अभीष्ट फल प्रदान देने वाली भगवती मातंगी, वेदों की हैं सरस्वती

Edited By Jyoti,Updated: 01 Apr, 2018 02:30 PM

bhagwati matangi is saraswati of the vedas

मतङ्ग शिव का नाम है, इनकी शक्ति मातंगी है। मातंगी के ध्यान में बताया गया है कि ये श्यामवर्णा हैं और चंद्रमा को मस्तक पर धारण किए हुए हैं। भगवती मातंगी त्रिनेत्रा, रत्नमय सिंहासन पर आसीन, नील कमल के समान कांतिवाली तथा राक्षस समूह रूप अरण्य को भस्म...

मतङ्ग शिव का नाम है, इनकी शक्ति मातंगी है। मातंगी के ध्यान में बताया गया है कि ये श्यामवर्णा हैं और चंद्रमा को मस्तक पर धारण किए हुए हैं। भगवती मातंगी त्रिनेत्रा, रत्नमय सिंहासन पर आसीन, नील कमल के समान कांतिवाली तथा राक्षस समूह रूप अरण्य को भस्म करने में दावाग्नि के समान हैं। इन्होंने अपनी चार भुजाओं में पाश, अकुंश, खेटक और खडग़ धारण किया है। ये असुरों को मोहित करने वाली एवं भक्तों को अभीष्ट फल देने वाली हैं। गृहस्थ जीवन को सुखी बनाने में पारंगत होने के लिए मातंगी की साधना श्रेयस्कर है। महाविद्याओं में ये 9 वें स्थान पर परिगणित हैं।

दश-महाविद्याओं में मातंगी की उपासना विशेष रूप से वाक् सिद्धि के लिए की जाती है।


पुरश्चर्यार्णव में कहा गया है: 
अक्षवक्ष्ये महादेवीं मातंगी सर्वसिद्धिदाम।
अस्या: सेवनमात्रेण वाक् सिद्धिं लभते धु्रवम्॥


मातंगी के स्थूल रूपात्मक प्रतीक विधान को देखने से यह भली भांति ज्ञात हो जाता है कि ये पूर्णतया वाग्देवता की ही मूर्ति हैं। मातंगी का श्यामवर्ण परावाक् बिंदू है। उनका त्रिनयन सूर्य, सोम और अग्नि हैं। उनकी चार भुजाएं चार वेद हैं। पाश अविद्या है, अंकुश विद्या है, कर्मराशि दंड है। शब्द-स्पर्शादि गुण पञ्चभूतात्मक सृष्टि के प्रतीक हैं। कदम्ब वन ब्रह्मांड का प्रतीक है। योगराजोपनिषद् में ब्रह्मलोक को कदम्बगोलाकार कहा गया है- ‘कदम्बगोलाकारं ब्रह्मïलोकं व्रजन्ति ते’। भगवती मातंगी का सिंहासन शिवात्मक महामञ्च या त्रिकोण है। उनकी मूर्ति सूक्ष्मरूप में यंत्र तथा पररूप में भावनामात्र है।


दुर्गा सप्तशती के 7वें अध्याय में भगवती मातंगी के ध्यान का वर्णन करते हुए कहा गया है कि वे रत्नमय सिंहासन पर बैठकर पढ़ते हुए तोते का मधुर शब्द सुन रही हैं। उनके शरीर का वर्ण श्याम है। वे अपना एक पैर कमल पर रखे हुए हैं। अपने मस्तक पर अर्धचंद्र तथा गले में कल्हार पुष्पों की माला धारण करती हैं। वीणा बजाती हुई भगवती मातंगी लाल रंग की साड़ी पहने तथा हाथ में शंखमय पात्र लिए हुए हैं। उनके शरीर और ललाट में बिन्दी शोभा पा रही है। इनका वल्लकी धारण करना नाद का प्रतीक है। तोते का पढऩा ‘ह्रीं’ वर्ण का उच्चारण करना है, जो बीजाक्षर का प्रतीक है। कमल वर्णात्मक सृष्टि का प्रतीक है। शंख पात्र ब्रह्मरंध्र तथा मधु अमृत का प्रतीक है। रक्त वस्त्र अग्नि या ज्ञान का प्रतीक है। वाग्देवी के अर्थ में मातंगी यदि व्याकरणरूपा हैं तो शुक शिक्षा का प्रतीक है। चार भुजाएं वेदचतुष्टय हैं। इस प्रकार तांत्रिकों की भगवती मातंगी महाविद्या वैदिकों की सरस्वती ही हैं। तंत्र ग्रंथों में इनकी उपासना का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है।

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