Edited By Niyati Bhandari,Updated: 02 May, 2024 08:00 AM
गुरु द्रोणाचार्य कौरवों और पांडवों को अपने आश्रम में शिक्षा दिया करते थे। एक दिन उन्होंने जीवन मूल्यों के बारे में सीख देते हुए कहा
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Story of Yudhisthira: गुरु द्रोणाचार्य कौरवों और पांडवों को अपने आश्रम में शिक्षा दिया करते थे। एक दिन उन्होंने जीवन मूल्यों के बारे में सीख देते हुए कहा, ‘‘सबसे अहम पाठ यह है कि- क्रोध न करें और सदैव सत्य बोलें।’’
उन्होंने कहा कि कल सभी शिष्य इस पाठ को याद करके आएं। अगले दिन गुरु द्रोणाचार्य द्वारा पूछने पर सबने दोहरा दिया, ‘‘क्रोध न करें और सत्य बोलें।’’
मगर जब युधिष्ठिर की बारी आई तो उन्होंने कहा, ‘‘गुरु जी मुझे पाठ याद नहीं हुआ है।’’
यह सुनकर गुरु द्रोणाचार्य को आश्चर्य हुआ और उन्होंने किंचित उग्र स्वर में कहा, ‘‘एक पंक्ति का पाठ तुम्हें याद नहीं हुआ।’’
युधिष्ठिर से अगले दिन पाठ याद करके आने के लिए कहा गया मगर अगले दिन भी युधिष्ठिर का यही जवाब था। इस तरह करीब 10 दिन गुजर गए। गुरु द्रोणाचार्य उनसे रोज पूछते और वह पाठ याद होने से इंकार कर देते। आखिर 11वें दिन युधिष्ठिर ने गुरु द्रोणाचार्य के समक्ष खुद खड़े होकर उत्साह से कहा, ‘‘गुरु जी मुझे पाठ याद हो गया है। क्रोध न करें और सदैव सत्य बोले।’’
द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर से कहा, ‘‘ऐसे कैसे काम चलेगा? एक मामूली-सा पाठ याद करने में तुम्हें इतने दिन लग गए।’’
तभी युधिष्ठिर ने जवाब दिया, ‘‘गुरु जी मैं आपके पाठ को अपने जीवन में उतारने की कोशिश कर रहा था। आपने सिखाया था कि क्रोध मत करो और हमेशा सत्य बोलो। अगले दिन आपने जब पाठ याद न होने के लिए मुझ पर आक्रोश जताया तो मुझे भी क्रोध आया था। मैं असत्य बोल नहीं सकता था इसलिए आप जब-जब मुझसे पूछते मेरा यही जवाब होता।’’
‘‘आखिरकार जब मैंने अपने क्रोध पर काबू पा लिया तभी मैं आपसे यह कह पाया कि हां, मुझे पाठ याद हो गया है।’’
यह सुन द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर को गले लगा लिया और शिष्यों को समझाया कि शिक्षा जब मन में इतनी गहरी उतर जाए तभी उसके सही परिणाम मिलते हैं।