GST में सस्ते के बजाय महंगे हो सकते हैं मकान

Edited By ,Updated: 05 Aug, 2016 12:49 PM

gst real estate

वस्तु एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) से रियल एस्टेट सैक्टर के कामकाज में पारदर्शिता आ सकती है और इससे मकान खरीदना सस्ता हो सकता है।

नई दिल्लीः वस्तु एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) से रियल एस्टेट सैक्टर के कामकाज में पारदर्शिता आ सकती है और इससे मकान खरीदना सस्ता हो सकता है। बिल्डर्स और टैक्सेशन कंसल्टेंट्स का मानना है कि लेकिन ऐसा तभी होगा जब जी.एस.टी. मकान की खरीदारी पर लगने वाले सभी टैक्स के रेट से कम होगा।

 

टैक्स कंसल्टेंट्स का यह भी कहना है कि मॉडल जी.एस.टी. लॉ में सैक्टर को लेकर एक दिक्कत बनी हुई है, जिसे अब तक नजरअंदाज किया गया है। इसके चलते स्टांप ड्यूटी सहित होम बायर की तरफ से चुकाए जाने वाले कुल टैक्स में बढ़ौतरी हो सकती है। अभी तो टैक्स लगभग 14 फीसदी लग रहा है लेकिन जी.एस.टी. में यह प्रॉपर्टी की कीमत का लगभग 20 से 22 फीसदी हो सकता है। मॉडल जी.एस.टी. के मुताबिक उन मामलों में इनपुट टैक्स क्रैडिट उपलब्ध नहीं होगा, जिसमें गुड्स और सर्विसेज के इस्तेमाल से बना एंड प्रॉडक्ट प्लांट और मशीनरी छोड़कर कोई और अचल संपत्ति होगी। अगर बिल्डर्स मकान बना रहे हैं तो एंड प्रॉडक्ट बिल्डिंग होगा जो एक अचल संपत्ति होगी।

 

अर्न्स्ट ऐंड यंग में टैक्स पार्टनर अभिषेक जैन के मुताबिक, 'इससे होम बायर के लिए मल्टीपल टैक्सेशन हो जाएगा क्योंकि बिल्डर नॉन क्रेडिटेबल टैक्स का बोझ बायर्स पर डाल देगा क्योंकि उनको मकान के लिए अपने से वसूल की जाने रकम पर जी.एस.टी. देना होगा और रजिस्ट्रेशन के लिए भी स्टांप ड्यूटी देनी होगी।' मोटे तौर पर लगाए गए अनुमान के मुताबिक, अगर बिल्डर को टैक्स क्रैडिट नहीं मिलता है तो होमबायर्स पर लगने वाला टैक्स मौजूदा 14 से 16 फीसदी से बढ़कर कुल 20 से 22 फीसदी तक पहुंच जाएगा लेकिन बीएमआर ऐंड असोसिएट्स में पार्टनर प्रशांत भट का कहना है कि जी.एस.टी. में कमर्शल प्रॉपर्टी बनाने वाले डिवेलपर्स को टैक्स क्रैडिट नहीं मिलेगा लेकिन रेजिडेंशल प्रॉपर्टी डिवेलपर इससे प्रभावित नहीं होंगे। 

 

इंडस्ट्री बॉडी क्रेडाई के नैशनल प्रेजिडेंट गीतांबर आनंद का कहना है कि मल्टीपल टैक्स के चलते अभी हो रही दिक्कतें GST में घटेंगी। इससे पक्के तौर पर सबके लिए बराबरी का मौका मिलेगा। जीएसटी, VAT, सर्विस टैक्स, सेंट्रल सेल्स टैक्स, एक्साइज ड्यूटी सहित कई ऐसे टैक्स की जगह लेगा, जो अब तक बिल्डर चुकाते रहे हैं। इनमें से कई टैक्स के चलते डबल टैक्सेशन की स्थिति पैदा हो जाती है।

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