Durga Saptashati: मां ने कहा, इस पाठ को करने वाले के कष्टों को हर लूंगी

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 31 Mar, 2022 09:07 AM

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चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिप्रदा से शक्ति साधना पर्व वासन्तिक नवरात्रि प्रारम्भ होते हैं। ये नवरात्रि पर्व ऋतु परिवर्तन के प्रतीक भी

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 चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिप्रदा से शक्ति साधना पर्व वासन्तिक नवरात्रि प्रारम्भ होते हैं। ये नवरात्रि पर्व ऋतु परिवर्तन के प्रतीक भी माने जाते हैं। इन दिनों में मां भगवती दुर्गा के निमित्त व्रतानुष्ठान किया जाता है। जगत पालनकर्ता भगवान विष्णु के अन्त:करण की शक्ति सर्व-स्वरूपा योगमाया आदिशक्ति महामाया हैं। वह साक्षात आदि शक्ति महामाया ही शिवा स्वरूप शिव अर्धांगिनी पार्वती एवं सती हैं।     
   
या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

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यही महामाया भगवती देवी ज्ञानियों के चित्त को बलपूर्वक खींचकर मोह में डाल देती हैं और उन्हीं के द्वारा सम्पूर्ण जगत की उत्पत्ति होती है। चतुर्दश विद्याएं, षटशास्त्र और चारों वेद मां जगदंबा के ही प्रकाश से आलोकित हैं। जब-जब पृथ्वी राक्षसों से पीड़ित हुई तब-तब मां आदिशक्ति ने अवतरित होकर शत्रुओं का नाश किया। महिषासुर मर्दिनी, चण्ड-मुण्ड विनाशिनी, शुम्भ-निशुम्भ का संहार करने वाली, रक्त बीज का वध करने वाली मां भगवती आराधना करने पर मनुष्य को भोग, स्वर्ग तथा मोक्ष प्रदान करती है। 

विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तं जनं कुरु।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

नवरात्रि में मां के भक्त मां भगवती जगतजननी मां जगदंबा के नौ रूपों की पूजा करते हैं। 

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्॥
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टम॥
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥

इस प्रकार मां भगवती के उपरोक्त नामों का स्मरण करने से मां के भक्तों को दुख, शोक तथा भय नहीं होता। शक्तिभूता, सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्व सुखमयी मां नारायणी शरण में आये हुए शरणागतों और दीन-दुखियों की रक्षा में तत्पर, सम्पूर्ण पीड़ाओं को हरने वाली हैं। 

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मां भगवती दुर्गा सप्तशती के द्वादश अध्याय में वर्णित एक प्रसंग में देवताओं से कहती हैं कि जो पुरुष इन स्तोत्रों द्वारा एकाग्रचित्त होकर मेरी स्तुति करेगा उसके सम्पूर्ण कष्टों को हर लूंगी। इसीलिए प्रत्येक मनुष्य को भक्तिपूर्वक मां भगवती जगतजननी के ऋषि मार्कण्डेय द्वारा दुर्गा सप्तशती में वर्णित कल्याणकारक माहात्म्य को सदा पढ़ना और सुनना चाहिए। 

शिवपुराण की उमा संहिता में  भगवती उमा के कालिका, महालक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा, शताक्षी, शाकम्भरी, भ्रामरी आदि लीलावतारों का वर्णन तथा उनके द्वारा महिषासुर, मधु, कैटभ, शुम्भ, निशुम्भ, रक्तबीज आदि भयंकर एवं महापराक्रमी दैत्यों के संहार की कथाओं का वर्णन प्राप्त होता है। 

मां दुर्गा की स्तुति में भगवान द्वारिकाधीश कहते हैं,‘‘हे दुर्गा, तुम ही विश्वजननी हो, तुम ही सृष्टि की उत्पत्ति के समय आद्याशक्ति के रूप में विराजमान रहती हो और स्वेच्छा से त्रिगुणात्मिका बन जाती हो।’’

नवरात्रि पर्व पर मां भगवती दुर्गा की श्रद्धा पूर्वक की गई उपासना तथा स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरुषों द्वारा चिंतन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं। शरण में आये हुए दीनों एवं पीड़ितों की रक्षा में संलग्न रहने वाली तथा सबकी पीड़ा दूर करने वाली नारायणी देवी! आपको नमस्कार है। 

देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य। 
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य॥
 

शरणागत की पीड़ा दूर करने वाली देवि! हम पर प्रसन्न होओ। सम्पूर्ण जगत की माता ! प्रसन्न होओ । विश्वेश्वरि विश्व की रक्षा करो । देवी ! तुम्हीं चराचर जगत की अधीश्वरी हो।

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