3 साल में यूरिया होगा नियंत्रण मुक्त

Edited By ,Updated: 19 Jan, 2015 10:46 AM

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पैट्रोल और डीजल के बाद नरेंद्र मोदी सरकार अब यूरिया को नियंत्रण मुक्त करने वाली है। केंद्र सरकार राजनीतिक रूप से संवेदनशील माने जाने वाले उर्वरक यूरिया को अगले 3 साल में नियंत्रण मुक्त करने की योजना पर काम कर रही है।

नई दिल्लीः पैट्रोल और डीजल के बाद नरेंद्र मोदी सरकार अब यूरिया को नियंत्रण मुक्त करने वाली है। केंद्र सरकार राजनीतिक रूप से संवेदनशील माने जाने वाले उर्वरक यूरिया को अगले 3 साल में नियंत्रण मुक्त करने की योजना पर काम कर रही है। इसके चलते जहां यूरिया का उत्पादन, आयात और कीमत निर्धारण पूरी तरह नियंत्रण मुक्त हो जाएगा वहीं 3 साल में किसानों के लिए यूरिया की कीमत को हर साल 20 फीसदी बढ़ाने की तैयारी है ताकि सब्सिड़ी का बोझ घटाया जा सके। वहीं जनधन योजना और आधार कार्ड का उपयोग कर खाद सब्सिड़ी सीधे किसानों के खाते में पहुंचाने का कदम भी इस योजना का हिस्सा है।
 
उर्वरक मंत्रालय में उच्च पदस्थ अधिकारियों के मुताबिक 3 साल में यूरिया को नियंत्रण मुक्त करने की इस योजना का खाका तैयार कर लिया गया है और इसकी झलक वित्त मंत्री अरुण जेतली द्वारा पेश किए जाने वाले आगामी साल के बजट में देखने को मिल सकती है।
 
अगर मोदी सरकार यूरिया को नियंत्रण मुक्त करने और कीमतों में बढ़ौतरी का फैसला लेती है तो डीजल को नियंत्रण मुक्त करने के बाद सब्सिड़ी में कटौती के मोर्चे पर मोदी सरकार का यह एक बड़ा सुधारवादी कदम साबित हो सकता है। उर्वरक मंत्रालय द्वारा तैयार योजना में 3 साल तक हर साल 20 फीसदी दाम बढ़ाने के कदम के तहत खरीफ और रबी फसलों के पहले दस-दस फीसदी कर सालाना दो बढ़ौतरी होंगी। इसके चलते 3 साल में यूरिया की घरेलू बाजार में अधिकतम खुदरा कीमत (एमआरपी) 5360 रुपए प्रति टन के मौजूदा स्तर से बढ़कर 9500 रुपए प्रति टन हो जाएगी। यानी हर 50 किलो के बैग की कीमत 268 रुपए से बढ़कर 475 रुपए प्रति बैग हो जाएगी।
 
उर्वरक मंत्रालय के प्रस्ताव के मुताबिक घरेलू कीमतों को नियंत्रण मुक्त करने के साथ ही सरकार इसके आयात को शुल्क मुक्त कर देगी। इस समय यूरिया आयात पर 5 फीसदी सीमा शुल्क लगता है। इसका आयात करने के लिए एमएमटीसी, एसटीसी और आईपीएल जैसी कैनालाइजिंग एजेंसी की मौजूदा व्यवस्था को भी समाप्त कर दिया जाएगा।
 
सरकार का दावा है कि अगले 3 साल में देश में जमीन के सभी रिकार्ड को डिजिटलाइज कर दिया जाएगा और जनधन योजना के साथ आधार नंबर जोड़ कर किसानों के खातो में सीधे सब्सिड़ी का रास्ता तैयार कर लिया जाएगा। ऐसे में 3 साल के भीतर अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) पर नियंत्रण समाप्त करने के साथ ही सभी तरह के आयात नियंत्रण भी समाप्त कर दिये जाएंगे।
 
सरकार ने अप्रैल, 2010 में गैर यूरिया उर्वरकों के लिए न्यूट्रीएंट आधारित सब्सिड़ी (एनबीएस) योजना लागू की थी। उसके बाद से डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की कीमत 9350 रुपए प्रति टन से बढ़कर 23000 रुपए प्रति टन हो गई है। जबकि म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) की कीमत 4455 रुपए से बढ़कर 16650 रुपए प्रति टन हो गई हैं लेकिन इस बीच यूरिया की कीमत 4830 रुपए प्रति टन से मामूली रूप से बढ़कर 5360 रुपए प्रति टन पर पहुंची है। देश में कुल उर्वरक उपयोग में यूरिया की हिस्सेदारी 55 फीसदी होने के चलते चालू साल (2014-15) के बजट में 72970.30 करोड़ रुपए की कुल सब्सिड़ी में इसकी हिस्सेदारी 48300 करोड़ रुपए रहने का अनुमान है। हालांकि संशोधित अनुमान इससे कहीं ज्यादा रहेगा क्योंकि यूरिया उत्पादक कंपनियों की सरकार पर बकाया सब्सिड़ी बढ़ती जा रही है।
 
सरकार का यूरिया आयात को शुल्क मुक्त करने और डीकैनालाइज करने का फैसला घरेलू उत्पादक कंपनियों को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है। इस समय देश में सालाना 3 करोड़ टन यूरिया की खपत में से 2.30 करोड़ टन का उत्पादन देश में होता है। इसकी औसत उत्पादन लागत करीब 18000 रुपए प्रति टन आ रही है। हालांकि कंपनियों की अलग-अलग उत्पादन लागत है जो फीड स्टॉक और उपयोग की जा रही तकनीक पर निर्भर करती है। इसके चलते उत्पादन लागत 11000 रुपए प्रति टन से  41000 रुपए प्रति टन के बीच आ रही है। ऐसे में शुल्क मुक्त आयात से कई कंपनियों के सामने बंदी की स्थिति पैदा हो सकती है क्योंकि सरकार सब्सिड़ी के स्तर की सीमा स्थिर कर सकती है। इस समय आयातित यूरिया की कीमत 300 डॉलर प्रति टन है जो करीब 18000 रुपए प्रति टन बैठती है। हालांकि सरकारी अधिकारियों का कहना है कि गैस प्राइस पूलिंग और तकनीकी उन्नयन के जरिए कंपनियों को उत्पादन जारी रखने में सरकार पूरी मदद करेगी।
 
वहीं सरकार के इस कदम के पहले उत्तर भारत में पहली बार इस साल के रबी सीजन में यूरिया की उपलब्धता बड़ा संकट पैदा हुआ और किसानों को ब्लैक में यूरिया खरीदना पड़ा है। राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठिन के संयोजक वी.एम.सिंह ने कहा कि दिल्ली में तो हमें यूरिया मिला ही नहीं। हमें हरियाणा से यूरिया मंगाना पड़ा। हरियाणा में पेस्टीसाइड के साथ यूरिया दे रहे थे या 100 रुपए बैग ज्यादा पर मिल रहा था। यह संकट हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान सहित अधिकांश राज्यों में रहा है। जमाखोरों ने इसका पूरा फायदा उठाया है। ऐसे में अगर सरकार दाम बढ़ाने का कदम उठाती है तो किसानों के लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी क्योंकि गैर यूरिया उर्वरकों के दाम पिछले 3 साल में गई गुना बढ़े हैं। हालांकि उर्वरक मंत्री ने साफ किया था कि देश में उपलब्धता का संकट नहीं है।

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