हम सब से महान पुरुष का सानिध्य प्राप्त करें, जिससे हमारे भीतर नव-चेतना का संचार हो : भद्रा भारती

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 12 Oct, 2021 12:05 PM

divya jyoti jagriti sansthan

दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से श्री रघुनाथ मंदिर कटड़ा में जारी श्रीमद् देवी भागवत कथा में सोमवार को आशुतोष जी महाराज की शिष्या साध्वी भद्रा भारती जी ने कथा करते हुए बताया कि

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कटड़ा (अमित):  दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से श्री रघुनाथ मंदिर कटड़ा में जारी श्रीमद् देवी भागवत कथा में सोमवार को आशुतोष जी महाराज की शिष्या साध्वी भद्रा भारती जी ने कथा करते हुए बताया कि मानव के भीतर नवचेतना का संचार कैसे संभव हो। 

उन्होंने बताया कि जिस प्रकार एक माला में पिरोये हुए सुंदर मोती माला की शोभा हैं, माला का आधार हैं। जिस प्रकार आभूषण बनाने वाला सुंदर मोती एकत्र करके उनसे आभूषण तैयार करता है। ठीक उसी प्रकार परमात्मा ने बहुत सुंदर मोती एकत्र करके मानव जीवन के लिए एक श्रेष्ठ माला का निर्माण किया। निर्माणकर्ता ने बहुत ही सूझ-बुझ से इन मोतियों को जोड़ा। ये मोती हैं कर्मशीलता के, कुशाग्र बुद्धि के, सर्वोच्च चेतना के परंतु विडंबना यह है कि संसार की उधेड़बुन में माया व आकर्षण की रस्साकशी में यह माला टूट जाती है।  मोती बिखर जाते हैं। कहां तो इन बहुमूल्य मोतियों से मानव का उत्तम श्रृंगार हो सकता था, उसकी सुंदरता में वृद्धि होती और कहां सब कुछ एकदम विपरीत हो रहा है।  

मानव सबसे कुरूप कृति बन बैठा है। आज के परिवेश में देखें तो पता चलता है कि ‘कर्मशीलता‘ रूपी मोती किस प्रकार बिखरा। कर्म की गति विपरीत दिशा में हो गई। मानव नकारात्मक कर्मों में इस कदर फंसा कि जीवन भर उलझता रहा। मनुष्य के कर्म का बिखराव बढ़ता चला गया। एक अन्य मोती ‘कुशाग्र बुद्धि‘ यह अनमोल मोती भी हमें परमात्मा की देन है। यह मोती मिला था परमात्मा को जानने के लिए, बंधनमुक्त जीवन की प्राप्ति के लिए, मानवीय चेतना के विकास के लिए एवं आध्यात्मिक जागरण के लिए परंतु विडम्बना यह है कि मनुष्य ने अपनी इस बुद्धि को केवल संसार को तराशने और उसके विकास में लगाया। 

ईश्वर ने हमें भरपूर शक्तियों से युक्त ‘मन‘ रूपी मोती भी दिया था। इसके द्वारा हमें सुंदर विचारों एवं पवित्र भावनाओं को संजोना था परन्तु माया के संसर्ग से हमने इसे भी पूर्णत: कलुषित कर दिया। मन में हिंसक व वासनात्मक भावनाओं को स्थान दिया। फलस्वरूप मन रूपी मोती भी बिखर गया। ये हमारे बिखरे हुए मोतियों की व्यथा है। यदि इन्हीं मोतियों को विवेकशीलता के साथ पुन: एक सूत्र में पिरोना चाहते हैं तो विवेकी पुरुष वह पूर्ण महात्मा है, जिसने उस तत्व को जान कर महानता के अद्भुत स्तर को प्राप्त किया। हम सब से महान पुरुष का सानिध्य प्राप्त करें, जिससे हमारे भीतर नव-चेतना का संचार हो, बिखरे मोती सिमट जाएं और मानवता का श्रृंगार पुन: लौट आए। वहीं कथा का समापन मां भगवती की पावन श्री आरती के साथ किया गया, जिसमें सभी भक्तों ने अपनी उपस्थिति दर्ज की। 

अमित शर्मा
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