मंगल कर रहा है तंग, देवताओं के सेनापति कार्तिकेय करेंगे हल

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 02 Dec, 2019 07:41 AM

champa shashti 2019

भगवान कार्तिकेय हिन्दू धर्म के प्रमुख देवों में से एक हैं। कार्तिकेय जी को स्कन्द और मुरगन नाम से भी जाना जाता है। दक्षिण भारत में इनकी विशेष पूजा होती है। वहां इनके कई मंदिर हैं। ये शिव और पार्वती के पुत्र हैं।

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भगवान कार्तिकेय हिन्दू धर्म के प्रमुख देवों में से एक हैं। कार्तिकेय जी को स्कन्द और मुरगन नाम से भी जाना जाता है। दक्षिण भारत में इनकी विशेष पूजा होती है। वहां इनके कई मंदिर हैं। ये शिव और पार्वती के पुत्र हैं। इनके अधिकतर भक्त तमिलनाडु में हैं। वैसे तो कार्तिकेय के अनुयायी विश्व भर में हैं। कार्तिकेय का जो स्वरूप शास्त्रों में बताया गया है वह एक बालक का है। ज्योतिष विद्वान कहते हैं भगवान कार्तिकेय षष्ठी तिथि और मंगल ग्रह के स्वामी हैं तथा दक्षिण दिशा में उनका निवास स्थान है। जिनकी जन्मकुंडली में मंगल अमंगल पैदा कर रहा हो उन्हें आज के दिन यानि चम्पा षष्ठी पर कार्तिकेय का पूजन और व्रत करना चाहिए। कार्तिकेय जी को चम्पा के फूल बहुत प्रिय हैं इसलिए स्कंद षष्‍ठी को चंपा षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। 

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कार्तिकेय जी की जन्म कथा
पुरातन काल में दक्ष ने एक महायज्ञ का आयोजन किया। उसमें ईर्ष्यावश भगवान भोलेनाथ को आमंत्रित नहीं किया। सती उस यज्ञ में जाना चाहती थी, भगवान शिव ने उन्हें कहा बिना बुलाए नहीं जाना चाहिए लेकिन लाख समझाने पर भी सती न मानीं तथा यज्ञ में भाग लेने के लिए अपने पिता दक्ष के घर चली गईं। वहां सभी देवी-देवता अपने-अपने आसन पर विराजमान थे परन्तु सती को देखकर दक्ष ने मुंह फेर लिया और भोलेनाथ के लिए गलत शब्दों का प्रयोग किया। अपने पति का अपमान सती सहन न कर सकीं। उन्होंने यज्ञ मण्डप में योगाग्नि उत्पन्न कर स्वयं को भस्म कर लिया। जब यह समाचार भगवान शिव को मिला, तो वह शोक में डूब गए और अखंड समाधि में लीन हो गए। 

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सती के भस्म होने पर सृष्टि शक्तिहीन हो गई। आसुरी शक्तियां बढऩे लगीं। दैत्यों के घोर आतंक से सभी तरह हाहाकार मच गया। देवताओं की शक्ति खत्म होने लगी। दैत्यों के राजा तारकासुर ने इंद्र पर अधिकार कर लिया तो देवता एकत्रित होकर परमपिता ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी बोले, ‘‘हे देवगणो! वरदान के अनुसार तारकासुर को केवल शिव पुत्र ही मार सकता है।’’

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ब्रह्मा जी के वचन सुनकर देवता चिंता में डूब गए क्योंकि भगवान शिव सती शोक के कारण गहन समाधि में थे। कौन उन्हें समाधि से उठाने की हिम्मत कर सकता था। सोच-विचार के बाद कामदेव को इस कार्य के लिए चुना गया। कामदेव ने भगवान शिव की समाधि तो भंग कर दी, परन्तु शिव के क्रोध से वह स्वयं भस्म हो गए। 

शिव-पार्वती के संयोग से भगवान कार्तिकेय का जन्म होता है। स्कंद षष्ठी के दिन वह तारकासुर का वध करते हैं तथा देवों को उनके संताप से मुक्ति दिलाते हैं। इसी तिथि को कार्तिकेय देवताओं की सेना के सेनापति भी बने थे। 

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