हरिकथा सुनने से पहले ध्यान रखें ये बात तभी पुण्य के भागी बनेंगे आप

Edited By ,Updated: 09 Feb, 2016 08:00 AM

harikatha

पैसे दोगे तो पाठ होगा, नहीं दोगे तो नहीं होगा जीवन में हम लोग जो हरिकथा सुनते हैंं, उसका पूरा फायदा तब होगा जब हम ये हरिकथा किसी अच्छे भक्त से सुनें। जिनका भगवान से प्रेम है,

पैसे दोगे तो पाठ होगा, नहीं दोगे तो नहीं होगा
 
जीवन में हम लोग जो हरिकथा सुनते हैंं, उसका पूरा फायदा तब होगा जब हम ये हरिकथा किसी अच्छे भक्त से सुनें। जिनका भगवान से प्रेम है, उनसे हरिकथा अगर हम सुनेंगे तो हमारे हृदय में भगवान के लिये प्रेम जागृत हो जायेगा।
 
हमारे गोस्वामी तुलसी दासजी कहते हैं, 'बिनु सत्संग न हरिकथा…' 
 
अर्थात- जब तक सच्चे भक्त की संगति हम नहीं करेंगे, तब तक हरिकथा नहीं होगी। 
 
यह ठीक है की बहुत से पेशेवर वक्ता हो सकते हैं जो श्रीमद् भागवतम् का सप्ताह, इत्यादि करते हैं। आप उनसे कहेंगे तो वे कहेंगे की ठीक है, भागवत कथा हो जायेगी, परन्तु 50000 रुपये लगेंगे। 
 
या 
 
रामायण का पाठ हो जायेगा लेकिन हमारी पूरी टीम है। उसका खर्चा देना होगा और इतनी फीस लगेगी। 
 
या 
 
माता रानी का जागरण हो जायेगा। हमारी ऑर्केस्ट्रा है, ऐसा रंग जमायेंगे की रात भर कोई उठ के नहीं जायेगा। किन्तु इसके लिये 100000 रूपया लगेगा। 
 
आप हां करेंगे तो प्रोग्राम होगा। नहीं तो नहीं होगा। साफ है की यह तो व्यापार हो रहा है। बिज़नेस हो रहा है। भगवान को भी पता है की यह मेरे लिये नहीं हो रहा है। यह तो पैसे के लिये हो रहा है। पैसे दोगे तो पाठ होगा, नहीं दोगे तो नहीं होगा। जो हम समझ रहे हैं, क्या भगवान नहीं समझेंगे?
 
माता रानी को समझ नहीं आ रहा होगा क्या की यह जो जगराते में इतना नाच-गा रहे हैं, वो मेरे लिये नहीं हो रहा है? अगर यह बात हमारी समझ में आ रही है तो भगवान श्रीराम को समझ क्यों नहीं आ रही होगी, भगवान श्रीकृष्ण को समझ में क्यों नहीं आ रही होगी।
 
अतः शुद्ध भक्त के मुख से हरिकथा सुननी चाहिये। जब तक भगवान के सच्चे भक्त की संगति नहीं होगी तब तक हरिकथा नहीं होगी। जब तक सच्चे भक्त के मुख से हरिकथा नहीं सुनेंगे तब तक अज्ञान, संसार के प्रति मोह, संसार के प्रति 'मैं' पन, शरीर के प्रति 'मैं' पन नहीं जायेगा। जब तक मोह नहीं जायेगा तब तक भगवान से प्रेम नहीं होगा। 
 
तो, संसार के प्रति मोह कैसे जायेगा? हरिकथा सुनकर, शुद्ध भक्तों के मुख से, जिनका भगवान से प्रेम है। जो अभक्त हैं, जो भगवान के चरणों में समर्पित नहीं हैं, जो व्यवसाय करते हैं, उनके मुख से हरिकथा नहीं सुननी चाहिये क्योंकि उससे जीवन में परिवर्तन नहीं आयेगा। 
 
जैसे गाय का दूध बहुत पौष्टिक होता है। अगर उसी दूध को सांप मुंह लगा दे तो वह विष बन जाता है। दोनों विपरीत फल देंगे, हालांकि देखने को दोनों ही दूध हैं। इसी प्रकार भगवान के प्रति प्रेम जागृत करने की हमारे मन में जो भावना है, वो ही खत्म हो जायेगी, अभक्तों से हरिकथा सुनकर। जीवन में परिवर्तन हो, संसार से वैराग्य हो, भगवान के प्रति अनुराग हो, भक्ति मार्ग में हम आगे बढ़ें,  इसके लिये जरूरी है शुद्ध भक्तों से हरिकथा सुनना।
 
श्री गौड़िया मठ की ओर से
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
bhakti.vichar.vishnu@gmail.com
 

 

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