जब पी.ओ.के. में लहराया ‘तिरंगा’

Edited By ,Updated: 11 Sep, 2020 04:06 AM

when p o k waved tricolor

गत वर्ष प्रसिद्ध कूटनीतिज्ञ के तौर पर जाने जाते विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने नई दिल्ली में एक प्रैस वार्ता के दौरान कहा कि पाक अधिकृत कश्मीर (पी.ओ.के.) भारत का हिस्सा है तथा उम्मीद है कि एक दिन भारत इसे अपने कब्जे में ले लेगा। वास्तव में इससे पहले भी...

गत वर्ष प्रसिद्ध कूटनीतिज्ञ के तौर पर जाने जाते विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने नई दिल्ली में एक प्रैस वार्ता के दौरान कहा कि पाक अधिकृत कश्मीर (पी.ओ.के.) भारत का हिस्सा है तथा उम्मीद है कि एक दिन भारत इसे अपने कब्जे में ले लेगा। वास्तव में इससे पहले भी रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तथा उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने भी इस तरह की टिप्पणी की थी। हकीकत यह है कि देश के प्रशासकों की ओर से इस किस्म के दृढ़ संकल्प वाली कल्पना करने वाला ट्रेलर तो 1965 में भारतीय सेना ने उस समय दिखाया था, जब पी.ओ.के. में तिरंगा लहराया था। अब सवाल पैदा होता है कि क्या पाकिस्तान को ट्रेलर दिखाने वाली कहानी अपने अंजाम तक पहुंच रही है? बड़ी-बड़ी बातें करने वाले कूटनीतिज्ञ तथा राजनेता आखिर पी.ओ.के. को कैसे हासिल करेंगे? 

आप्रेशन जिब्राल्टर फनाह: यदि बात ट्रेलर की की जाए तो 1947-48 के युद्ध में हुई हार का बदला लेने की भावना से पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल अयूब खां ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में वर्ष 1965 के शुरू में 4 गोरिल्ला सिखलाई कैम्प स्थापित कर भारत के भीतर घुसपैठ की तैयारियां आरंभ कर दी थीं। अगस्त के पहले सप्ताह में ‘आप्रेशन जिब्राल्टर’ के नाम के अंतर्गत करीब 9000 घुसपैठियों को करीब 8 मिश्रित समूहों में बांट कर अलग-अलग कोडवर्ड के अधीन जेहाद के नारे से कारगिल से लेकर कश्मीर घाटी  तथा जम्मू के पश्चिम की ओर पहाडिय़ों में धकेल दिया। यही बात कारगिल के समय घटी तथा अब गलवान घाटी तथा पैंगोंग त्सो (लद्दाख) में भी इस किस्म की शंका व्यक्त की जा रही है। 

6-7 अगस्त को सैंकड़ों की तादाद में घुसपैठियों ने उनको सौंपे गए लक्ष्य के अनुसार श्रीनगर की ओर रुख करते हुए सैन्य कैम्पों पर तेज हमले करने के साथ-साथ कई पुलों को उड़ा कर संचार व्यवस्था को नुक्सान पहुंचाया तथा जम्मू-कश्मीर मार्ग पर विघ्न डालने की तमाम कोशिशें जारी रखी गईं। जम्मू-कश्मीर की तर्कहीन सरकार ने दिल्ली दरबार से सम्पर्क कर मार्शल लॉ लगाने की मांग की। जब रक्षा सचिव ने सेना प्रमुख जनरल चौधरी के विचार जानने चाहे तब उन्होंने सैन्य कमांडर जनरल हरबख्श सिंह को जम्मू-कश्मीर में सैन्य प्रशासन कायम करने हेतु पूछा तो उन्होंने यह जवाब दिया कि यदि मार्शल लॉ लगा दिया गया तब संभावित युद्ध कौन लड़ेगा? 

