‘आनंदी’- कहानियां यथार्थ से ही तो उत्पन्न होती हैं

Edited By Ajay kumar,Updated: 18 Dec, 2022 10:54 AM

according to jyoti jha stories arise from reality in her book anandi

नारी की क्षमता की अवहेलना करके एक स्वस्थ और समृद्ध समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है। सदियों से अनवरत परिवर्तन द्वारा समाज में महिलाओं की परिस्थिति निरंतर बदलती रही है, परंतु समाज में यथोचित स्थान पाने के लिए आज भी उन्हें संघर्षरत रहना पड़ता है।

नारी की क्षमता की अवहेलना करके एक स्वस्थ और समृद्ध समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है। सदियों से अनवरत परिवर्तन द्वारा समाज में महिलाओं की परिस्थिति निरंतर बदलती रही है, परंतु समाज में यथोचित स्थान पाने के लिए आज भी उन्हें संघर्षरत रहना पड़ता है। 

ऐसे में कुछ ऐसी महिलाएँ और उनकी कहानियाँ उभर कर आती हैं जो पारिवारिक या सामाजिक स्तर पर अपने जीवन संघर्ष द्वारा न केवल स्वयं को, बल्कि अपनों को तथा औरों को भी प्रेरित करती हैं। नई सोच, बदलाव, और प्रगतिशील विचारधारा से परिपूर्ण उनका जीवनक्रम महिला सशक्तिकरण का उदाहरण बन जाता है। फिर चाहे वो सामाजिक परिदृश्य में कोई प्रसिद्ध नाम हो या फिर कोई अज्ञात कहानी जो स्वयं में ही एक मिसाल हो। ऐसी ही एक महिला सशक्तिकरण की अस्पर्शित कड़ी को एक कहानी का स्वरूप देकर चर्चित लेखिका ज्योति झा ने साहित्य और समाज के समक्ष अपने लघु उपन्यास ‘आनंदी’ द्वारा महिला सशक्तिकरण का उल्लेखनीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। 

वह कहानी जो पाठकों के हृदय में स्थान प्राप्त कर चुकी है और मीडिया में भी चर्चा का विषय रही है, प्रतिष्ठित संस्थानों, लिटरेरी फ़ेस्टिवल, बुक फ़ेयर, अवार्ड नॉमिनेशन में स्थान प्राप्त कर चुकी है, क्या यह केवल लेखिका की कल्पना मात्र से उत्पन्न एक पात्र है या फिर एक जीवंत उदाहरण? “कहानियाँ यथार्थ से ही तो उत्पन्न होती हैं, कुछ ज़िंदगी के पन्ने, किंचित जीवन के अनुभव, प्रचूर अवलोकन, और अनंत कल्पनाओं एवं परिकल्पनाओं का मिश्रण”, मानने वाली ज्योति द्वारा लिखित यह कहानी ‘आनंदी’, उनकी माँ के जीवन से प्रेरित है। इस प्रेरणाश्रोत को संचित करने में उनकी सहायक हुई उनकी बड़ी बहन अर्चना झा, जो कि योग्यता से वकील एवं प्रयाग संगीत समिति, इलाहाबाद से संगीत में विशारद प्राप्त की हुई गृहणी हैं जिन्होंने अपनी व्यस्त दिनचर्या एवं ज़िम्मेदारियों से बहुमूल्य समय निकालकर इस धरोहर को संगृहीत किया। 

ज्योति ने अपनी माँ मंजुबाला ठाकुर के संघर्षमय जीवन के कुछ पहलुओं एवं घटनाक्रमों को कहानियों की बनावट देकर एक विस्तृत क़ाल्पनिकता की आकृति में ढालकर उसे पुस्तक का स्वरूप दिया। पुस्तक में दर्शायी गई कुछ कड़ियाँ उनकी माँ के जीवन से प्रेरित हैं, जिन्हें काल्पनिक पात्रों और घटनाक्रमों के माध्यम से विचारों और शब्दों के भव-सागर द्वारा प्रस्तुत किया गया है।पात्रों के नाम, स्थान, घटनाएँ बदल दी गईं हैं, और इस कहानी में चित्रित पात्र और घटनाओं का वास्तविक व्यक्तियों, जीवित या मृत के लिए समानता अभिप्रेत नहीं है, केवल संयोग मात्र है। पुस्तक का संपादन द लिटरेरी मिरर के एडिटर-इन-चीफ़ और लिटेरिया इनसाइट के को-फ़ाउंडर नीतीश राज ने किया है और यह पुस्तक बुक्सक्लिनिक पब्लिशिंग द्वारा प्रकाशित की गई है जो ऐमज़ान और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है। पुस्तक की ऑडीओबुक झंकार स्टूडीओ द्वारा स्टोरीटेल पर उपलब्ध है जिसे ज्योति ने अपनी आवाज़ में प्रस्तुत किया है। 

