Edited By Prachi Sharma,Updated: 26 May, 2024 08:20 AM
![chanakya niti](https://img.punjabkesari.in/multimedia/914/0/0X0/0/static.punjabkesari.in/2024_5image_08_19_434153970niti-ll.jpg)
भावार्थ : राजा द्वारा निर्धारित किए गए नियम-कानून ही नीतिशास्त्र होते हैं, क्योंकि राजा अपनी प्रजा के कल्याण हेतु अपने योग्य मंत्रियों से विचार-विमर्श
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राज्यतंत्र को ही नीति शास्त्र कहते हैं
राज्यतंत्रयत्तं नीतिशास्त्रम्।
भावार्थ : राजा द्वारा निर्धारित किए गए नियम-कानून ही नीतिशास्त्र होते हैं, क्योंकि राजा अपनी प्रजा के कल्याण हेतु अपने योग्य मंत्रियों से विचार-विमर्श करके ही अपनी नीतियां बनाते हैं।
राजा की स्वदेश और विदेश नीति
![PunjabKesari Chanakya Niti](https://static.punjabkesari.in/multimedia/08_18_193136725chanakya-niti-1.jpg)
राज्यतन्त्रेष्वायत्रौ तन्त्रावा पौ।
भावार्थ : जो राजा अपनी स्वदेश नीति और विदेश नीति का भली प्रकार से पालन करता है, उसे कभी असुरक्षा का भय नहीं सताता।
निकट के राज्य स्वभाव से शत्रु हो जाते हैं
अनंतरप्रकृति: शत्रु:।
प्राय: यह देखा गया है कि सीमा के निकट वाले राज्य किसी न किसी बात पर आपस में लड़ पड़ते हैं और एक-दूसरे के शत्रु बन जाते हैं। यह एक स्वाभाविक तथ्य है। अत: योग्य राजा को सदैव अपने पड़ोसी राजा के हितों का ध्यान रखना चाहिए और सावधान रहना चाहिए।
![PunjabKesari Chanakya Niti](https://static.punjabkesari.in/multimedia/08_18_194230720chanakya-niti-2.jpg)
एक ही देश के दो शत्रु परस्पर मित्र होते हैं
एकान्तरितं मित्रमिष्यते।
यह एक स्वाभाविक तथ्य है कि शत्रु देश का शत्रु आपका मित्र बन जाता है क्योंकि दोनों के हित प्राय: एक जैसे होते हैं।
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