Dharmik Katha: साधना का एक तरीका ये भी, करें अभ्यास

Edited By Jyoti,Updated: 02 Aug, 2022 11:49 AM

dharmik katha in hindi

एक संत रोज एक मूर्ति के आगे खड़े होकर भिक्षा की याचना करते थे। उन्हें ऐसा करते कई लोगों ने देखा, पर किसी को उनसे कुछ पूछने की हिम्मत नहीं पड़ी।

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एक संत रोज एक मूर्ति के आगे खड़े होकर भिक्षा की याचना करते थे। उन्हें ऐसा करते कई लोगों ने देखा, पर किसी को उनसे कुछ पूछने की हिम्मत नहीं पड़ी। 
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एक दिन एक युवा साधु ने आखिरकार उनसे पूछ ही लिया, ‘‘गुरुदेव एक जिज्ञासा है। आप प्रतिदिन मूर्ति के आगे हाथ फैलाते हैं। आप तो जानते होंगे कि इस तरह हाथ पसारने से कुछ नहीं मिल सकता। फिर आप व्यर्थ कष्ट क्यों करते हैं?’’

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इस पर उस संत ने कहा, ‘‘तुम्हारी जिज्ञासा एकदम उचित है। मैं जानता हूं कि यह प्रतिमा मुझे कुछ नहीं देने वाली है, फिर भी मैं उससे कुछ मांगता रहता हूं। मैं किसी आशा से उससे कुछ नहीं मांगता। यह मेरा नित्य का अभ्यास-कर्म है। मांगने से कुछ नहीं मिलता। यह सोचकर मेरे भीतर धैर्य पैदा होता है। मैं किसी घर में याचना करूं और मुठ्ठीभर अन्न न मिले तो मेरे मन में निराशा नहीं पैदा होगी। मेरे मन की शांति भंग न हो, इसका प्रयास कर रहा हूं।’’
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यह सुनकर युवा साधु ने कहा, ‘‘क्षमा करें। वास्तव में आपने मुझे साधना का एक और तरीका बता दिया। मैं भी अब इस तरह से अभ्यास करने का प्रयत्न करूंगा।’’
 

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