निजी क्षेत्र के बैंकों के राष्ट्रीयकरण का यह सही समयः कर्मचारी संगठन

Edited By Supreet Kaur,Updated: 13 Apr, 2018 04:40 PM

right time for nationalization of private sector banks employee organization

निजी क्षेत्र के कुछ प्रमुख बैंकों में कामकाज में खामियां और जानकारी छिपाने के आरोपों के सामने आने के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के बैक कर्मचारी संगठनों ने निजी क्षेत्र के बैंकों के राष्ट्रीयकरण की वकालत की है। संगठनों ने कहा कि विभिन्न आरोपों और...

नई दिल्लीः निजी क्षेत्र के कुछ प्रमुख बैंकों में कामकाज में खामियां और जानकारी छिपाने के आरोपों के सामने आने के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के बैक कर्मचारी संगठनों ने निजी क्षेत्र के बैंकों के राष्ट्रीयकरण की वकालत की है। संगठनों ने कहा कि विभिन्न आरोपों और दिशानिर्देशों के उल्लंघन के लिए लगाए गए जुर्माने जनता के पैसे के इस्तेमाल की उनकी क्षमता पर गंभीर प्रश्न उठाते हैं। उन्होंने आगे कहा कि हाल में हुई घटनाओं ने सबसे कुशल बैंक होने के इनके दावों की हवा निकाल दी है।

अखिल भारतीय बैंक अधिकारी परिसंघ (एआईबीओसी) के महासचिव डी टी फ्रांको ने बयान में कहा कि कई निजी क्षेत्र के बैंक संकट का सामना कर रहे हैं और आईसीआईसीआई बैंक और एक्सिस बैंक इसके उदाहरण हैं। परिसंघ के संयुक्त महासचिव रविंदर गुप्ता ने कहा, इसलिए निजी क्षेत्र के बैंकों में भारत सरकार और आरबीआई के हस्तक्षेप और इन बैंकों के राष्ट्रीयकरण का यह सही समय है। बैंकिंग क्षेत्र अर्थव्यवस्था को नई ऊचाइयों पर ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और कृषि क्षेत्र के साथ-साथ रोजगार में वृद्धि करता है।

अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ (एआईबीईए) ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त किए हैं। संघ के महासिचव सी.एच. वैंकटचलम ने कहा कि बैंकिंग क्षेत्र में क्षमता और कुशलता के चैंपियन कहलाने वालों की वास्तविकता के बारे में अब सभी को पता चल चुका है। उन्होंने कहा, ‘‘आईसीआईसीआई बैंक और एक्सिस बैंक दोनों के पास 9,00,000 करोड़ रुपए का जनता का धन जमा है। हमें जनता के इस पैसे को बचाना होगा। आईसीआईसीआई बैंक को बैंकिंग क्षेत्र का अग्रणी बैंक माना जाता रहा है, अब सच्चाई सबके सामने है।’’ वैंकटचलम ने कहा कि पंजाब नेशनल बैंक में नीरव मोदी धोखाधड़ी मामला सामने आने के बाद से विभिन्न-संगठनों की तरफ से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण की मांग की जाने लगी थी। उद्योग मंडल एसोचैम ने सबसे पहले यह मांग उठाई थी और उसके बाद फिक्की ने भी इसकी वकालत की। इसके बाद मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियम और नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष भी इस मांग के समर्थन में उतर आए।         

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