Edited By ,Updated: 25 Apr, 2016 11:55 AM
मंत्रणा का भेद न खुले
षट्कर्णाद् भिद्यते मंत्र:।
अर्थ :
मंत्रणा का भेद न खुले
षट्कर्णाद् भिद्यते मंत्र:।
अर्थ : छ: कानों में पडऩे से मंत्रणा का भेद खुल जाता है।
भावार्थ : इस सूत्र का आशय यही है कि राजा और उसके प्रधानमंत्री के अलावा जब दोनों के बीच की मंत्रणा किसी तीसरे व्यक्ति के कानों में पड़ जाती है तो उसका भेद खुल जाता है।
दो लोगों के बीच जो गुप्त वार्तालाप होती है वह उन दोनों तक रहे तो अच्छा है यदि वो अन्य के कानों तक पंहुच जाती है तो वो भेद नहीं रहता बल्कि जग जाहिर हो जाती है।
दैनिक जीवन में यदि आप किसी बात को गुप्त रखना चाहते हैं तो उसे अपने तक सिमित रखें क्योंकि जो राज आप अपने भीतर छुपा कर नहीं सकते उस को बनाए रखने की उम्मीद किसी दूसरे व्यक्ति से कैसे की जा सकती है।