क्यों सनातन धर्म में सर्वपितृ अमावस्या का इतना है महत्व?

Edited By Jyoti,Updated: 05 Sep, 2020 04:32 PM

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पितृ पक्ष आरंभ हो चुका है जिसके प्रांरभ होते ही हर कोई अपने पूर्वजों के श्राद्ध करने में लगे हुए हैं। धार्मिक शास्त्र के अनुसार परिजनों की मृत्यु तिथि के अनुसार पिंडदान,

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पितृ पक्ष आरंभ हो चुका है जिसके प्रांरभ होते ही हर कोई अपने पूर्वजों के श्राद्ध करने में लगे हुए हैं। धार्मिक शास्त्र के अनुसार परिजनों की मृत्यु तिथि के अनुसार पिंडदान, पितर तर्पण तथा श्राद्ध आदि कार्य समस्य प्रकार के कर्म कांड करते हैं। मगर दिन लोगों को अपने पितरों की मृत्यु तिथि नहीं पता होती वो लोग पितृ पक्ष के दौरान पड़ने वाले अमावस्या के दिन अपने पूर्वजों की आत्मा की तृप्ति के लिए श्राद्ध करते हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता प्रचलित है परिजनों की मृत्यु तिथि पता न होने पर इस दिन पितरों का पिंडदान किया जा सकता है। मगर ऐसा क्यों  है? कैसे ये मान्यता प्रचलित हुई? क्यों सर्वपितृ अमावस्या के दिन ऐसा करना अच्छा माना जाता है? 
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ये ऐसे प्रशन हैं, जिसके उत्तर तलाशने की शायद आज तक किसी ने कोशिश नहीं की होगी। या फिर जिन्होंने की होगी, उन्हें इसका उत्तर नहीं मिला होगा। तो चलिए अगर आप इन सी सवालों के जवाब जानने की इच्छा रखते हैं तो आपको बताते हैं इससे जुड़ी विशेष जानकारी कि आखिर क्यों सर्वपितृ अमावस्या की तिथि को श्राद्ध आदि करने के लिए महत्वपूर्ण कहा गया है। 

बता दें इस साल के पितृ पक्ष की अमावस्या तिथि 17 सितंबर को पड़ रही है। पंचांग के अनुसार आश्विन मास में पड़ने वाली इस अमावस्या तिथ को सर्व पितृ अमावस्या तिथि के नाम सेे जाना जाता है। तो वहीं सनातन धर्म के ग्रंथ आदि में इसे मोक्ष दायिनी अमावस्या भी कहा जाता है। शास्त्रों में इस तिथि से ऐसी घटना जुड़ी हुई है जो इस बात की ओर इशारा करती है कि क्यों इसका इतना महत्व है।

इससे जुड़ी कथाओं के अनुसार देवताओं के पितृगण 'अग्निष्वात्त' जो समपथ लोक में निवास करते हैं। उनकी मानसी कन्या, 'अच्छोदा' नाम की एक नदी के रूप में अवस्थित हुई। एक समय की बात है, अच्छोदा ने 1,000 वर्ष तक निर्बाध तपस्या की। 
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जिसके तप से प्रसन्न होकर दिव्यशक्ति परायण देवताओं के पितृगण 'अग्निष्वात्त' अच्छोदा को वरदान देने के लिए दिव्य सुदर्शन शरीर धारण कर आश्विन अमावस्या के दिन उपस्थित हुए।

ऐसा किंवदंतियां प्रचलित हैं कि उन पितृगणों में 'अमावसु' नाम की एक अत्यंत सुंदर पितर की मनोहारी-छवि, यौवन और तेज को देखकर अच्छोदा कामातुर हो गई और उनसे प्रणय निवेदन करने लगीं किन्तु अमावसु अच्छोदा की काम प्रार्थना को ठुकराकर अनिच्छा प्रकट की, जिससे अच्छोदा लज्जित होकर और स्वर्ग से पृथ्वी पर आ गिरी।

अमावसु के ब्रह्मचर्य और धैर्य की समस्त पितरों ने सराहना की। तथा वरदान दिया कि आज के बाद यह अमावस्या तिथि 'अमावसु' के नाम से ही जानी जाएगी। 

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जो जातक इस दिन अपने किसी भी परिजन का श्राद्ध न कर पाए उसके लिए ये दिन अच्छा माना जाएगा। इस अमावस्या के दिन श्राद्ध-तर्पण करके जातक सभी बीते 14 दिनों का पुण्य प्राप्त करते हुए अपने पितरों को तृप्त कर कर सकेगा। ऐसा कहा जाता है तभी से प्रत्येक माह की अमावस्या तिथि को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है और यह तिथि 'सर्वपितृ श्राद्ध' के रूप में भी मनाई जाती है। 

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