Breaking




भारत की आर्थिक रिकवरी के मुखर आलोचक गलत क्यों

Edited By ,Updated: 15 Sep, 2021 05:59 AM

why the outspoken critics of india s economic recovery are wrong

एक साल पहले, हमने जी.डी.पी. में तेज गिरावट के बाद वी-आकृति की तेज वृद्धि की भविष्यवाणी की थी। उस समय, अधिकांश लोगों ने इस भविष्यवाणी पर संदेह किया था। एक पूर्व वित्त मंत्री ने

ठीक एक साल पहले, हमने जी.डी.पी. में तेज गिरावट के बाद वी-आकृति की तेज वृद्धि की भविष्यवाणी की थी। उस समय, अधिकांश लोगों ने इस भविष्यवाणी पर संदेह किया था। एक पूर्व वित्त मंत्री ने लिखा, ‘‘एक बंजर रेगिस्तान में, वित्त मंत्री और मुख्य आर्थिक सलाहकार ने बिना पानी के हरे-भरे उद्यान देखे हैं!’’ उनकी सूक्ष्म समझ की कमी निश्चित रूप से इस बयान से स्पष्ट थी, ‘‘30 जून, 2019 तक सकल घरेलू उत्पादन का लगभग एक चौथाई पिछले 12 महीनों में नष्ट हो गया है।’’ 

एक टैंक में पानी के स्तर के विपरीत, जी.डी.पी. एक ऐसा पैमाना नहीं है, जो स्टॉक के स्तर को दर्शाता है। इसकी बजाय एक निश्चित समयावधि में बहने वाले पानी की मात्रा की तरह, जी.डी.पी. एक निश्चित समयावधि में आर्थिक गतिविधियों के प्रवाह को मापती है। यदि जी.डी.पी. केवल स्टॉक का एक पैमाना होता तो यह कहा जा सकता है कि स्टॉक में एक निश्चित प्रतिशत की कमी आई। सुविधा के अनुसार व्या या (नरेटिव) पेश करने और दर्शकों की तालियां बटोरने की कला के रूप में राजनीति अर्थव्यवस्था की सूक्ष्म समझ हासिल करने के कठिन काम की तुलना में अधिक आकर्षक व सरल होती है।

पिछले साल की पहली तिमाही में 24.4 प्रतिशत की गिरावट के बाद, अर्थव्यवस्था ने बाद की तिमाहियों में -7.5 प्रतिशत, 0.4 प्रतिशत, 1.6 प्रतिशत और 20.1 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की है। यदि इन सं याओं को अंकित किया जाए तो ग्राफ ‘वी’ जैसा दिखता है। संयोग से, के-आकृति की रिकवरी पर की गई यह टिप्पणी अर्थव्यवस्था के वृहद् कारकों पर नहीं, बल्कि क्षेत्रीय पैटर्न पर केंद्रित है। हाथ की पांच उंगलियों की तरह, क्षेत्रीय पैटर्न कभी भी एक जैसे नहीं होते। 

महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि वी-आकृति की रिकवरी अर्थव्यवस्था के मजबूत बुनियादी सिद्धांतों का प्रमाण है-एक ऐसी बात, जिसे मैंने पद संभालने के बाद लगातार सामने रखा है। जैसा आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 में स्पष्ट किया गया है, महामारी-पूर्व मंदी केवल वित्तीय क्षेत्र की समस्याओं, सांठ-गांठ के आधार पर ऋण देना और 2014 से पहले बैंकिंग क्षेत्र के कुप्रबंधन से उत्पन्न हुई थी। इस तरह के सांठ-गांठ से दिए गए बैंक ऋण के पुनर्भुगतान की प्रक्रिया 5-6 साल के बाद ही शुरू होती है। अपना खर्च न निकाल पाने वाली बड़ी कंपनियों (जॉ बी) को हमेशा ऋण उपलब्ध कराने के लिए बैंकरों के प्रोत्साहन जैसी वित्तीय अनियमितताओं का अंतत: अन्य क्षेत्रों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है, जिसका नुक्सान अर्थव्यवस्था को लंबे समय तक झेलना पड़ता है। 

कुछ टिप्पणीकार महामारी-पूर्व हुई मंदी का कारण विमुद्रीकरण और जी.एस.टी. कार्यान्वयन को मानते हैं। हालांकि, विमुद्रीकरण, जिसमें जी.एस.टी. कार्यान्वयन भी शामिल था, के आर्थिक प्रभाव पर किए गए शोध से पता चलता है कि इन निर्णयों से जी.डी.पी. वृद्धि पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा। महामारी के दौरान भी, तिमाही विकास पैटर्न ने केवल आर्थिक प्रतिबंधों की उपस्थिति या अनुपस्थिति को दर्शाया और इस प्रकार मजबूत आर्थिक सिद्धांतों को ही फिर से रेखांकित किया है।

