अदालत का फैसला आने से पूर्व भी मिल जाते हैं परिणाम के संकेत

Edited By Updated: 23 Jun, 2015 02:17 PM

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मुकद्दमेबाजी आज जीवन का एक अंग बन चुकी है। आप लाख न चाहें तो भी कोर्ट-कचहरी का मुंह देखना पड़ जाता है।

मुकद्दमेबाजी आज जीवन का एक अंग बन चुकी है। आप लाख न चाहें तो भी कोर्ट-कचहरी का मुंह देखना पड़ जाता है। 

कब होते हैं कोर्ट केस ?
अधिकतर देखा गया है कि कोर्ट केस में शनि, राहू, मंगल, राहू दोष, कालसर्प दोष, साढ़ेसाती, शनि की ढैय्या आदि की विशेष भूमिका रहती है। कुंडली का छठा भाव शत्रु व मुकद्दमों का परिचय देता है तो 8वां उसके भाव-उलझाव का तथा 12वां सजा का। इनका परस्पर संबंध बन जाने पर अचानक जातक मुश्किल में फंस जाता है और कई बार बेकसूर को सजा मिलती है। हर जातक की कुंडली इस तरह के योग दर्शाती है। एक जेल अधीक्षक कई बार अपनी ही जेल का कैदी बन जाता है। इसे ग्रहों का खेल कहते हैं।
 
कब करें कोर्ट केस ?
ज्योतिष में ऐसे कई मुहूर्त योग हैं जिनके आधार पर वैधानिक कार्रवाई का निर्णय लेने पर वांछित परिणाम अवश्य मिलते हैं। इन योगों में तिथि, दिवस, नक्षत्र, लग्न आदि का विचार किया जाता है। मंगलवार को नया मुकद्दमा दायर नहीं करना चाहिए। इस दिन आरंभ किया गया ऐसा कृत्य असफलता का मुंह दिखाता है। शनिवार को किया गया केस बहुत लंबा खिंच जाता है। अश्विनी, मृगशिरा, पुष्य, हस्त, चित्रा, रेवती, अनुराधा, एवं धनिष्ठा नक्षत्र इस सफलता के कारक होते हैं।
 
प्रश्न कुंडली की भूमिका
केस फाइल करने से पूर्व यदि ‘प्रशन कुंडली’ बना ली जाए तो आप ज्योतिषीय सूत्रों की सहायता से बहुत कुछ जान सकते हैं। मुकद्दमे के संदर्भ में लग्न को ‘प्रशनकर्ता’माना जाता है और सप्तम स्थान को विरोधी पक्ष। चतुर्थ को निर्णय भाव और दशम को जज या निर्णायक स्थान माना जाता है। छठा घर गुप्त शत्रु या मुकद्दमे का खाना है।
 
पहले भाव में अशुभ ग्रह स्थित हों तो विरोधी को क्षीण बनाते हैं। यदि तीन शुभ ग्रह लग्न में इकट्ठे बैठे हों तो विजय निश्चित रहती है। तीन अशुभ भी यदि लग्न में आ जाएं तो विरोधी को करारी हार का सामना करना पड़ता है। पहले घर में अशुभ और सातवें में अशुभ ग्रह होने जरूरी हैं। गुरु त्रिकोण में विजयश्री दिलाता है। ‘प्रशन लग्न’  से, प्रथम , सातवें तथा दसवें भाव में पड़े अच्छे सितारे जीत के सूचक हैं। यदि नौवें स्थान में शनि या मंगल आ जाएं तो पराजय का मुंह देखना पड़ता है। पहले और सातवें घर के स्वामी एक भाव में नहीं होने चाहिएं। गुरु पांचवें, नौवें या प्रथम भाव में हो और छठे में कोई अशुभ ग्रह न हो तो सफलता आसपास ही रहती है।
 
केन्द्र में अच्छे ग्रह-शुक्र, बुध, चन्द्र या गुरु हों तो शत प्रतिशत विजय होती है। ये सभी यदि नर राशि में हों तो मुकद्दमे पर किया गया खर्च वापस मिल जाने की संभावना रहती है।
 
‘प्रशन लग्न’ व चन्द्र यदि चर राशि अर्थात मूवेबल साईन में हों तो समझिए कि अगली डेट पड़ेगी। दशम भाव में अशुभ ग्रह दर्शाता है कि अगली पेशी पर भी फैसला नहीं हो पाएगा।
 
मुकद्दमा दायर करने से पहले ‘प्रशन कुंडली’ बना कर ग्रहों की विभिन्न स्थितियां देखी जा सकती हैं और ठीक समय की प्रतीक्षा करनी चाहिए। अच्छे मुहूर्त पर किए गए कार्य का परिणाम भी सुखद रहता है। उपरोक्त योगों में से यदि 60 प्रतिशत योग मिल भी मिल जाएं तो न्यायालय का द्वार खटखटाने में घबराना नहीं चाहिए, सफलता लगभग निश्चित ही रहती है। 
 
इसके अलावा विरोधी की कुंडली, दोनों पक्षों के वकीलों के सितारे कैसे हैं  इस पर भी विचार किया जाना चाहिए। न्यायालय में क्या पहन कर जाएं, किस समय घर से निकलें, क्या खाएं और जेब में क्या रख कर जाएं, ज्योतिष इस संदर्भ में बहुत सहायक होता है। 
 
ज्योतिष की एक अन्य शाखा , ‘कृष्णमूर्त पद्धति’ जिसे के.पी. सिस्टम भी कहा जाता है, से भी ‘प्रशन’ का सही उत्तर प्राप्त हो जाता है कि मुकद्दमे में विजय होगी या तारीख पर तारीख पड़ती रहेगी। जन्म पत्री या ‘प्रशन कुंडली’ यह भी इंगित करती है कि आपसी समझौते से केस निपटेगा या न्याय प्रक्रिया से? या केस में सजा होगी या बरी हो जाएंगे।
—मदन गुप्ता ‘सपाटू’

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