भारत में ही नहीं, दूसरे बड़े देशों में भी ऑटो उद्योग की हालत पस्त

Edited By Supreet Kaur,Updated: 17 Aug, 2019 12:01 PM

condition of auto industry is worse in india and big countries also

सिर्फ भारतीय ऑटो उद्योग का ही बुरा हाल नहीं है बल्कि दूसरे कई बड़े देशों में भी ऑटो क्षेत्र की हालत पस्त है। भारतीय स्टेट बैंक (एस.बी.आई.) की ताजा ईकोरैप रिपोर्ट के मुताबिक चीन, जर्मनी और अमरीका में भी इस क्षेत्र में सुस्ती देखी जा रही है। इस...

नई दिल्लीः सिर्फ भारतीय ऑटो उद्योग का ही बुरा हाल नहीं है बल्कि दूसरे कई बड़े देशों में भी ऑटो क्षेत्र की हालत पस्त है। भारतीय स्टेट बैंक (एस.बी.आई.) की ताजा ईकोरैप रिपोर्ट के मुताबिक चीन, जर्मनी और अमरीका में भी इस क्षेत्र में सुस्ती देखी जा रही है। इस क्षेत्र की सुस्ती इसलिए मायने रखती है कि यह उद्योग हर साल 3 करोड़ लोगों को रोजगार देता है। इसमें से आधे से अधिक लोग ठेके पर काम करते हैं।

चीन में लगातार 13वें महीने घटी कारों की बिक्री
गौरतलब है कि जुलाई में यात्री वाहनों की घरेलू बिक्री में करीब 31 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है, जो गत 19 साल में सबसे बड़ी गिरावट है। इसके अलावा लगातार 9 महीने से देश के ऑटो सैक्टर की बिक्री में गिरावट देखी जा रही है। रिपोर्ट के मुताबिक चीन में जुलाई में कारों की बिक्री 3.9 फीसदी गिर गई और यह लगातार 13वें महीने की गिरावट है। एशिया प्रशांत क्षेत्र में पिछले साल वाहनों की बिक्री करीब 1 फीसदी कम रही थी और इस साल 2019 में इसके 2-3.5 फीसदी तक कम रहने की आशंका है। अमरीका में लंबे समय से बिक्री में कमी देखी जा रही है। अमरीका और चीन में बिक्री घटने का असर जर्मनी पर भी पड़ा है। जर्मनी में इस साल की पहली छमाही में वाहनों का उत्पादन 12 फीसदी घट गया।

घरेलू कारण भी कम नहीं जिम्मेदार
एस.बी.आई. की रिपोर्ट के मुताबिक गैर-बैंकिंग फाइनांस कंपनियों (एन.बी.एफ.सी.) के कर्ज में कमी, ग्रामीण मांग में कमी, इंश्योरैंस की लागत में बढ़ौतरी और एक्सल लोड से जुड़े मानकों में बदलाव के कारण उद्योग में सुस्ती का माहौल है। रिपोर्ट में उद्योग के खराब प्रदर्शन के कुछ और कारण बताए गए हैं, जैसे- सैकेंड हैंड कारों के बाजार में तेजी, इलैक्ट्रिक वाहनों की लांचिंग और सरकार की ई.वी. नीति व किराए पर कार लेने के चलन में बढ़ौतरी। इसके अलावा 2020 में सीधे बी.एस.-6 उत्सर्जन मानक अपनाने का आदेश भी उद्योग के लिए नकारात्मक प्रभाव दिखा रहा है। ग्राहक वर्तमान वाहनों को खरीदने से कतरा रहे हैं। ओला व उबर जैसी कैब सेवाओं के विस्तार से भी उद्योग को एक बड़ी चुनौती मिली है।

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