बड़े कॉरपोरेट घरानों को बैंक खोलने की मंजूरी देने पर विचार करें केंद्रीय बैंक- पूर्व डिप्टी गवर्नर

Edited By jyoti choudhary,Updated: 30 Jun, 2020 05:53 PM

consider approving big corporate houses to open banks former deputy governor

भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर आर गांधी ने कहा कि केंद्रीय बैंक को उन नियमों पर दोबारा विचार करने की जरूरत है जो बड़े कॉरपेारेट घरानों को बैंकों का प्रवर्तक बनने से रोकते हैं। उन्होंने कहा कि जरूरी सुरक्षा उपायों के साथ बैंकों में किसी

नई दिल्लीः भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर आर गांधी ने कहा कि केंद्रीय बैंक को उन नियमों पर दोबारा विचार करने की जरूरत है जो बड़े कॉरपेारेट घरानों को बैंकों का प्रवर्तक बनने से रोकते हैं। उन्होंने कहा कि जरूरी सुरक्षा उपायों के साथ बैंकों में किसी एक निकाय की हिस्सेदारी 26 प्रतिशत से ऊपर करने की मंजूरी दी जानी चाहिए। आर गांधी ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था की जरुरतें और आकांक्षाएं इस तरह की है जिसको देखते हुए बैंकिंग क्षेत्र में बड़ी पूंजी के स्रोतों को प्रवेश देने पर विचार करने की जरूरत है। इससे बड़ी परियोजनाओं के संचालन में आसानी हो सकती है। उन्होंने संपूर्ण सेवा बैंकिंग मॉडल पर फिर ध्यान देने की भी वकालत की।

गांधी रिजर्व बैंक के अपने कार्यकाल में महत्वपूर्ण बैंकिंग विनियमन और पर्यवेक्षण कार्यों की जिम्मेदारी संभाला करते थे। उन्होंने कहा कि केंद्रीय बैंक ने बैंकिंग लाइसेंस के लिए आवेदन की निरंतर खुली व्यवस्था चार साल से चल रही है लेकिन इसके बाद भी कोई गंभीर आवेदन प्राप्त नहीं हुआ है। गांधी की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब रिजर्व बैंक ने निजी बैंक के स्वामित्व और नियंत्रण को लेकर इस महीने की शुरुआत में एक आंतरिक कार्य समूह का गठन किया है। यह समूह प्रवर्तकों की हिस्सेदारी, हिस्सेदारी कम करने की जरुरतेें, नियंत्रण और मतदान के अधिकार जैसे पहलुओं पर विचार करेगा।

आर गांधी ने भुगतान कंपनी ईपीएस की ओर से आयोजित एक सेमिनार में कहा कि मेरे विचार में एक प्रवर्तक या रणनीतिक निवेशक के लिए 26 प्रतिशत जैसी गंभीर हिस्सेदारी निश्चित रूप से बैंक और बैंकिंग उद्योग के दीर्घकालिक हित के लिए अच्छी होगी। कोटक महिंद्रा बैंक को दी गई छूट का हवाला देते हुए गांधी ने कहा कि रिजर्व बैंक ऐसे कदमों पर गौर कर सकता है। कोटक महिंद्रा बैंक के मामले में प्रवर्तक समूह को लंबी अवधि में 26 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने की अनुमति दी गई है लेकिन उसके मतदान के अधिकार 15 प्रतिशत तक सीमित होंगे।

उन्होंने स्वतंत्र निदेशकों की शक्तियों को बढ़ाने, निदेशक मंडल में प्रवर्तकों की सीटों को सीमित करने और निर्णय लेने को प्रभावित करने की उनकी क्षमता जैसे अन्य पहलुओं का भी सुझाव दिया। गांधी ने कहा कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण से पहले भी कई प्राथमिक समस्याएं थी जिसमें हितों का टकराव, निधियों का विभाजन, जमाकर्ताओं के बजाय समूहों के हित के आधार पर बैंक के निर्णय जैसी चीजें होती हैं। 

गांधी ने कहा कि अभी आरबीआई प्रवर्तक को 15 प्रतिशत और अन्य व्यक्तियों को 10 प्रतिशत तक हिस्सेदारी रखने की अनुमति देता है। संकटग्रस्त बैंकों के मामले में वह अधिक हिस्सेदारी की भी मंजूरी दे सकता है। पीएमसी सहकारी बैंक और यस बैंक जैसे मुद्दों पर एक सवाल के जवाब में गांधी ने कहा कि कंपनी संचालन को अधिक महत्व दिया जाना चाहिए। यह हमेशा स्वामित्व का स्तर ही नहीं है जो परेशानी का कारण बन सकता है। उन्होंने कहा कि पेशेवर भी बाजार में अपने स्टैंड का लाभ उठा सकते हैं और बैंक स्थापित करने में मदद कर सकते हैं। हालांकि उन्होंने कहा कि इसके अनुभव कुछ मामलों में सफल रहा है और कुछ मामलों में नहीं।

आर गांधी ने छोटे बैंकों का आपस में विलय कर बड़े बैंक बनाने से जुड़े एक सवाल पर कहा कि भारत भौगोलिक दृष्टि से भी बहुत बड़ा देश है और विविधता के नजरिये से भी। इसलिए हमें हर आकार के बैंकों की जरूरत है, जो हर किसी की जरूरतों को पूरा कर सकें।

 

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