क्या गणपति विसर्जन में महिलाएं नहीं होती शामिल?

Edited By Jyoti,Updated: 07 Jun, 2022 06:12 PM

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प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को तिथि से गणेश उत्सव की शुरुआत होती है। बताया जाता है इस दिन से देश में पूरे दिन 10 दिनों तक गणपति की धूम देखने और गणपति बप्पा मोरेया की गूंज सुनने को मिलती है। जिसके उपरांत अनंत चतुर्दशी

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प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को तिथि से गणेश उत्सव की शुरुआत होती है। बताया जाता है इस दिन से देश में पूरे दिन 10 दिनों तक गणपति की धूम देखने और गणपति बप्पा मोरेया की गूंज सुनने को मिलती है। जिसके उपरांत अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश विसर्जन होता है जिस दिन बप्पा की विदाई होती है। अक्सर कहा-सुना जाता है बप्पा की विदाई में यानि गणपति के विसर्जन में महिलाएं शामिल नहीं होती। पर आखिर ऐसा क्यों है, तो चलिए जानते हैं आखिर क्यों महिलाएं को गणेश विसर्जन में शामिल नहीं हो सकती।  
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बता दें कि शास्त्रों के अनुसार सिर्फ गणेश विसर्जन ही नहीं बल्कि मां दुर्गा और अन्य मूर्ति विसर्जन का अधिकार भी केवल पुरुषों को ही दिया गया है। मान्यता है कि मूर्ति विसर्जन को अंतिम संस्कार का ही रूप माना जाता है और हिंदू धर्म के अनुसार अंतिम संस्कार का हक केवल पुरुषों को ही दिया गया है। इसलिए मूर्ति विसर्जन के समय महिलाएं इस कार्य से दूर रहती हैं और उनसे मूर्ति विसर्जन का कार्य भी नहीं कराया जाता है।

अक्सर ऐसा देखने को मिल जाता है कि जब लोग बप्पा की मूर्ति विसर्जित कर रहे होते हैं तो उनकी आंखें नम हो जाती हैं और पूरे माहौल में मायूसी सी छा जाती है। बस एक आस रहती है कि अगली बरस बप्पा फिर से हमारे घर पधारेंगे। तो ये भी एक वजह है कि वहां पर सिर्फ अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखने वाले लोग की जरूरत होती है।  इसी कारण से यह कार्य सिर्फ पुरुष ही करते हैं क्योंकि महिलाएं बहुत ही ज्यादा कोमल दिल की होती हैं और वह किसी की भी विदाई नहीं देख सकती। इसके अलावा सुरक्षा के मामले की वजह से भी महिलाओं का वहां उपस्थित रहना ठीक नहीं है।
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किसी के भी अंतिम संस्कार में जादू टोना भी होता है और महिलाएं अक्सर जल्द ही इन सब चीजों का शिकार बन जाती है। इसलिए भी महिलाओं को ऐसी जगह से दूर रहना चाहिए लेकिन बदलते ज़माने के साथ ये भी प्रचलन भी बदल रहा है मॉडर्न ख्याल रखने वाले परिवार अपने घर की बहु-बेटियों को विसर्जन के लिए भेज देते हैं तो वहीं आज भी ऐसे लोग हैं जो शास्त्रों और धर्म ग्रंथों के नियमों का पालन करते हैं और घर की महिलाओं को नहीं जाने देते हैं।

बताते चलें कि इस बार गणपति 2 सितंबर को अपने भक्तों के घर विराजे थे और 12 सितंबर यानि कि आज उनके जाने का समय है लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हमेशा गणपति को जल में ही क्यों विसर्जित किया जाता है। सबसे पहली मान्‍यता है कि गणेशजी ने ही महाभारत ग्रंथ को लिखा था। महर्षि वेदव्‍यास ने गणेशजी को लगातार 10 दिन तक महाभारत की कथा सुनाई और गणेशजी ने 10 दिनों तक इस कथा को हूबहू लिखा। 10 दिन के बाद वेदव्‍यासजी ने जब गणेशजी को छुआ तो देखा कि उनके शरीर का तापमान बहुत बढ़ चुका था। वेदव्‍यासजी ने उन्‍हें तुरंत कुंड में ले जाकर उनके शरीर के तापमान को शांत किया। तभी से मान्‍यता है कि गणेशजी को शीतल करने के लिए उनका विसर्जन किया जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि जल का संबंध ज्ञान और बुद्धि से होता है जिसके कारक स्वयं भगवान गणेश हैं। जल में विसर्जित होकर भगवान गणेश साकार से निराकार रूप में घुल जाते हैं।
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