Edited By Niyati Bhandari,Updated: 01 Feb, 2021 03:52 AM
भगवान बुद्ध एक दिन वन से गुजर रहे थे। रास्ते में एक व्यक्ति जमीन खोद रहा था। बुद्ध विश्राम के लिए वृक्ष के नीचे बैठ गए। उस व्यक्ति को खोदते-खोदते एक कलश मिला। कलश में हीरे जवाहरात भरे हुए थे।
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Gautam buddha story: भगवान बुद्ध एक दिन वन से गुजर रहे थे। रास्ते में एक व्यक्ति जमीन खोद रहा था। बुद्ध विश्राम के लिए वृक्ष के नीचे बैठ गए। उस व्यक्ति को खोदते-खोदते एक कलश मिला। कलश में हीरे जवाहरात भरे हुए थे। उसने सोचा आज मेरा भाग्य जाग उठा है। उसने कलश बुद्ध के चरणों में रखा तथा कहा, ‘‘आपके आशीर्वाद से ही मुझे यह अकूत दौलत प्राप्त हुई है। मैं इसमें से कुछ रत्न आपको भेंट करना चाहता हूं।’’
बुद्ध ने कहा, ‘‘तुम्हारे लिए यह दौलत है किंतु मेरी दृष्टि में यह विष के समान है। बिना परिश्रम के मिला धन विष ही होता है।’’
वह व्यक्ति नाराज होकर कलश लेकर चला गया।
उसने हीरे-जवाहरात बेचकर सम्पत्ति खरीदी और दरिद्र से धनवान हो गया। किसी ईर्ष्यालु ने राजा से शिकायत कर दी कि, ‘‘जमीन में दबा धन राजकोष का होता है। अमुक व्यक्ति ने उसे निजी काम में लाकर नियम का उल्लंघन किया है। राजा ने उस व्यक्ति को पकड़वा कर बुलवाया और कलश जमा कराने को कहा तो उसने सच्ची बात बता दी कि मैंने हीरे-जवाहरात बेचकर सम्पत्ति खरीद ली है। राजा के आदेश से उसे परिवार सहित जेल में डाल दिया गया। उसकी सम्पत्ति जब्त कर ली गई।
एक दिन राजा जेल के निरीक्षण के लिए गया। उस व्यक्ति से भी मिला। उसने कहा, ‘‘राजन मुझे जब वह कलश जमीन से मिला तो बुद्ध वहीं थे। उन्होंने मुझसे कहा था कि इसमें रत्न नहीं विष भरा है। यह सुनकर मैंने उनका अपमान किया था आज जेल में रहकर मुझे अनुभूति हो रही है कि उनकी बात बिल्कुल सच थी। बिना परिश्रम किए मिला विष ही होता है। मैं एक बार भगवान बुद्ध के दर्शन कर उनसे क्षमा मांगना चाहता हूं। ’’
राजा ने भगवान बुद्ध को ससम्मान राज्य में आमंत्रित किया। जेल से निकाल कर उस व्यक्ति को बुद्ध के पास ले जाया गया। उसने उनके चरणों में बैठकर क्षमा मांगी तथा कहा आपकी बात सत्य थी। कलश में वास्तव में विष था, जिसने मुझे जेल भिजवाया। बुद्ध के आदेश से राजा ने उसे जेल से रिहा कर दिया। उसने उसी दिन से परिश्रम से प्राप्त धन से जीवन यापन शुरू कर दिया।