अगर बार बार हो रहे हैं दुर्घटना का शिकार कहीं शनिदेव तो नहीं ज़िम्मेदार

Edited By ,Updated: 04 Jul, 2015 08:16 AM

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वैदिक ज्योतिष के अनेक सिद्धांत शास्त्रों में एक नाम है मेडिकल एस्ट्रोलॉजी अर्थात चिकित्सा ज्योतिष । मेडिकल एस्ट्रोलॉजी के माध्यम से व्यक्ति के साथ होने वाले अरिष्ट का पता पहले से ही लगाया जा सकता है...

वैदिक ज्योतिष के अनेक सिद्धांत शास्त्रों में एक नाम है मेडिकल एस्ट्रोलॉजी अर्थात चिकित्सा ज्योतिष । मेडिकल एस्ट्रोलॉजी के माध्यम से व्यक्ति के साथ होने वाले अरिष्ट का पता पहले से ही लगाया जा सकता है । जन्मपत्रिका में स्वास्थ्य के कुछ मापदंड पूर्व निर्धारित होते हैं जिसके आधार पर व्यक्ति को फलों की प्राप्ति होती है । सरल भाषा में कहें तो जन्मकुंडली से भी एक्सीडेंट के बारे में जाना जा सकता है । यदि हमें पहले से जानकारी हो जाए तो हम संभलकर दुर्घटना से बच सकते हैं ।

अगर दुर्घटना के योग हैं तो उसे टाला नहीं जा सकता परंतु संभलकर बचाव किया जा सकता है जिससे कम क्षति पहुंचे । यह ठीक उस प्रकार है जैसे की हम बरसात में निकलें व हमने छाता लगा रखा हो तो बरसात से पूरी तरह से भीगेंगे नहीं । ठीक उसी प्रकार दुर्घटना के कारणों को जानकर उपाय कर लिए जाएं तो उससे हमे कम क्षति होगी । इस लेख के माध्यम से हम अपने पाठकों को शनि ग्रह जनित दुर्घटना के कारण व निवारण के बारे में बता रहे हैं । 

लग्न कुंडली में छठा, आठवां व बारहवां भाव महत्वपूर्ण माने जाते है । इनमें बनने वाले अशुभ योग ही दुर्घटना का कारण बनते हैं । लोहा व मशीनरी से दुर्घटना हेतु शनि ग्रह जिम्मेदार होता है । चार पहिया वाहन जैसे कार से दुर्घटनाग्रस्त होना का कारण शनि व राहू का आपस में संबंध बनाना होता है । विस्फोटक व आगजनी संबन्धित दुर्घटना हेतु शनि व मंगल का संबंध जिम्मेदार होता है । दोपहिया वाहन के दुर्घटना हेतु शनि व शुक्र का संबंध ज़िम्मेदार होता है । सड़क दुर्घटना हेतु शनि-केतू के साथ संबंध ज़िम्मेदार होता है । अष्टम भाव व इसके कारकत्व रहस्य से जुड़े हैं । शनि तो रहस्यमय है ही ।

अष्टम भाव का कारक भी शनि ही है । शनि के अष्टम भावस्थ होने पर उसकी दृष्टियां द्वितीय भाव अर्थात प्रबल मरकेश पर रहती हैं । सातवें व आठवें भाव अर्थात मृत्यु व आयु भाव में शनि की उपस्थिति को ज्योतिषशास्त्र में परखा जाता है । 8 भाव देह नाश का भाव है व शनि यम का भाई तथा मृत्यु का कारक है । ऐसे में दो दारुण गुणों की युति अत्यंत दुःखद परिणाम देती है । 

आएं जानते हैं कब और कैसे बनते हैं एक्सीडेंट के योग :

- छठे भाव में मंगल पर शनि की दृष्टि पड़े तो मशीनरी से चोट लगती है ।

- सातवें भाव के स्वामी के साथ मंगल-शनि हों तो एक्सीडेंट के योग बनते हैं ।

- आठवें भाव में मंगल व शनि वायु तत्व में हों तो जलने से दुर्घटना होती है ।

- छठे भाव में शनि शत्रु राशि या नीच का होकर केतु के साथ हो तो पशु से चोट लगती है ।

- शनि मंगल व केतु आठवें भाव में एकसाथ हों तो वाहन दुर्घटना के कारण चोट लगती है ।

- चंद्रमा शनि से पीड़ित होकर नीच का हो व मंगल भी साथ हो तो पानी से एक्सीडेंट होता है ।

- आठवें भाव में शनि के साथ मंगल हो या शत्रु राशि का होकर सूर्य के साथ हो तो आग से एक्सीडेंट होता है ।

- वायु तत्व राशि में चंद्र व राहु युति करें तथा मंगल व शनि की उन पर दृष्टि हो वायुयान संबंधित दुर्घटना होती है ।

अगर बार बार दुर्घटनाओं हो रही हों ते करें ये विशिष्ट उपाय:

- वाहन दुर्घटना होने पर शनि मंदिर में इमली व संतरे चढ़ाएं ।

- मशीनरी से चोट लगने पर हनुमान मंदिर में 8 शनिवार चमेली के तेल का दीपक करें ।

- जलने से दुर्घटना होने पर भैरव मंदिर में सरसों का तेल में सिंदूर मिलकर दीपक करें ।

- विस्फोटक एक्सीडेंट होने पर लाल कपड़े में तिल व नारियल बांधकर हनुमान मंदिर में चढ़ाएं ।

- सीढ़ियों से गिरकर दुर्घटना होने पर पानी में नील नमक और केरोसीन मिलाकर सीढ़ियों पर पोछा लगाएं ।

- पशु से चोट लगने पर बुधवार प्रदोश काल में काले धागे में पिरोए 7 नीबू की माला देवी मंदिर में चढ़ाएं ।

- पानी से एक्सीडेंट होने पर शनिवार प्रदोश काल में काले शिवलिंग पर शतावरी मिले पानी से अभिषेक करें ।

- पैदल चलने पर चोटिल होने पर गुरुवार प्रदोश काल में काले धागे में पिरोए 7 केलों की माला गणपति पर चढ़ाएं ।

आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com 

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