हिंगलाज जयंती: बलूचिस्तान में नानी मां का यह मंदिर है अति प्रसिद्ध,जानें इससे जुड़ा रहस्य

Edited By Jyoti,Updated: 09 Apr, 2021 03:53 PM

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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आज यानि 09 अप्रैल, को हिंगराज जयंती है। बताया जाता है प्रत्येक वर्ष चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की द्वादशी को यह जयंती मनाई जाती है

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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आज यानि 09 अप्रैल, को हिंगराज जयंती है। बताया जाता है प्रत्येक वर्ष चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की द्वादशी को यह जयंती मनाई जाती है। बता दें हिंगलाज माता का मंदिर बलूचिस्तान में हिंगोल नदी के समीप हिंगलाज क्षेत्र में सुरम्य पहाड़ियों की तलहटी में स्थित है। जिसे देवी मां के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। लोक मत है कि हिंगलाज वह स्थान जहां देवी सती का सिर गिरा था। जहां वर्तमान समय में माता सती कोटटरी रूप में तथा भगवान शंकर भीमलोचन भैरव रूप में विराजमान हैं। बृहन्नील तंत्रानुसार की मानें तो यहां सती माता का 'ब्रह्मरंध्र' गिरा था। आइए जानते हैं मंदिर से जुड़ी खास बातें-

यहां की प्रचलित किंवदंतियों के अनुसार हिंगलाज माता को संपूर्ण पाकिस्तान में नानी मां के रूप में भी जाना जाता है, मंदिर को नानी मां का मंदिर भी कहा जाता है। मुसलमान हिंगुला देवी के मंदिर की यात्रा को नानी का हज भी कहते हैं। बल्कि माना जाता है हिंदुओं से ज्यादा यहां मुस्लिम अधिकतर रूप से इनकी मानते हैं। समस्त सबलूचिस्तान के मुसलमान भी इनकी विधि वत उपासना एवं पूजा करते हैं। कहा जाता है जो मुस्लिम स्त्रियां इस स्थान का दर्शन कर लेती हैं उन्हें हाजियानी कहते हैं। उन्हें हर धार्मिक स्थान पर सम्मान के साथ देखा जाता है। मुसलमानों के लिए यह नानी पीर नामक स्थान भी कहलाता है। 

मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा- 
बताया जाता है मां के इस मंदिर परिसर के नीचे अघोर नदी है। ऐसी कथाएं प्रचलित हैं कि रावण वध के पश्वात ऋषियों ने श्री राम से ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति हेतु हिंगलाज में यज्ञ करके कबूतरों को दाना चुगने को कहा है। जिसके बाद श्री राम ने वैसे ही किया। उन्होंने ज्वार के दान हिंगोस नदी में डाले जो ठूमरा बनकर उभरे। कहा जाता है इससे उन्हें ब्रह्महत्या दोष से मुक्ति मिली गई। आज भी मंदिर में आने वाले श्रद्धालु से यहां से दाने जमा करके ले जाते हैं। मंदिर से संबंधित अन्य मान्यता के अनुसार हर रात इस स्थान पर सभी शक्तियां एकत्रित होकर रास रचाती हैं और दिन निकलते हिंगलाज माता के भीतर समा जाती हैं।


 

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