Edited By ,Updated: 27 Feb, 2017 09:20 AM
एक संत सदा प्रसन्न रहते थे। वह हर बात पर ठहाके लगाते रहते। कुछ चोरों को यह बात अजीब लगती थी।
एक संत सदा प्रसन्न रहते थे। वह हर बात पर ठहाके लगाते रहते। कुछ चोरों को यह बात अजीब लगती थी। वे समझ नहीं पाते थे कि कोई व्यक्ति हर समय इतना खुश कैसे रह सकता है। चोरों ने यह सोचकर कि संत के पास अपार धन होगा, उनका अपहरण कर लिया। वे उन्हें दूर जंगल में ले गए और बोले, ‘‘सुना है कि तुम्हारे पास काफी धन है, तभी इतने प्रसन्न रहते हो। सारा धन हमारे हवाले कर दो वरना तुम्हारी जान की खैर नहीं।’’
संत ने एक-एक कर हर चोर को अलग-अलग बुलाया और कहा, ‘‘मेरे पास सुखदा मणि है मगर मैंने उसे तुम चारों के डर से जमीन में गाड़ दिया है। यहां से कुछ ही दूरी पर वह स्थान है। अपनी खोपड़ी के नीचे चंद्रमा की छाया में खोदना शायद मिल जाए।’’
सभी चोर अलग-अलग दिशा में जाकर खोदने लगे। जरा सा उठते चलते तो छाया भी हिल जाती और उन्हें जहां-तहां खुदाई करनी पड़ती। रात भर में सैंकड़ों छोटे-बड़े गड्ढे बन गए पर कहीं भी मणि का पता नहीं चला। चोर हताश होकर लौट आए और संत को भला-बुरा कहने लगे। संत हंसकर बोले, ‘‘मूर्खो मेरे कहने का अर्थ समझो। खोपड़ी तले सुखदा मणि छिपी है अर्थात उसमें श्रेष्ठ विचारों के कारण मनुष्य प्रसन्न रह सकता है। तुम भी अपना दृष्टिकोण बदलो और जीना सीखो।’’