बिहार राज्य के ग्राम लखपूरा में जन्मी मंजुबाला ने विवाह पश्चात अपने पति श्री कैलाश ठाकुर के साथ ससुराल मलिकपूर में पदार्पण किया और तत्पश्चात बिहार के अन्य कई शहरों में पति के व्यावसायिक तबादले के कारण निवास किया। योग्यता से एम ए, बी एड मंजुबाला कई वर्षों तक कॉलेज में साइकोलॉजीकी प्रोफ़ेसर के रूप में कार्यरत रहीं और आगे चलकर उन्होंने अपनी नौकरी अपने बच्चों एवं पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के लिए त्याग दी। आज भी सेवा निवृत होने के पश्चात, भागलपुर, बिहार में अपने पति के साथ रह रही मंजुबाला, आत्मनिर्भरता और शिक्षा के मज़बूत स्तंभ को अपने विचारों, आचरण, और जीविका द्वारा प्रदर्शित करती हैं। उन्होंने अपने बच्चों में भी वही मूल्य और संस्कार संचारित किए हैं और जो उनकी पुत्रियों की उपलब्धियों में प्रत्यक्ष है। 

तीन पुस्तकों की लेखिका, ज्योति झा एक एच आर प्रोफ़ेशनल रह चुकी हैं। इंग्लैंड और अमेरिका में कई वर्षों तक रहने के बाद उन्होंने लेखन को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम चुना और वर्तमान में एक लेखिका और कॉलम्निस्ट हैं। ‘द टाइम्ज़ ऑफ इंडिया राइट इंडिया’ की सम्मानित विजेता रह चुकी ज्योति IITs और IIM लखनऊ जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में स्पीकर और पैनलिस्ट रह चुकी हैं। सावित्रीबाई फुले राष्ट्रीय सम्मान, आयकॉनिक ऑथर अवार्ड २०२२, ग्लोबल प्रोग्रेसिव विमन अवार्ड २०२२, एवं एशियन लिटरेरी अवार्ड (एशियन चेम्बर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीस) से सम्मान प्राप्तज्योति, IIT BHU के काशियात्रा में एक सम्मानित जज रह चुकी हैं। साहित्य की गुणवत्ता को ध्यान  मेंरखते हुएअपने लेखन के अथक प्रयासों से समाज  को साहित्य के नए रूप से मिलाने के लिए ज्योति निरंतर प्रयत्नशील हैं।  

ग्रामीण परिवेश में १९६०-७० के दशक में जन्मी मंजुबाला अपनी विलक्षण बुद्धि, स्वाभिमान,और दृढ़-निश्चय से ग़रीबी, अशिक्षा, और सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध निरंतर लड़ती रहीं। स्वयं एक औरत होने की लड़ाई और फिर लगातार बेटियों को जन्म देकर, उनका पालन-पोषण कर उन्हें अच्छी शिक्षा देना, विवाह संपन्न कराना, और उन्हें आत्मनिर्भर होने की योग्यता प्रदान करना; यह एक जंग से कम नहीं था उनके लिए। अपने हौसले, चतुराई, एवं निडरता के बल पर समाज की विषमता के विरुद्ध लड़ते हुए यह सब कर दिखाया उन्होंने क्योंकि  उनके इरादे लौह  स्तंभ की भांति मज़बूत थे। उनकी कहानी के पूरक उनके जीवनसाथी इस जीवन द्वंद्व और ज़िंदगी के सफर में लगातार उनके साथ हैं।  

ग्रामीण परिवेश की सादगी भरी ज़िंदगी, सामाजिक व्यवस्था का आधार-स्तम्भ जिनकी जड़ों से निकलकर शहरों में अपना अस्तित्व टटोलती पीढ़ियाँ, समाज में महिलाओं का स्थान और उनकी विडंबनायें, विगत कई दशकों में महिलाओं के प्रति सामाजिक बदलाव, ऐसे कई अहम पहलुओं को उजागर करती यह कहानी आज की युवा पीढ़ी को समाज की अस्पर्शित कड़ियों से जोड़ती उनके मनो मुताबिक समाज की वास्तविकता से मिलाने का प्रयास है और कई स्तरों से शिक्षाप्रद है। जब एक साधारण औरत अपनी सामान्य जीवन की विषम परिस्थितियों से नहीं घबराती, हिम्मत, हौसला, और बुद्धि का उपयोग कर जीवन की राह में समृद्धी की ओर अग्रसर होती है, विपदाओं पर विजय हासिल करती है, तो वह अपनेआप में नारी सशक्तिकरण का प्रतिरूप बन जाती है जो कि समाज की हर महिला के लिए प्रेरणा श्रोत बन सकती है। उस आनंदी की यह कहानी है – ‘आनंदी’।

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