खुशी का मंत्र: जितनी जरूरत है, उतने या उससे कम में करें गुजारा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 06 Aug, 2023 09:41 AM

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विश्व खुशहाली रिपोर्ट में भारत पिछड़ा क्यों ? इस सवाल के कई जवाब हो सकते हैं, पर ऐसे भारतीय हैं जो आवश्यकताओं को सीमित

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Anmol Vachan : विश्व खुशहाली रिपोर्ट में भारत पिछड़ा क्यों ? इस सवाल के कई जवाब हो सकते हैं, पर ऐसे भारतीय हैं जो आवश्यकताओं को सीमित और उनमें कटौती कर, खुद को वंचित रखकर, त्यागपूर्ण जीवन जीकर और लाइफस्टाइल बदलकर वास्तविक खुशी पाने की कोशिश कर रहे हैं। हम रिपोर्ट में नेपाल, पाकिस्तान, चीन, बंगलादेश, म्यांमार, मालदीव और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों से भी पीछे हैं। अफगानिस्तान जरूर अपवाद है।
 
यह रैंकिंग खुशहाली के माप के लिए इन प्रमुख मानकों का इस्तेमाल करती है- प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय उत्पाद, सेहतमंद जीवन संभावना, जीवन के निर्णय लेने की स्वतंत्रता, उदार वृत्ति, लैंगिक समानता, संकटकाल में सहायता मिलने की आशा और भ्रष्टाचार की गैरमौजूदगी। निश्चित रूप से हमारा देश, जो विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में सबसे तेज प्रगति करने वाला देश होने का दावा करता है, के पास इस रिपोर्ट को चुनौती देने के कई तर्क होंगे, पर इस प्रश्न का क्या कि संतोषी जीवन को वरीयता और विश्व को योग-अध्यात्म देने वाला हमारा देश आखिर खुश क्यों नहीं है ?

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यहां हम खुद को उन लोगों तक सीमित रखते हैं, जिन्होंने आवश्यकताओं को सीमित और उनमें कटौती करके, खुद को वंचित रखकर, त्याग से और नई जीवनशैली अपना कर वास्तविक खुशी पाने की कोशिश की है। लप्रो. आलोक सागर करोड़ों की संपत्ति का मोह त्यागकर बैतूल जिले में आदिवासियों के बीच घासफूस की झोपड़ी में रहकर उनके अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। पहनने को उनके पास सिर्फ तीन कुर्ते हैं और आवागमन के लिए साइकिल।
 
ज्यूब लोबो ने पति एविन पेस के साथ नामी नौकरियां व बेंगलुरू की पाश कॉलोनी का ऐश्वर्यशाली फ्लैट छोड़ और अपना सारा सामान बेचकर बच्चों के साथ मिट्टी से बने 600 वर्गफुट के घर में रहना शुरू कर दिया है। वे खेती करते हैं और अपना खाना लकड़ियो पर बनाते हैं तथा बीमार पड़ने पर डॉक्टर को दिखाने की जरूरत आज तक उन्हें महसूस नहीं हुई। वरिष्ठ पद पर कार्यरत एक परिचित की पॉश सोसायटी की कवर्ड पार्किंग में उनकी दो कारें कई दिन यूं ही खड़ी रह जाती हैं। वे काम पर जाते हैं और सार्वजनिक परिवहन से लौटते हैं वॉक करते हुए। क्यों? ‘दिन भर के तनाव से रिलैक्स होने के लिए।’

कौस्तुभ ताम्हणकर के घर में घुसने से पहले, सामने के दरवाजे पर लिखा नजर आता है- वी डू नॉट प्रोड्यूस गार्बेज पत्नी शरयू को सफाई करते देखते हुए ताम्हणकर ने महसूस किया कि उनके घर का कचरा एक डस्टबिन से दूसरे में जाते हुए अंतत: डंपिंग ग्राउंड के ही हवाले हो रहा है और जलाए जाने के बाद सिर्फ प्रदूषण का कारण बन रहा है। पहला काम उन्होंने किया घर के तमाम डस्टबिन हटाने का। आज उनके घर में एक भी कागज फैंका नहीं जाता। इकट्ठा होकर वह सीधे रद्दीवाले के पास जाता है।

वी.आर. अय्यर फैंक दिए गए कबाड़ से खुद की बनाई साइकिल पर घूमते हैं और पानी को रिसाइकिल कर इस्तेमाल करते हैं। वी.आर. अय्यर अपने इस विश्वास की रक्षा के लिए, कि दुनिया में हर चीज की अपनी उपयोगिता है, बर्बाद करने के लिए भरसक कुछ रखा ही नहीं करते।

साइकोथैरेपिस्ट मीरा शाह और उनके बैंकर पति नीरव जब भी किसी रैस्टोरैंट जाते हैं, तो बचा हुआ खाना पैक कराने के लिए अपने बर्तन खुद लेकर जाते हैं। वे कहते हैं, ‘गौर करके देखिए, आपको लगेगा कि घर में जिन चीजों का आप इस्तेमाल करते हैं, उनमें आधी की आपको जरूरत ही नहीं है।’ दीवाली की सफाई करते समय खुद महसूस कीजिए। पिछली दीवाली में जो चीजें आपने यह सोचकर संभालकर रखी हैं कि कभी-न-कभी इनका इस्तेमाल होगा ही, उन्हें देखने का मौका इसी दीवाली में आया है कि नहीं ! खरीदी कई महंगी चीजें अलमारियों में अभी भी जस की तस धरी होंगी। कितना भी बड़ा घर हो, आखिर आपका अधिकतर वक्त किसी एक कमरे में ही बीतता है कि नहीं ! तो फिर नए का मोह और संचय क्यों ? शाह दंपति द्वारा पर्यावरण की रक्षा के लिए अपनाए कुछ उपाय तो आपको हैरान कर देंगे। मसलन, सैनिटरी पैड की जगह सैनिटरी कप का इस्तेमाल और पार्लर से अपने कटे बाल वापस लाकर कंपोसिंटिंग बिन में डाल देना।

