चैत्र नवरात्र में करें दर्शन, सभी की चिंता दूर करती हैं मां चिंतपूर्णी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 16 Mar, 2018 02:00 PM

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हिमाचल में ऊना जिले की भरवाईं तहसील में स्थित उत्तरी भारत का प्रसिद्ध सिद्ध पीठ ‘श्री छिन्नमस्तिका चिंतपूर्णी धाम’ देश के 52 शक्तिपीठों में से एक है जहां सती मां पार्वती के चरण गिरे थे। इस शक्ति पीठ में पिंडी रूप में मां के दर्शन और आशीर्वाद प्राप्त...

हिमाचल में ऊना जिले की भरवाईं तहसील में स्थित उत्तरी भारत का प्रसिद्ध सिद्ध पीठ ‘श्री छिन्नमस्तिका चिंतपूर्णी धाम’ देश के 52 शक्तिपीठों में से एक है जहां सती मां पार्वती के चरण गिरे थे। इस शक्ति पीठ में पिंडी रूप में मां के दर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए देश-विदेश से वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। प्रत्येक मास की संक्रांति और रविवार को तो यहां जैसे भक्तों का एक मेला ही लग जाता है। चैत्र नवरात्र के दौरान यहां बड़़ा भारी 9 दिवसीय मेला लगता है। मान्यता है की इस दौरान जो भी भक्त मां के दरबार में फरियाद करता है, इसकी कामना अवश्य पूर्ण होती है।

धार्मिक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित हो रहे इस शक्तिपीठ पर भक्तजन अपनी मन्नतों और श्रद्धा के अनुसार साइकिलों पर, नंगे पांव पैदल चलते हुए ढोल नगाड़ों के साथ मां का जयघोष करते हुए पहुंचते हैं। 

चिंतपूर्णी में मां के दरबार के बिल्कुल सामने एक तालाब है। जनश्रुति के अनुसार मां ने भक्त मति दास को कन्या रूप में दर्शन देकर कहा कि मैं वट वृक्ष के नीचे पिंडी रूप में सदैव रहूंगी। आप थोड़ा नीचे जाकर एक पत्थर उखाडऩा वहां से जल निकलेगा और उसी जल से मेरी पूजा अर्चना करना।

भक्त मति दास ने वैसा ही किया तो वहां से जल का स्रोत निकला जो धीरे-धीरे तालाब का रूप धारण कर गया। मति दास वहीं से जल लाकर मां की पूजा-अर्चना करते थे। तभी से वहां जल का निकलना जारी है। पिंडी की पूजा के लिए नित्य अभी भी जल वहीं से लाया जाता है। यहां बाद में महाराजा रणजीत सिंह के तत्कालीन दीवान ने एक सुंदर तालाब बनवाया जिसके नाम का पत्थर आज भी तालाब के निकट लगा हुआ है। 

कथा
कहा जाता है जब भगवान विष्णु ने मां सती के जलते हुए शरीर के 51 हिस्से कर दिए थे तब जाकर शिव जी का क्रोध शांत हुआ था और उन्होंने तांडव करना भी बंद कर दिया था। भगवान विष्णु द्वारा किये गए देवी सती के शरीर के 51 हिस्से भारत उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों में जा गिरे थे। ऐसा माना जाता है की इस स्थान पर देवी सती का पैर गिर था और तभी से इस स्थान को भी महत्वपूर्ण 51 शक्ति पीठों में से एक माना जाने लगा।

चिंतपूर्णी में निवास करने वाली देवी को छिन्नमस्तिका के नाम से भी जाना जाता है। मारकंडे पुराण के अनुसार, देवी चंडी ने राक्षसों को एक भीषण युद्ध में पराजित कर दिया था परन्तु उनकी दो योगिनियां (जया और विजया) युद्ध समाप्त होने के पश्चात भी रक्त की प्यासी थी, जया और विजया को शांत करने के लिए की देवी चंडी ने अपना सिर काट लिया और उनकी खून प्यास बुझाई थी। इसलिए वो अपने काटे हुए सिर को अपने हाथो में पकडे दिखाई देती है, उनकी गर्दन की धमनियों में से निकल रही रक्त की धाराओं को उनके दोनों तरफ मौजूद दो नग्न योगिनियां पी रही हैं। छिन्नमस्ता (बिना सिर वाली देवी) एक लौकिक शक्ति है जो ईमानदार और समर्पित योगियों को उनका मन भंग करने में मदद करती है, जिसमे सभी पूर्वाग्रह विचारों, संलग्नक और प्रति दृष्टिकोण शुद्ध दिव्य चेतना में सम्मिलित होते है। सिर को काटने का अर्थ है मस्तिष्क को धड़ से अलग कारण होता है, जो चेतना की स्वतंत्रता है।

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