सदस्य हैं। इन 543 सांसदों को देश की जनता अपने वोट के अधिकार के इस्तेमाल से 5 साल के लिए चुन कर भेजती है। सांसद बनते ही इन्हें देश के संविधान के अनुसार असीमित शक्तियां और अधिकार मिल जाते हैं ताकि यह अपने हलके और हलके के लोगों की परेशानियों को दूर कर लोक कल्याण के कार्य करते हुए अपने संसदीय क्षेत्र का विकास करवा देश की उन्नति में अपना योगदान डाल सकें। संसदीय क्षेत्र के हर मतदाता को अपने सांसद से अपेक्षा होती है कि वे अपने निर्वाचन क्षेत्र के हितों का प्रतिनिधित्व करे। 

महत्वपूर्ण राष्ट्रीय विषयों पर कानून बनाने, सरकार की जवाबदेही तय करने और सार्वजनिक संसाधनों का प्रभावी आबंटन करवाने में सहायक हो। लेकिन 2019 के चुनाव में 17वीं लोकसभा के लिए चुने गए कुछ सांसद सदन में भोलेपन के लिए, कुछ डींगें हांकने के लिए, कुछ हुल्लड़बाजी के लिए, कुछ यौन शोषण के लिए, कुछ पैसे लेकर सवाल पूछने के लिए, कुछ खामोश रहने के लिए और कुछ मिमिक्री के लिए चर्चित रहे। इस बार के 9 सांसद तो ऐसे रहे जिन्होंने 5 साल के अपने कार्यकाल में सदन में एक भी चर्चा में भाग नहीं लिया। इसके साथ ही साथ कई सांसद ऐसे भी रहे जिनकी लोकसभा में उपस्थिति भी नाम मात्र रही। 

आपको यह जान कर भी हैरानी होगी कि माननीय यह 9 सांसद पिछले 5 साल से एक सांसद के रूप में वेतन तो ले रहे हैं और खामोश हैं। फिल्म में डायलॉग बोलने वाले अभिनेता बने सांसद भी सदन में खामोश रहे। पंजाब के गुरदासपुर संसदीय क्षेत्र के सूझवान मतदाताओं ने बहुत ही आस के साथ ‘गदर’ फिल्म के हीरो जो फिल्म में पाकिस्तान पहुंच कर चीखते हुए कहते हैं...‘हिंदुस्तान जिंदाबाद है, जिंदाबाद था और जिंदाबाद रहेगा!’ को बड़े अंतर से जिता कर लोकतंत्र के मंदिर में भेजा था। लेकिन जब सदन में हिंदुस्तान जिंदाबाद का नारा बुलंद करने का अवसर था तब नदारद रहे। 

मतदाताओं ने सोचा था कि यह लोकसभा में इस हलके की आवाज बनकर गरजेंगे और 1998, 1999, 2004 और 2014 में जीते पूर्व सांसद विनोद खन्ना की तरह ही इस हलके के विकास और मतदाताओं की समस्याओं को दूर करने के लिए काम करेंगे लेकिन जीत के बाद लोकसभा में बोलना तो दूर एक बार भी अपने हलके में आकर अपने वोटरों की सुध नहीं ली। यही नहीं 13 फरवरी को पी.आर.एस. लैजिस्लेटिव द्वारा जारी जानकारी के अनुसार इस सांसद ने लोकसभा की किसी भी बहस में हिस्सा नहीं लिया। ऐसा ही हाल तृणमूल कांग्रेस के सांसद शत्रुघ्न सिन्हा का रहा। 

इन सांसद महानुभाव ने इनके पक्ष में मतदान करने वाले 558719 वोटरों के साथ विश्वास घात किया। बाद में इस सांसद ने टी.वी. शो ‘आप की अदालत’ में कहा था कि राजनीति मेरी दुनिया नहीं है। यदि राजनीति इनकी दुनिया नहीं है तो अपनी सदस्यता से त्याग पत्र क्यों नहीं दिया? इनके त्याग पत्र से शायद कोई दूसरा नेता चुनाव जीत कर हलके के विकास और मतदाताओं की समस्याओं को दूर करने के लिए काम कर पाता। यह 9 ‘मौन तपस्वी’ सांसद बेशक किसी दल विशेष के नहीं हैं, यानी सभी दलों के हैं। पर यह आंकड़ा चौंकाने वाला है कि इनमें सबसे ज्यादा 6 सांसद उस पार्टी के हैं जिसकी केंद्र में सरकार है और सभी 5 साल प्रधानमंत्री जी से प्रशिक्षण लेते रहे। इन सांसदों से सवाल पूछा जाना चाहिए कि क्या वास्तव में सांसद सदन में लोक कल्याण के प्रति निष्ठावान रहे ? क्या  सामाजिक और आर्थिक मुद्दे उठा पाए? अपने लोकसभा क्षेत्र की समस्याओं को उठाया? 

राष्ट्रहित की परिचर्चा में भाग लिया? कितनी चर्चाओं में भाग लिया? क्या 5 साल अपने क्षेत्र की जनता के संपर्क में रहे? मतदाताओं के प्रति सांसद जबावदेह होते हैं। जब इन्होंने काम ही नहीं किया तो वेतन, सुविधाएं और पैंशन लेने का अधिकार कहां से मिला? जो लाभ ले चुके वह दंड ब्याज सहित वसूला जाना चाहिए। अब यह सवाल पैदा होता है कि जब इन सांसदों ने काम ही नहीं किया तो वेतन, सुविधाएं और पैंशन क्यों? सुप्रीम कोर्ट ने भी ‘काम नहीं तो वेतन नहीं’ सिद्धांत के तहत याचिका पर अपने फैसले में लिखा था कि ‘‘एक सरकारी कर्मचारी जो अपने कत्र्तव्य का निर्वहन नहीं करता है, उसे सरकारी खजाने की कीमत पर वेतन की अनुमति नहीं  दी जा सकती। फिर माननीय सांसद जो निर्वाचित होकर गए, जब उन्होंने सदन में कोई काम ही नहीं किया तो उन्हें सरकारी खजाने से वेतन और सुविधाओं के रूप में जनता से टैक्स के रूप में लिया गया पैसा क्यों दिया जा रहा है?-सुरेश कुमार गोयल

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