Trimbakeshwar Jyotirlinga:  इस मंदिर में होती है ब्रह्मा, विष्णु और महेश की एक साथ पूजा, जानें क्यों है ये इतना खास

Edited By Prachi Sharma,Updated: 30 Apr, 2024 10:52 AM

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भगवान शंकर के बारह ज्योतिर्लिंगों में शामिल महाराष्ट्र के नासिक जिले का त्रयंबकेश्वर मंदिर हिन्दुओं के लिए अत्यंत पवित्र स्थलों में से एक है। यह मंदिर नासिक एयरपोर्ट से 30 किलोमीटर

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Trimbakeshwar Jyotirlinga: भगवान शंकर के बारह ज्योतिर्लिंगों में शामिल महाराष्ट्र के नासिक जिले का त्रयंबकेश्वर मंदिर हिन्दुओं के लिए अत्यंत पवित्र स्थलों में से एक है। यह मंदिर नासिक एयरपोर्ट से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित त्रय बक नामक गांव में है। यहीं पर गोदावरी के रूप में गंगा के धरती पर आने की कहानी भी कही जाती रही है। यहां भगवान को ‘त्रय’ यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश का अवतार कहा जाता है।

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मंदिर का इतिहास
मुगलों के हमले के बाद इस मंदिर के जीर्णोद्धार का श्रेय पेशवाओं को दिया जाता है। तीसरे पेशवा के तौर पर विख्यात बालाजी यानी श्रीमंत नानासाहेब पेशवा ने इसे 1755 से 1786 के बीच बनवाया था। पौराणिक तौर पर यह भी कहा जाता है कि सोने और कीमती रत्नों से बने लिंग के ऊपर मुकुट महाभारत काल में पांडवों द्वारा स्थापित किया गया था।

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अनुमान है कि 17वीं शताब्दी में जब इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया जा रहा था, तब इस कार्य में 16 लाख रुपए खर्च हुए थे। त्रय बक को गौतम ऋषि की तपोभूमि के तौर पर भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, गौतम ऋषि और गोदावरी के आह्वान पर भगवान शिव ने इसी स्थान पर निवास किया था।

अद्भुत स्थापत्य कला
पूरा मंदिर काले पत्थरों से बना हुआ है। इन पत्थरों पर नक्काशी और अपनी भव्यता के लिए त्रयंबकेश्वर मंदिर दुनिया भर में प्रसिद्ध है। चौकोर मंडप और बड़े दरवाजे मंदिर की शान प्रतीत होते हैं। मंदिर के अंदर स्वर्ण कलश है और शिवलिंग के पास हीरों और अन्य कीमती रत्नों से जड़े मुकुट रखे हैं। ये सभी पौराणिक महत्व के हैं।

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औरंगजेब ने किया था मंदिर पर हमला
मुगलकाल में जिन तीर्थस्थलों को ध्वस्त किया गया था, उनमें एक त्रयंबकेश्वर मंदिर भी था। इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने अपनी पुस्तक ‘हिस्ट्री ऑफ औरंगजेब’ में इसका जिक्र किया है।

उन्होंने लिखा है, ‘‘सन् 1690 में मुगल शासक औरंगजेब की सेना ने नासिक के त्रयंबकेश्वर मंदिर के अंदर शिवलिंग को तोड़ दिया था और मंदिर को काफी क्षति पहुंचाई थी। इसके ऊपर मस्जिद का गुंबद बना दिया था। यहां तक कि औरंगजेब ने नासिक का नाम भी बदल दिया था लेकिन 1751 में मराठों का फिर से नासिक पर आधिपत्य हो गया। तब इस मंदिर का पुननिर्माण कराया गया।’’

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मंदिर नासिक की तीन पहाड़ियों- ब्रह्मगिरि, नीलगिरि और कालगिरि के आधार पर हरी-भरी हरियाली के बीच स्थित है। मंदिर की खासियत है कि इसमें स्थापित ज्योतिर्लिंग तीनमुखी है, जो भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक है। ये ‘त्रिदेव लिंगम’ सोने के मुखौटे पर रखे गए आभूषणों से ढंका है।

इस मंदिर की चारों दिशाओं में द्वार हैं। पूर्व द्वार ‘शुरुआत’ को दर्शाता है, पश्चिम द्वार ‘परिपक्वता’ का प्रतीक है, उत्तर द्वार ‘रहस्योद्घाटन’ का प्रतिनिधित्व करता है और दक्षिण द्वार ‘पूर्णता’ का प्रतीक माना जाता है।

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