दूसरी बड़ी बात यह भी थी कि बीते कुछ दिनों से पाकिस्तान रेडियो बार-बार घोषणा कर रहा था कि यह बगावत कश्मीरियों की ओर से की जा रही है। इसलिए जनरल हरबख्श सिंह ने स्पष्ट शब्दों में जोर देकर कहा कि यदि मार्शल लॉ लगा दिया जाता है तो पाकिस्तान की विचारधारा की पुष्टि हो जाएगी तथा लोग विश्वास खो देंगे। फिर ऐसा भी हो सकता है कि कश्मीर की जनता भयभीत होकर घुसपैठियों की मदद पर उतर आए। 

जनरल हरबख्श सिंह इस बात से भली-भांति वाकिफ थे कि जब तक नियंत्रित रेखा के पार ऊंची चोटियों पर कब्जा नहीं किया जाता तब तक घने जंगलों की आड़ में यदि घुसपैठिए प्रवेश कर जाते हैं तो श्रीनगर में स्थापित 15 कोर के लिए उन्हें पीछे धकेलना इतना आसान कार्य नहीं होगा, जैसा कि 1947-48 में हमलावरों को कुचलते समय घटा था। इसलिए हाजीपीर तथा कुछ अन्य ऊंचे पर्वतों वाली दुश्मन की चौकियों को अपने कब्जे में लेकर पुंछ को हाजीपीर के रास्ते कश्मीर घाटी के साथ जोडऩे वाली युद्ध रणनीति जनरल हरबख्श सिंह की सूझबूझ वाली दूरअंदेशी का नतीजा था। 

तिरंगा लहराया : रियासत के मंत्री गुलाम रसूल ने 30 अगस्त की शाम को हाजीपीर पहुंच कर देश की सेना का धन्यवाद किया तथा आसपास के 15 गांवों की जनता को संबोधन करके उनकी दुख-तकलीफों को सुना। कश्मीर घाटी के अंदर देश के बंटवारे से पहले वाली 58 किलोमीटर पुंछ-उड़ी सड़क, जोकि पाकिस्तान ने अनधिकृत तौर पर कब्जे में ले रखी थी, को सैन्य कमांडर जनरल हरबख्श सिंह के दूरअंदेशी वाली सोच तथा हमलावर शक्ति ने वापस भारत सरकार (जम्मू-कश्मीर) को दिला दिया जिसको 4 सितम्बर को चालू कर दिया गया जिस कारण पी.ओ.के. श्रीनगर से जुड़ गया। इस तरह अयूब खां की ओर से पी.ओ.के. में स्थापित 4 गोरिल्ला आतंकवादी सिखलाई कैम्प तबाह कर दिए गए। 

बाज वाली नजर : नि:संदेह सितम्बर 1965 में भारत ने पी.ओ.के. में तिरंगा लहराया तथा सैन्य शक्ति वाला ट्रेलर जरूर दिखाया पर क्या अब मोदी सरकार इस कहानी को अंजाम तक ले जा पाएगी? वर्ष 1983-89 के बीच मैंने पुंछ-राजौरी एल.ओ.सी. पर पहले अपनी यूनिट की कमान की तथा उसके बाद डिप्टी ब्रिगेड कमांडर के तौर पर भी पीर पंजाल वाले कठिन क्षेत्रों में सेवा निभाई तथा अवाम का दिल भी जीता। 

अब जब केंद्र सरकार ने धारा-370 तथा 35-ए को निरस्त कर जम्मू-कश्मीर को 2 केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया है तथा कई राजनीतिक नेता नजरबंद हैं, प्रश्र यह है कि आम लोगों से सम्पर्क कैसे किया जाए? प्रशासन के बस की बात नहीं। मैं समस्त जम्मू-कश्मीर की रणनीतिक महत्ता, भौगोलिक स्थिति और इमरान खान की परमाण युद्ध की गीदड़ भभकियों को समझते हुए तथा चीन के नापाक इरादों के मद्देनजर एक बड़ा प्रश्र कर रहा हूं कि क्या सैन्य तौर पर पी.ओ.के. हासिल किया जा सकता है? हमें दोतरफा युद्ध लडऩा पड़ेगा, क्या हम उसके लिए तैयार हैं।-ब्रिगे. कुलदीप सिंह काहलों (रिटा.)
 

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