प्रेरक प्रसंग: ऋण चुकाने का साधन न हो तो मत लें ऋण

Edited By Jyoti,Updated: 16 Apr, 2021 05:36 PM

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महर्षि दयानंद सरस्वती  निर्भीक संन्यासी थे। अपनी बात को सरल सपाट शब्दों में कहने से वह कभी नहीं चूकते थे। सभी जानते थे कि महर्षि जी किसी भी मत की उन बातों का खंडन करते हैं जो अतार्किक, अव्यावहारिक और वेद विरुद्ध हों।

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'सत्य कहने में हमें कोई भय नहीं'
महर्षि दयानंद सरस्वती निर्भीक संन्यासी थे। अपनी बात को सरल सपाट शब्दों में कहने से वह कभी नहीं चूकते थे। सभी जानते थे कि महर्षि जी किसी भी मत की उन बातों का खंडन करते हैं जो अतार्किक, अव्यावहारिक और वेद विरुद्ध हों।

महर्षि जी की प्रवचन सभा चल रही थी। उसी मार्ग से डिप्टी कलैक्टर अलीजान जा रहे थे। वह भी महॢष जी के प्रचार कार्य से अनभिज्ञ नहीं थे। उन्होंने अपनी सवारी रोकी और महर्षि जी से बोले कि अपने व्याख्यानों में आप बहुत कठोरता से काम लेते हैं। आपको ऐसा नहीं करना चाहिए। महर्षि जी ने तपाक से उत्तर दिया कि हम असत्य कभी नहीं कहते। सत्य कहने में हमें कभी किसी से भय नहीं है।

'विचार मंजूषा'
मनुष्य जितना अहंकारी होगा उसका  व्यक्तित्व उतना ही घटिया होगा।
कलियुग में आदमी की मुक्ति प्रभु, नाम, जप, संकीर्तन से ही हो सकती है।
यदि ऋण चुकाने का साधन न हो तो कभी ऋण मत लो।
अहंकार चोटी पर बैठे मनुष्य को पतन की गहराइयों में धकेल देता है।
आप  जब  गलतियां  करते  हैं  तभी  कुछ  सीखते  हैं।
जब दुख अपनी चरम सीमा पर होता है तब सुख ज्यादा दूर नहीं होता।
अपने लिए भी कुछ समय निकालें, जिसे आप अपनी इच्छा से बिता सकें।
किसी ने कहा था कि लम्बी उम्र चाहते हो तो मशहूर मत बनो।
दोस्ती, दुश्मनी, रिश्ता एवं कम्पीटिशन सदैव अपने बराबर वालों से करना चाहिए।
पल भर का क्रोध आपके उज्ज्वल भविष्य का नाश कर सकता है, इसलिए गुस्से पर नियंत्रण रखें। —धर्मपाल गर्ग, रायसिंहनगर  

'बदला’
एक समय की बात है सुप्रसिद्ध दार्शनिक देकार्त के साथ किसी व्यक्ति ने दुर्व्यवहारकिया। मगर देकार्त ने उसे कुछ नहीं कहा। ‘‘अरे! तुम्हें तो उससे बदला लेना चाहिए था। उसका यह व्यवहार बहुत बुरा था।’’ 

एक हितैषी ने कहा। देकार्त बोला, ‘‘सुनो! जब कोई मुझसे बुरा व्यवहार करता है तो मैं अपनी आत्मा को उस ऊंचाई पर ले जाता हूं जहां कोई दुर्व्यवहार उसे छू भी न सके।’’

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