Edited By ashwani,Updated: 22 Oct, 2021 10:09 PM
खाद के लिए मारे-मारे फिर रहे किसान, अगले सीजन की बुआई में हो रही है देरी
चंडीगढ़, (बंसल): पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र ङ्क्षसह हुड्डा ने एक बार फिर सरकार से किसान आंदोलन का सकारात्मक समाधान निकालने के लिए आग्रह किया। हुड्डा का कहना है कि किसानों को अपने घर-परिवार से दूर दिल्ली बॉर्डर और अलग-अलग धरनों पर बैठे हुए 11 महीने हो चुके हैं। किसानों की मांगें पूरी तरह जायज हैं। बावजूद इसके सरकार अपना अडिय़ल रुख बदलने को तैयार नहीं है। सरकार को बिना देरी के राष्ट्रहित में एवं अन्नदाता के सम्मान में एक कदम बढ़ाते हुए गतिरोध खत्म करते हुए बातचीत शुरू करनी चाहिए। लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता सर्वोपरि होती है, इसलिए आखिरकार हर गतिरोध का समाधान संवाद से ही निकल सकता है।
पुलिसिया साये में भी खाद नहीं मिल पा रही
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि प्रदेश में आज किसानों को हर स्तर पर हरियाणा गठबंधन सरकार की अनदेखी का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। आज डी.ए.पी. खाद के लिए किसान मारे-मारे घूम रहे हैं। कई-कई घंटे, कई-कई दिन लंबी-लंबी कतारों में इंतजार करने के बाद भी किसानों को पुलिसिया साये में भी पर्याप्त खाद नहीं मिल पा रही। इसकी वजह से अगले फसली सीजन की बुआई में देरी हो रही है।
एम.एस.पी. से पीछा छुड़वाना चाहती है सरकार
हुड्डा ने कहा कि सरकार न बुआई के समय किसानों को खाद मुहैया करवा पा रही है और न ही बिकवाली के वक्त किसानों को एम.एस.पी. दे रही है। धान की खरीद में देरी और उठान न होने की वजह से बड़ी तादाद में किसान एम.एस.पी. से वंचित रह गए। उधर, सरकार ने बाजरा खरीदने से तो इनकार ही कर दिया। इसी तरह सरकार धीरे-धीरे करके एम.एस.पी. से पीछा छुड़वाना चाहती है। क्योंकि बाजरा किसानों को जिस भावांतर भरपाई योजना के हवाले किया गया है वो पहले ही पूरी तरह विफल साबित हो चुकी है। किसान पर आज चौतरफा मार पड़ रही है।
खराबे की लगभग 60,000 शिकायतें सरकार के पास पहुंची
इसी तरह सरकार की फसल बीमा योजना की विफलता में हर सीजन एक नया अध्याय जुड़ जाता है। लगातार कई सीजन से किसान मौसम की मार झेल रहे हैं लेकिन बीमा कंपनियों और सरकार की तरफ से उन्हें कोई मुआवजा नहीं दिया जा रहा। इसी खरीफ सीजन में खराबे की लगभग 60,000 शिकायतें सरकार के पास पहुंची हैं लेकिन फिर भी किसानों के नुकसान की भरपाई नहीं की जा रही। स्पष्ट है कि सरकार की योजनाएं सिर्फ कागजों तक सिमटी हुई है और कई योजनाओं को तो सरकार ने पूरी तरह बंद कर दिया है।