नवदुर्गा का चौथा स्वरूप मां कुष्माण्डा, देगा संतान सुख-राजनीतिक लाभ

Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Sep, 2017 12:06 PM

fourth navratri maa kushmanda

नवदुर्गा के चौथे स्वरूप में देवी कूष्माण्डा सूर्य ग्रह पर अपना आधिपत्य रखती हैं। देवी कूष्माण्डा का स्वरुप उस विवाहित स्त्री व पुरुष को संबोधित करता है, जिसके गर्भ में नवजीवन पनप रहा है अर्थात

नवदुर्गा के चौथे स्वरूप में देवी कूष्माण्डा सूर्य ग्रह पर अपना आधिपत्य रखती हैं। देवी कूष्माण्डा का स्वरुप उस विवाहित स्त्री व पुरुष को संबोधित करता है, जिसके गर्भ में नवजीवन पनप रहा है अर्थात जो गर्भावस्था में है। वीर मुद्रा में सिंह पर सवार देवी कूष्माण्डा सुवर्ण से सुशोभित है तथा शास्त्रों ने इनके स्वरूप को “प्रज्वलित प्रभाकर” कहा है अर्थात चमकते हुए सूर्य जैसे। 


शास्त्रों में इनका निवास सूर्यमंडल के मध्य लोक में कहा गया है। ब्रह्मांड की हर वस्तु व प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है। शास्त्रों में इनका अष्टभुजा देवी के नाम से व्याख्यान आता है। इनके हाथों में कमल, कमंडल, अमृतपूर्ण कलश, धनुष, बाण, चक्र, गदा और कमलगट्टे की जापमाला है। देवी कूष्माण्डा सर्व जगत को सभी सिद्धियों व निधियों को प्रदान करने वाली अधिष्टात्री देवी हैं। देवी कूष्माण्डा की साधना का संबंध सूर्य से है। 


कालपुरूष सिद्धांत के अनुसार कुण्डली में सूर्य का संबंध लग्न पंचम और नवम घर से होता है अतः देवी कूष्माण्डा की साधना का संबंध व्यक्ति के सेहत, मानसिकता, व्यक्तित्व, रूप, विद्या, प्रेम, उद्दर, भाग्य, गर्भाशय, अंडकोष व प्रजनन तंत्र से है।


वास्तुपुरुष सिद्धांत के अनुसार देवी कूष्माण्डा की साधना का संबंध आदित्य से है, इनकी दिशा पूर्व है, निवास में बने वो स्थान जहां पर अथिति कक्ष हो। शास्त्रनुसार जब जगत अस्तित्व विहीन था, तब देवी कूष्माण्डा ने ब्रहमाण्ड की संरचना की थी। अतः कूष्माण्डा ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। इनकी पूजा का श्रेष्ठ समय हैं सूर्योदय। इनकी पूजा लाल रंग के फूलों से करनी चाहिए। इन्हें सूजी से बने हलवे का भोग लगाना चाहिए तथा श्रृंगार में इन्हें रक्त चंदन अर्पित करना चाहिए। इनकी साधना से निसंतानो को संतान की प्राप्ति होती है। उन लोगों को सर्वश्रेष्ठ फल देती है जिनकी आजीविका राजनीति, प्रशासन है।


मां कुष्माण्डा का मुख्य मंत्र- 'ॐ कुष्मांडा देव्यै नमः' का कम से कम 108 बार जाप करें अथवा सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ भी कर सकते हैं।

 
आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com

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