Hariyali Teej: ये है हरियाली तीज से जुड़ी अहम जानकारी, आप भी जरूर पढ़ें

Edited By Updated: 19 Jul, 2025 02:21 PM

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Hariyali Teej 2025: सावन के महीने में शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाने वाला हरियाली तीज का पर्व सुहागिन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन वे सोलह शृंगार कर अपने पति की लम्बी उम्र व अच्छे सौभाग्य के लिए भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा...

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Hariyali Teej 2025: सावन के महीने में शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाने वाला हरियाली तीज का पर्व सुहागिन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन वे सोलह शृंगार कर अपने पति की लम्बी उम्र व अच्छे सौभाग्य के लिए भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करते हुए व्रत रखती हैं। यह दिन भगवान शिव और पार्वती मां के मिलन से जुड़ा है। कहा जाता है कि मां पार्वती ने शिव को पति रूप में पाने के लिए 107 बार जन्म लिया पर वे उन्हें पा नहीं सकीं। 108वीं बार उन्होंने पर्वतराज हिमालय के घर में जन्म लिया तथा महादेव को वर रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की तथा पूर्ण रूप से अन्न-जल त्याग दिया।

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कई मुश्किलों के पश्चात भी वह तप में लीन रहीं। जंगल में एक गुफा के भीतर पूरी आस्था के साथ उन्होंने सावन के महीने में शुक्ल पक्ष की तृतीया को रेत से एक शिवलिंग का निर्माण कर विधिपूर्वक उसकी पूजा की। इससे खुश होकर शिवजी ने पार्वती जी को पत्नी रूप में स्वीकार किया।

सावन में पूरी सृष्टि अद्भुत सौंदर्य में लिपटी दिखाई देती है और चारों ओर मन को मोह लेने वाला वातावरण विद्यमान रहता है। प्रकृति हरियाली की चादर में लिपटी होने के कारण ही यह पर्व हरियाली तीज के नाम से जाना जाता है।

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तीज से एक दिन पहले नवविवाहित लड़कियां अपने मायके चली जाती हैं और तब उनकी ससुराल की तरफ से सिंधारा भेजा जाता है जिसमें फल, मेवा, कपड़े, मिठाई और शृंगार का सामान होता है। विशेष रूप से घेवर और फेनी नामक मिठाई के साथ गुझिया भी भेजी जाती है। जो महिलाएं व्रत रखती हैं वे बया निकाल कर रख लेती हैं और अपनी ससुराल में किसी भी बड़ी महिला सास, ननद या जेठानी को दे सकती है।

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जिस घर में कोई बड़ा न हो तो यह सामग्री किसी मंदिर के पंडित को दी जा सकती है। कुछ समय पहले तक लड़कियां अपनी सहेलियों के साथ मिलकर तीज के अवसर पर मेहंदी लगाती और झूला झूलती थीं, सावन के गीत गाती थीं : ‘चन्दन पटरी घडायो राजा, बाबुल अंगना में झूला डलाओ रे।’

सावन में झूला झूलने की परम्परा सदियों पुरानी है और अमृत के समान बरसते पानी में भीग जाने पर कई रोगों का नाश होता है।
भारतीय गांवों आदि में आज भी यह प्रथा चलन में है लेकिन शहरों में तीज को लेकर काफी बदलाव आया है। तीज मनाने का तरीका बेशक बदल गया हो पर उद्देश्य तो पति की लम्बी उम्र की कामना और सौभाग्य से ही जुड़ा है।

ब्रज में तीज पर्व कुंवारी लड़कियों का त्यौहार है जबकि राजस्थान में कुंवारी और सुहागिनों का महत्वपूर्ण उत्सव है।

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कई क्षेत्रों में तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं और विवाहित बेटी और दामाद को विशेष आमंत्रण भेज कर बुलाया जाता है। सावन के पश्चात बेटी को घेवर और फेनी मीठे के रूप में देकर विदा किया जाता है।

सौभाग्य का प्रतीक तीज का त्यौहार अपने साथ रंगों की बहार, गीतों की गुनगुनाहट और विभिन्न मिठाइयों का स्वाद लेकर आता है। विवाहित लड़कियां अपनी शादी के पहले सावन पर मायके जाने का बेसब्री से इंतजार करती हैं और गीत गाती हैं :
‘अब के बरस भेज भाई को बाबुल,
सावन में लीजो बुलाय रे,
लौटेंगी जब बचपन की सखियां,
दीजो संदेसा भिजाय रे।’

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