आखिर ‘आजाद समाज पार्टी’ क्यों

Edited By Updated: 21 Mar, 2020 02:28 AM

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आजाद समाज पार्टी (ए.एस.पी.) केवल एक अन्य राजनीतिक पार्टी नहीं। बल्कि यह ऐसा आंदोलन है जिससे प्रत्येक नागरिक विशेष तौर पर दलितों, आदिवासियों, हाशिए पर आए समुदायों तथा महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की जाए। इसकी जड़ें डा. भीमराव अम्बेदकर तथा...

आजाद समाज पार्टी (ए.एस.पी.) केवल एक अन्य राजनीतिक पार्टी नहीं। बल्कि यह ऐसा आंदोलन है जिससे प्रत्येक नागरिक विशेष तौर पर दलितों, आदिवासियों, हाशिए पर आए समुदायों तथा महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की जाए। इसकी जड़ें डा. भीमराव अम्बेदकर तथा कांशीराम के राजनीतिक दृष्टिकोण ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’ के विचारों पर आधारित हैं। यह कांशीराम थे जिन्होंने बाबा साहेब के विचारों को लोगों के समक्ष पेश किया तथा लोकतंत्र के नाम पर एक बैनर तले करोड़ों लोगों को इकट्ठा किया। ए.एस.पी. का गठन ऐसे समय में हुआ है जब हमारा संविधान संकट से जूझ रहा है। लोकतंत्र चरमरा गया है तथा देश के अनगिनत लोगों की नागरिकता पर खतरा मंडरा रहा है। दलितों, आदिवासियों तथा पिछड़ी श्रेणियों के आरक्षण आधारित अधिकारों पर सवाल उठाए जा रहे हैं। देश में बोलने के अधिकार पर भी चोट पहुंच रही है। 

वर्तमान सरकार की नीतियों के चलते देश की अर्थव्यवस्था आर्थिक संकट से गुजर रही है। युवा वर्ग सड़कों पर है, बेरोजगारी चरमसीमा पर है, कीमतें आसमान को छू रही हैं, भ्रष्टाचार व्याप्त है तथा लोगों पर अत्याचारों के साथ अत्याचार किया जाता है। राष्ट्र के लिए भाजपा का कोई ठोस एजैंडा नहीं है। इसका एजैंडा तो मात्र चुनाव जीतने का है, फिर वह चाहे किसी भी तरह से जीता जाए। ऐसे लक्ष्य को पाने के लिए भाजपा हिन्दू-मुस्लिम का कार्ड खेल रही है और लोगों के बीच नफरत का बीज बो रही है जिससे हिंसा उत्पन्न हो रही है। दिल्ली दंगे राष्ट्र को बांटने के लिए किए गए थे। संकट के इस क्षण में ए.एस.पी. बाबा साहेब अम्बेदकर की शिक्षाओं से प्रेरणा लेती है। हमारा मानना है कि भारतीय संविधान हमें इस राजनीतिक आपदा से सुरक्षित रखेगा। हम यह भी मानते हैं कि हम संवैधानिक साधनों, शांतिपूर्ण विरोध- प्रदर्शन और जनसमूह के माध्यम से अपने अधिकारों को हासिल कर सकते हैं। 

दबे-कुचले लोगों को गुलामी की ओर धकेला जा रहा है इसलिए वे खुद को लम्बे संघर्ष के लिए प्रेरित करेंगे और देश की सड़कों पर शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन होगा। यही इस पार्टी के निर्माण का कारण है। जब कमजोर और गरीबों के पास अपनी आवाज सुनाने की ताकत नहीं थी तो यह कांशीराम जी थे जिन्होंने उन्हें यह दिखाया कि अधिकारों के लिए आंदोलन स्वाभिमान के बारे में है। उन्होंने दिखाया कि इस तरह की लड़ाई के मोर्चे पर वे लोग हैं जो समानता के लिए हर व्यक्ति के अधिकार के साथ गरिमा को जोड़ते हैं। 

पार्टी का उद्देश्य शोषितों और बहुजनों को सत्ता दिलाना
कांशीराम जी ने हमें दिखाया कि हमें अपने अधिकारों के लिए कैसे लडऩा है। उनका सपना अभी भी अधूरा है। हमारा उद्देश्य उस सपने को पूरा करना है तथा शोषितों और बहुजनों को सत्ता दिलाना है। नए राजनीतिक दल के गठन का प्राथमिक उद्देश्य और एजैंडा यह सुनिश्चित करना है कि संविधान की पूरी रक्षा की जाए। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) जैसी राजनीतिक सरकारें बहुजनों के हित के लिए लड़ती रही हैं लेकिन मिशन पूरा होना अभी बाकी है।

बसपा की गिरावट ने एक शून्य पैदा कर दिया 
दुर्भाग्यवश कांशीराम जी की मृत्यु के बाद बसपा ने अपने सिद्धांतों के साथ समझौता किया। दलित बहुजन के नेतृत्व की भूमिकाओं को कम किया और उच्च जातियों को सत्ता के पदों पर लाया गया। इससे इसका चुनावी पतन हुआ। बसपा के साथ बहुजन समाज में गहरा असंतोष है। मनुवादी ताकतें बहुजन समाज के अस्तित्व को खतरे में डाल रही हैं। संविधान पर एक तरह से हमला कर रही हैं। दलित समाज के लोगों पर अत्याचार में वृद्धि हुई है। बसपा की गिरावट ने एक शून्य पैदा कर दिया। भीम आर्मी ने पिछले चुनावों में बसपा का समर्थन किया था लेकिन पार्टी हमारे समर्थन को चुनावी लाभ में बदल नहीं सकी। हमने बहुजन ताकतों के एकीकरण के बारे में मायावती को एक खुला पत्र भी लिखा लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया और इसलिए हमने शून्य को भरने का फैसला किया। 

इस राष्ट्र के विकास के लिए यह महत्वपूर्ण है कि पूंजीपतियों और पैसे वाले लोगों की राजनीति को गरीब और बहुजन की राजनीति से बदल दिया जाए। हम उन लोगों को सत्ता में नहीं लाएंगे जिन्होंने हमें गुलामी की ओर धकेल दिया। कांशीराम ने दलित आदिवासी और बहुजन वोटों को एकजुट किया और उनके आंदोलन में उनकी जनसंख्या ताकत के आधार पर समुदायों को प्रतिनिधित्व दिया। पार्टी का मुख्य एजैंडा बिखरे पड़े दलित समाज का एकीकरण करना है। हम सरकारों को दिखाएंगे कि लोकतंत्र होने का क्या मतलब है और सामाजिक परिवर्तन कैसे लाया जाए। 

मैं एक प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक का बेटा हूं जिसने मुझे अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने का महत्व सिखाया है। पिछले 5 वर्षों में हम भीम आर्मी में विपक्ष की भूमिका को निभा रहे थे। लाठियों और भटकाव का सामना कर रहे थे। हमने अपना स्वाभिमान नहीं खोया और न ही जुल्म के आगे कभी झुके। पार्टी बनाने का विचार भीम आर्मी से दूर जाने का नहीं है। भीम आर्मी मेहनत, पसीना, खून और दलितों के योगदान पर चलती है।-चन्द्रशेखर आजाद

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