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स्कूल जाने और होमवर्क से पड़ने वाले दुष्प्रभावों को देखते हुए बिजनैसमैन अजय महाडिक और रेलवे में काम करने वाली उनकी पत्नी माधवी ने बेटी अनुराधा को औपचारिक स्कूल में भेजा ही नहीं, इस पढ़ाई की कमी को उसे खुद पढ़ाकर पूरा किया।

कालबादेवी के पढ़े-लिखे झा साहब लगी-लगाई नौकरी छोड़कर जिंदगी भर से एक अटैची से गुजारा कर रहे हैं, जिसमें ब्रश, तौलिए से लेकर दो-चार कपड़े और किताबें होती हैं। खाना-पीना सभा-आयोजनों में, जिनमें अधिकतर के वह बिन बुलाए मेहमान होते हैं, नहाना-निपटना पब्लिक बाथ और टायलैट्स में, इलाज सरकारी अस्पतालों में और सोना बाजार के बाकड़ों पर। इस पर भी आज तक उन्होंने किसी से पांच रुपए भी उधार नहीं मांगे।

आज जब सोशल मीडिया ने दुनिया को मुट्ठी में कर लिया है, लोग निजी स्पेस के अतिक्रमण की वजह से डिसकनैक्ट रहने के बहाने ढूंढ रहे हैं। ‘भागमभाग की जिंदगी में अच्छी नींद आ जाए, इससे बड़ा सुख और क्या है ?’ कहने वाले डिजाइन इंजिनियर प्रसाद पी.जे. ने वर्षों पुराने हो चुके नोकिया 215 मोबाइल से आज तक नाता नहीं तोड़ा।
 
जाने-माने कवि गीव पटेल से संपर्क करने के लिए आपको उनके लैंडलाइन नंबर पर फोन करना पड़ता है। खुद डिजिटल मार्केटिंग कंपनी में काम करने वाले आइडिक साहा ने मोबाइल पर व्हॉट्सऐप और फेसबुक डालने की जहमत ही नहीं उठाई। हिंदुजा अस्पताल की डॉ. कैमिला रॉड्रिक्स बताती हैं, ‘मोबाइल नहीं रखने से मुझे नहीं, मेरे मरीजों को भी कभी कोई असुविधा नहीं हुई, जिन्हें जरूरत होती है वे मुझे ढूंढ ही लेते हैं।’ ‘आई.आई.टी. जी’ के टॉपर सुरेश मेहतानी जैसे लोग भी हैं, जो अपनी सफलता का श्रेय अपने स्मार्टफोन और सोशल मीडिया से दो साल डिसकनैक्ट रहने को देते हैं।

कई परिवार ऐसे हैं, जिन्होंने घर पर मोबाइल फोन का इस्तेमाल करना बंद कर दिया है। खोजिए, आपको ऐसे एप्लिकेशन आसानी से मिल जाएंगे, जिनके जरिए अपने स्मार्टफोन पर आप बार-बार के नोटिफिकेशंस, मैसेजेस, कॉल्स और सोशल मीडिया के तकाजों से डिस्टर्ब होने से बच सकते हैं। अब तो उल्टी गंगा भी बह चली है। डिजिटल की बजाय एनालॉग का पैशन इसकी मिसाल है। चाबी वाली घड़िया, एल.पी. रिकॉर्ड चलाने वाले रिकॉर्ड प्लेयर, ट्रांजिस्टर की याद दिलाने वाला सारेगामा का कारवां, ब्ल्यू टुथ स्पीकर और डिजिटल की बजाय इंस्टैंट कैमरे। खाने का ऑर्डर देने और जीवनसाथी खोजने तक के कामों में लोग अब आभासी अनुभव पसंद नहीं कर रहे।

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जरूरी समझी जाने वाली चीजों के बिना भी काम किया जा सकता है। इसके लिए लोग खुद के संयम व त्याग की परीक्षा ले रहे हैं।
 
हिंदुओं में नवरात्र, मुसलमानों में रमजान, जैनियों में पर्युषण और ईसाइयों में चेहलम या लेंट ऐसे ही पर्व हैं। पूरी दुनिया में आज जी.डी.पी. की जगह भूटान के ग्रॉस हैप्पीनैस इंडैक्स का क्रेज है, जहां मंत्रालयों की जिम्मेदारी है कि वे लोगों की समस्याएं सुलझाएं और जीवन स्तर ऊंचा उठाने के लिए काम करें।
 
खुशी का मंत्र क्या है ? वह यह कि हम अपनी वास्तविकता की सच्चाई स्वीकारें और दूसरों से तुलना करनी छोड़ दें। जितनी जरूरत है, उतने में या उससे भी कम में निबाह करना मुश्किल हो सकता है, पर नामुमकिन नहीं। बस, आपके पास इच्छाशक्ति होनी चाहिए।  
 
 

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