Edited By Niyati Bhandari, Updated: 11 Oct, 2021 12:28 PM

मैं शाम को जब भी सैर करता हुआ वहां से निकलता, एक वृद्धा अपने मकान के बाहर कुर्सी पर बैठी मिलती। अक्सर मुझे रोक कर मोबाइल मांगती। अपने पल्लू को खोल कर कागज निकालती और उसको
Best Motivational Story: मैं शाम को जब भी सैर करता हुआ वहां से निकलता, एक वृद्धा अपने मकान के बाहर कुर्सी पर बैठी मिलती। अक्सर मुझे रोक कर मोबाइल मांगती। अपने पल्लू को खोल कर कागज निकालती और उसको देख कर नम्बर मिलाती। ‘‘माता जी लगता है अपने बेटे से बात करती हो?’’ मैं उसका वार्तालाप सुन कर बोला।

‘‘हां बेटा मेरा बेटा विदेश गया है। वहां कम्पनी में बड़ा अफसर है।’’
‘‘यहां आपके साथ....।’’
‘‘मैं अकेली हूं बेटा। उनकी मृत्यु हुए दस वर्ष बीत गए। बेटी और दामाद हैदराबाद में रहते हैं। बस अगले महीने बेटा विदेश से आकर मुझे अपने साथ ले जाएगा।’’ कहते-कहते बुढिय़ा की आंखें चमक जातीं।

कुछ दिनों बाद फिर उस वृद्धा ने मोबाइल मांगा। बेटे से ऊंचे स्वर में बात कर रही थी। ‘‘अब कह रहा है कि बहू भी कम्पनी में लग गई है। नई नौकरी होने के कारण छुट्टी नहीं मिल रही। अब दो महीने बाद आने को कह रहा है। चलो बेटा जहां इतना इंतजार किया दो महीने भी बीत जाएंगे।’’ मोबाइल वापस थमाते हुए नम आंखों से वृद्धा ने कहा।
इस बार मैं काफी महीनों बाद उस रास्ते पर गया था। वृद्धा के घर के पास से गुजरते समय हाथ जेब में चला गया। आज मोबाइल नहीं था। आज कुर्सी भी नहीं थी। मैंने कदमों को धीरे करते हुए अंदर को झांका। एक दम्पति बाहर निकला। मैंने जिज्ञासावश पूछा, ‘‘यहां एक वृद्धा अक्सर मुझे मिलती है। आप उनके बेटे और बहू....’’

‘‘जी...दमयंती की बात कर रहे हैं आप। उसका तो लगभग पंद्रह दिन पूर्व देहांत हो गया। देहांत के बाद उसका बेटा विदेश से आया था। दाह संस्कार करने के बाद वापस विदेश चला गया।’’
‘‘जी...आप...माता जी के...’’ मैंने जानना चाहा।
‘‘माता जी के बेटे ने वापस जाने से पहले ये मकान हमें बेच दिया। हमें भी सस्ता मिल गया। उसे यहां क्या करना था।’’ सज्जन बोले।
