Edited By Jyoti,Updated: 26 Nov, 2020 07:22 PM
आमतौर पर लोग केवल नवरात्रि में ही देवी दुर्गा की पूजा करते हैं, क्योंकि कहा जाता है इस दौरान देवी दुर्गा की साधना अधिक महत्व रखती है। परंतु बता दें नियमित रूप से भी इनकी पूजा करना अधिक आवश्यक माना जाता है।
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आमतौर पर लोग केवल नवरात्रि में ही देवी दुर्गा की पूजा करते हैं, क्योंकि कहा जाता है इस दौरान देवी दुर्गा की साधना अधिक महत्व रखती है। परंतु बता दें नियमित रूप से भी इनकी पूजा करना अधिक आवश्यक माना जाता है। जी हां, जयोतिष शास्त्र में कहा गया है कि अगर कोई जातक प्रत्येक शुक्रवार या रोज़ानाइ इनकी आराधना करता है तो उसके जीवन की लगभग समस्याओं को हल हो जाता है। लेकिन इस दौरान एक समस्या बहुत सो लोगों के साथ देखी जाती है कि आखिर कैसे इनकी पूजा-अर्चना की जाए। क्योंकि आज कल के समय में लोग अपने जीविनी में इतने उलझे पड़े हैं, कि वो चाहते हैं कि कम से कम समय में वो पूजा-अर्चना कर सनातन धर्म के देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त कर सके। ऐसे में हम आपको बता दें कि इस आर्टिकल में हम आपको बताने वाले हैं कि कैसे आप सरल तरीके से देवी दुर्गा प्रसन्न करने के साथ-साथ कई प्रकार की समस्याओं से राहत पा सकते हैं।
श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ मनोरथ सिद्धि के लिए किया जाता है। इसमें दैत्यों के संहार की शौर्य गाथा से अधिक कर्म, भक्ति एवं ज्ञान की त्रिवेणी हैं। मार्कण्डेय पुराण में ब्रह्माजी ने मनुष्यों के रक्षार्थ परमगोपनीय साधन, कल्याणकारी देवी कवच एवं परम पवित्र उपाय संपूर्ण प्राणियों को बताया, जो देवी की नौ मूर्तियां-स्वरूप हैं, जिन्हें 'नव दुर्गा' कहा जाता है, उनकी आराधना आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी तक की जाती है।
यह श्री मार्कण्डेय पुराण का अंश है। यह देवी महात्म्य धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष चारों पुरुषार्थों को प्रदान करने में सक्षम है। सप्तशती में कुछ ऐसे भी स्रोत एवं मंत्र हैं, जिनके विधिवत पारायण से इच्छित मनोकामना की पूर्ति होती है। यहां पढ़ें खास 6 मंत्र-
बाधा मुक्ति एवं धन-पुत्रादि प्राप्ति के लिए-
सर्वाबाधा वि निर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वितः।
मनुष्यों मत्प्रसादेन भवष्यति न संशय॥
सर्वकल्याणकारी मंत्र-
सर्व मंगलं मांगल्ये शिवे सर्वाथ साधिके ।
शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुऽते॥
आरोग्य एवं सौभाग्य-
देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषोजहि॥
विपत्ति नाश के लिए-
शरणागतर्दनार्त परित्राण पारायणे।
सर्व स्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोऽतुते॥
आरोग्य, ऐश्वर्य, सौभाग्य, संपदा एवं शत्रु भय मुक्ति-
ऐश्वर्य यत्प्रसादेन सौभाग्य-आरोग्य सम्पदः।
शत्रु हानि परो मोक्षः स्तुयते सान किं जनै॥
विघ्नहरण मंत्र-
सर्वबाधा प्रशमनं त्रेलोक्यसयाखिलेशवरी।
एवमेय त्याया कार्य मस्माद्वैरि विनाशनम्॥