देश स्तर पर घोषित लॉकडाऊन के बाद, पिछले साल की पहली तिमाही में गिरावट दर्ज की गई थी, जबकि चौथी तिमाही तक हुई रिकवरी प्रतिबंधों में मिली छूट को दर्शाती है। इस साल की पहली तिमाही में, विनाशकारी दूसरी लहर के दौरान मई और जून में अधिकांश राज्यों में मॉल, दुकानें और अन्य प्रतिष्ठान बंद कर दिए गए थे। सबसे गंभीर स्थिति के दौरान खुदरा गतिविधि, 31 मार्च के स्तर से 70 प्रतिशत तक कम थी। खपत पर इस तरह के आपूर्ति प्रतिबंधों के प्रभाव के बावजूद पिछले साल के अपने नि न बिंदू से खपत में 20 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। जुलाई के मध्य से, प्रतिबंधों में दी गई ढील के कारण उच्च आवृत्ति वाले संकेतकों में महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं। 

अभूतपूर्व सुधारों के बाद, अर्थव्यवस्था में अब तेज विकास का दौर आना स्वाभाविक है। कॉरपोरेट जगत, लागत में कटौती और अपने कर्ज को कम करके निवेश के लिए तैयार हो गया है। बैंकिंग क्षेत्र में लाभ दर्ज किए जा रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप खुदरा और एस.एम.ई. उधार के फंसे कर्ज के कारण पैदा हुई खराब स्थिति का सामना करने में बैंक सक्षम हो गए हैं। खराब ऋण के प्रत्येक रुपए का लगभग 88 प्रतिशत का प्रावधान सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा किया गया है। इसके अलावा,बैंकों में पर्याप्त पूंजी की उपलब्धता हाल के दिनों में सबसे अधिक है, क्योंकि बैंकों ने बाजारों से पूंजी जुटाई है। वैश्विक वित्तीय संकट (जी.एफ.सी.) के बाद दो अंकों की महंगाई दर के विपरीत, सरकार द्वारा आपूर्ति क्षेत्र के लिए किए गए उपायों के कारण महंगाई दर पिछले वर्ष की तुलना में औसतन 6.1 प्रतिशत रही है। 

लॉकडाऊन और रात के क र्यू के कारण आपूॢत क्षेत्र को विभिन्न व्यवधानों का सामना करना पड़ा, इस संकट के बावजूद इतनी कम महंगाई दर दर्ज की गई है। साथ ही, सावधानीपूर्वक लक्षित और विवेकपूर्ण राजकोषीय व्यय ने यह सुनिश्चित किया है कि भारत का राजकोषीय घाटा अपने समकक्ष देशों के लगभग समान है। जी.एफ.सी. के बाद भारी गिरावट के विपरीत, आपूर्ति पक्ष के उपायों ने चालू खाता को अच्छी स्थिति में बनाए रखा है। 10 अरब डॉलर का एफ.पी.आई. देश से बाहर गया, जबकि पिछले साल देश में 36 अरब डॉलर से अधिक का एफ.पी.आई. आया था। जी.एफ.सी. के बाद 8 अरब डॉलर की तुलना में एफ.डी.आई. प्रवाह लगभग 10 गुना बढ़कर करीब 80 अरब डॉलर हो गया है। 

अर्थव्यवस्था के इन बृहद मौलिक सिद्धांतों को स्टार्टअप ईकोसिस्टम द्वारा समर्थन दिया जा रहा है, जो 2014 में अपने नि न स्तर पर था। न केवल भारतीय इतिहास में यूनिकॉर्न कंपनियों की सं या सबसे अधिक हो गई है, बल्कि अगस्त में आई.पी.ओ. की सं या भी पिछले 17 वर्षों में सबसे अधिक रही है।-डॉ. के.वी. सुब्रमण्यम मुख्य आर्थिक सलाहकार,भारत सरकार
 

Let's Play Games

Game 1
Game 2
Game 3
Game 4
Game 5
Game 6
Game 7
Game 8

Trending Topics

IPL
Royal Challengers Bengaluru

190/9

20.0

Punjab Kings

184/7

20.0

Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

RR 9.50
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!