Maha Shivratri 2019 : शिवलिंग की पूजा का क्या है महत्व ?

Edited By Jyoti,Updated: 26 Feb, 2019 02:03 PM

importance of shivlinga in hindu religion

हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का बहुत महत्व है। कहा जाता है कि हिंदू धर्म के सभी त्योहारों में से इस पर्व को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। भोलेनाथ के अन्नय भक्त तो सारा साल इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं।

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हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का बहुत महत्व है। कहा जाता है कि हिंदू धर्म के सभी त्योहारों में से इस पर्व को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। भोलेनाथ के अन्नय भक्त तो सारा साल इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। ज्योतिष के अनुसार इस दिन लोग भिन्न-भिन्न प्रकार के शिवलिंगों की पूजा करते हैं क्योंकि लेकिन बहुत कम लोग जानते होंगे कि इस दिन विभिन्न शिवलिंगों की पूजा का क्या महत्व है। तो अगर आप इससे जुड़े बातों के बारे में नहीं जानते तो आज हम आपको ऐसी ही कुछ बाते बताने जा रहे हैं। इसके साथ ही जानेंगे कि महाशिवरात्रि पर शिवलिंग की पूजा के कैसे शिव जी मनोकामना पूरी करते हैं।
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ब्रह्मांड का प्रतीक है शिवलिंग-
कहा जाता है कि पूरा ब्रह्मांड उसी तरह है जिस तरह एक शिवलिंग का रूप है, जिसमें जलधारी और ऊपर से गिरता पानी है। ऐसा माना जाता है कि शिवलिंग का आकार-प्रकार ब्रह्मांड में घूम रही हमारी आकाशगंगा और उन पिंडों की तरह है, जहां जीवन होने की संभावना हैं। इसके अलावा वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे सृष्टि प्रकट होती है उसे शिवलिंग कहते हैं।
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शिव का आदि और अनादी रूप है शिवलिंग है-
हिंदू धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक ईश्वर निराकार है  और उसी का प्रतीक है शिवलिंग। शून्य, आकाश, अनंत, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे 'शिवलिंग' कहा गया हैं। स्कंद पुराण में बताया गया है आकाश स्वयंलिंग है। तो वहीं शिव पुराण में शिव को संसार की उत्पत्ति का कारण बताया गया है।
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निराकार ज्योति का प्रतीक है शिवलिंग-
हिंदू धर्म के ग्रंथों पुराणों में शिवलिंग को कई नामों से संबोधित किया गया है, जैसे प्रकाश स्तंभलिंग, अग्नि स्तंभलिंग, ऊर्जा स्तंभलिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभलिंग आदि। बता दें कि वेदानुसार ज्योतिर्लिंग यानि 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश । तो वहीं शिव पुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड भी कहा जाता है।

अब जानते हैं कि प्राचीन काल में कैसे शुरू हुई शिवलिंग की पूजा-
पौराणिक कथाओं के अनुसार भोलेनाथ ने ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर हुए विवाद को सुलझाने के लिए एक दिव्य ज्योति को प्रकट किया। कहते हैं कि इसी ज्योतिर्लिंग का आदि और अंत ढूंढते हुए ब्रह्मा और विष्णु को शिव के परब्रह्म स्वरूप का ज्ञान हुआ। तभी से शिव को परब्रह्म मानते हुए उनके प्रतीक रूप में ज्योतिर्लिंग की पूजा आरंभ हुई थी।
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कितने प्रकार के होता है शिवलिंग-
ज्योतिष के अनुसार प्रमुख रूप से 2 प्रकार के शिवलिंग होते हैं- पहला आकाशीय या उल्का शिवलिंग और दूसरा पारद शिवलिंग।

कहा जाता है कि पहला उल्कापिंड की तरह काला अंडाकार लिए हुए होता है, जिसे भारत में ज्योतिर्लिंग कहते हैं।

तो वहीं दूसरा मानव द्वारा निर्मित पारे से बना शिवलिंग होता हैं, जिसे पारद शिवलिंग के नाम से जाता है।

इसके अलावा पुराणों के मुताबिक शिवलिंग के प्रमुख 6 प्रकार होते हैं-
देवलिंग, असुरलिंग, अर्शलिंग, पुराणलिंग, मनुष्यलिंग और स्वयंभू महादेव परब्रह्म हैं। इन लिंगों की श्रद्धापूर्वक पूजा करने और अभिषेक करने से सभई तरह की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
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