आयातकों की दाल में आए कंकड़

Edited By ,Updated: 03 Jul, 2015 11:14 AM

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दलहन की बुआई बढऩे के कारण दाल की कीमतों में गिरावट से आम ग्राहक चाहे खुश हो ले, आयातकों के पसीने छूट रहे हैं। दरअसल जिस वक्त दाल की कीमतें चढ़ रही थीं

मुंबईः दलहन की बुआई बढऩे के कारण दाल की कीमतों में गिरावट से आम ग्राहक चाहे खुश हो ले, आयातकों के पसीने छूट रहे हैं। दरअसल जिस वक्त दाल की कीमतें चढ़ रही थीं, उस वक्त आयातकों ने भारी मात्रा में दालों के आयात के वायदा सौदे कर लिए थे। उनकी आपूर्ति अक्तूबर से दिसंबर के बीच होनी है लेकिन दाम कम होने की सूरत में आयातकों को भारी घाटा हो जाएगा। 

एक अग्रणी आयातक ने कहा कि एक माह पहले कमजोर मानसून के अनुमान के कारण जब दालों के भाव में तेजी आ रही थी तब कई छोटे और मझोले व्यापारियों ने कुल मिलाकर 90 से 100 करोड़ डॉलर (करीब 5,720 करोड़ से 6,300 करोड़ रुपए) के वायदा सौदे कर लिए थे। भारत का औसत तिमाही आयात करीब 60 करोड़ डॉलर का है और वर्ष 2014-15 में करीब 235 करोड़ डॉलर (करीब 15,000 करोड़ रुपए) की दालों का आयात हुआ था।

पिछले एक माह के दौरान घरेलू बाजार में विभिन्न दालों की कीमतों में 5 से 10 फीसदी की कमी आई है। अगर कीमतें आयात लागत से नीचे आ जाती हैं तो वायदा सौदों से मुकरने की घटनाएं हो सकती हैं। सूत्रों ने कहा कि पिछले साल आयातकों ने इस तरह के सौदे से अच्छा मुनाफा कमाया था और इस बार भी उसे दोहराना चाहते थे। लेकिन हाल के हफ्तों में देश भर में मानसून के बढऩे और झमाझम बारिश के कारण दलहन की बुआई बढ़ गई और सरकार ने भी दालों के न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ा दिए।

दिल्ली के आयातक नीरज धवन ने कहा, ''दलहन की बुआई अब भी हो रही है और बुआई का रकबा बढऩे के आसार हैं क्योंकि किसान दलहनी फसलों को पसंद कर रहे हैं। ऐसे में वायदा सौदे मुश्किल में फंस सकते हैं, क्योंकि कारोबारी सौदों से पहले फसल की तस्वीर देख रहे हैं।'' दलहन उत्पादक प्रमुख राज्यों में मानसून में सुधार से 26 जून तक बुआई पिछले साल की इसी अवधि की 6 लाख हैक्टयेर से करीब दोगुनी होकर 11 लाख हेक्टेयर पहुंच गई। जून में बारिश सामान्य से करीब 24 फीसदी ज्यादा रही। भारतीय मौसम विभाग ने जुलाई और अगस्त में कम बारिश होने का अनुमान जताया है लेकिन मौसम की भविष्यवाणी करने वाली निजी संस्था स्काईमेट ने मानसून के सामान्य रहने की भविष्यवाणी की है। ऐसे में बाजार में अनिश्चितता बनी हुई है।

एडलवाइस में कमोडिटी शोध प्रमुख प्रेरणा देसाई ने कहा, ''फसल को लेकर संशय है। मौसम बिगड़ा तो दालें महंगी हो सकती हैं। अगले दो महीने की मानसूनी बारिश पर ही सब कुछ निर्भर है।'' जिंसों की कमी को देखते हुए कई राज्य सरकारों ने भंडारण की सीमा तय कर दी है और केंद्र सरकार सार्वजनिक ट्रेडिंग फर्मों से निश्चित दरों पर आयात ऑर्डर जारी करने को भी कह चुकी है। भारत में सालाना 1.8 करोड़ टन दालों की खपत है, जिसे पूरा करने के लिए कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, म्यांमार और अफ्रीकी देशों से करीब 30 लाख टन दालों का आयात किया जाता है। पिछले साल फसल खराब होने के कारण करीब 40 लाख टन दालों का आयात किया गया था।

 

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