प्राइवेट स्कूलों के शोषण का शिकार हो रहे अभिभावक

Edited By Priyanka rana,Updated: 08 Apr, 2019 01:06 PM

private school

शिक्षा सचिव कृष्ण कुमार की तरफ से शिक्षा सुधार के लिए किए जा रहे प्रयासों के बावजूद शिक्षा को व्यापार बनाने वाले बाज नहीं आ रहे हैं।

कुराली(बठला) : शिक्षा सचिव कृष्ण कुमार की तरफ से शिक्षा सुधार के लिए किए जा रहे प्रयासों के बावजूद शिक्षा को व्यापार बनाने वाले बाज नहीं आ रहे हैं। नया शैक्षिक सैशन शुरू होते ही निजी स्कूलों की मनमानी शुरू हो गई है। 

शहरों, कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड के साथ एफीलिएटिड स्कूलों की तरफ से इश्तिहारबाजी में विद्यार्थियों और माता-पिता को आकर्षित करन के लिए अपने स्कूलों को सी.बी.एस.ई या आई.सी.एस.ई के साथ एफीलिएटिड या अपने स्कूलों की पढ़ाई इन केंद्रीय बोर्डों के पैटर्न पर करवाए जाने का प्रचार जोर-शोर के साथ किया जा रहा है। 

इलाके के दर्जन से अधिक ऐसे स्कूल हैं जिनकी तरफ से विभागीय नियमों को ताक पर रखते पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड से एन.ओ.सी लिए बगैर अपने स्कूलों को सी.बी.एस.ई. के साथ जोड़े जाने की इश्तिहारबाजी सरेआम की जा रही है जबकि शिक्षा विभाग सब कुछ ध्यान में होने के बावजूद अनजान बना हुआ है। लोग इस लूट का शिकार बन रहे हैं।

वर्दी-किताबें खरीदने को किया जा रहा मजबूर :
नया शिक्षा स्तर शुरू होने की तरफ से पहले ही निजी स्कूलों में किताब और वर्दियां बिक्री का करोबार भी शुरू हो गया है। जैसी एक तरफ दाखिला के नाम पर महगी राशि अभिभावकों की तरफ से वसूली जा रही है वहां ही दूसरे तरफ महंगे भाव की किताबें और वर्दियां अभिभावकों को स्कूल की तरफ से ही खरीदने पर मजबूर किया जा रहा है। 

निजी स्कूलों की तरफ से स्कूल परिसर में ही दुकानों खोल दी गई है। ऐसे में अभिभावकों को मजबूरीवश स्कूलों में ही महंगे भाव की किताबें खरीदनी पड़ रही है। कुछ स्कूलों ने स्कूल के बाहर ही टेम्परेरी दुकाने खोल कर धंधा चलआ हुआ है और कुछ स्कूल सांठ गांठ कर वकइदा कच्ची पर्ची बना अभिवावको को कमीशनखोरी वाली दुकानों पर भेज रहे है। 

फीस में किया इजाफा :
हालांकि स्कूल संचालक फीस नहीं बढ़ाने की बात कर रहे हैं लेकिन अभिभावकों की मानें तो स्कूल संचालक प्रतिवर्ष फीस और दाखिला फीस बढ़ा देते हैं। स्कूल संचालकों की तरफ से कमाई के नए-नए तरीके ईजाद किए जा रहे है। 

निजी स्कूल संचालकों ने अपने स्कूल परिसर में ही किताबें बेचने के लिए स्थान निर्धारित कर दिया है। सभी जमातों के लिए यहा किताबें उपलब्ध करवाई जाती है। हालांकि स्कूल संचालकों का दावा होता है कि यह किताबें बाजार की तरफ से सस्ते मूल्य पर उपलब्ध है लेकिन नियम बताते है कि बाजार की तरफ से महंगे दामों पर यह किताबें बेची जा रही है। 

निजी स्कूलों का धंधा, अभिभावकों की मजबूरी :
निजी स्कूलों में बाजार की तरफ से भी महगे दामों पर किताबें बेचने का बेशक निजी स्कूलों का धंधा हो लेकिन यह अभिभावकों की मजबूरी भी है। इसके पीछे कई कारण है। पहला तो यह कि यह किताबें और वर्दियां बाजार में सुविधा की तरफ से नहीं मिलती और दूसरा यदि कोई विद्यार्थी बाजार की तरफ से किताबें या वर्दियां ले आए, तो उसको पूरा साल व्याकुल किया जाता है। परन्तु कई दुकानदारों ने कई स्कूलों के साथ वर्दियां बनाने का करार भी किया है। इतना ही नहीं दूसरी कंपनी की किताबें खरीदने पर कई बार वापस भेज दी जाती है। 

शिक्षा विभाग और प्रशासन बने मूकदर्शक :
निजी स्कूल संचालकों द्वारा चलाए गए किताब और वर्दी बिक्री के धंधे पर शिक्षा विभाग और प्रशासन का भी कोई नियंत्रण नहीं है। स्कूलों में बेशक वर्दियां बेची जाओ या किताबें, इस बारे में नहीं तो शिक्षा विभाग के अधिकारी कुछ कर सकता है है और नहीं ही स्थानीय प्रशासिक अधिकारी। ऐसे में निजी स्कूल संचालक धडल्ले की तरफ से अपना धंधा चमकाने में जुटे हैं। 

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