Edited By Prachi Sharma,Updated: 30 Dec, 2023 08:01 AM
एक समय राजा मान सिंह प्रसिद्ध कवि कुंभनदास के दर्शन के लिए वेश बदल कर उनके घर पहुंचे। उस समय कुंभनदास अपनी बेटी को आवाज लगाते
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Inspirational Story: एक समय राजा मान सिंह प्रसिद्ध कवि कुंभनदास के दर्शन के लिए वेश बदल कर उनके घर पहुंचे। उस समय कुंभनदास अपनी बेटी को आवाज लगाते हुए कह रहे थे, ‘‘बेटी जरा दर्पण तो लाना मुझे तिलक लगाना है।’’ बेटी जब दर्पण लाने लगी तो वह नीचे गिरकर टूट गया।
यह देख कर कुंभनदास बोले, ‘‘कोई बात नहीं किसी बर्तन में जल भर लाओ।’’
राजा, कुंभनदास के पास बैठकर बातें करने लगे और बेटी एक टूटे हुए घड़े में पानी भरकर ले आई। जल की छाया में अपना चेहरा देखकर कुंभनदास ने तिलक लगा लिया। यह देख कर राजा दंग रह गए। वह कुंभनदास से अत्यंत प्रभावित हुए। राजा यह सोच कर प्रसन्न थे कि कवि कुंभनदास उन्हें पहचान नहीं पाए हैं। राजा वहां से चले गए।
अगले दिन वह एक स्वर्ण जड़ित दर्पण लेकर कवि के पास पहुंचे और बोले, ‘‘कविराज आपकी सेवा में यह तुच्छ भेंट अर्पित है। कृपया इसे स्वीकार कीजिए।’’
कुंभनदास विनम्रतापूर्वक बोले, ‘‘महाराजे, कल वेश बदल कर आप ही हम से मिलने आए थे। कोई बात नहीं। हमें आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा। पर एक विनती है।’’
राजा ने पूछा, ‘‘क्या कविराज ?’’
कुंभनदास बोले, ‘‘आप मेरे घर अवश्य आइए लेकिन खाली हाथ। यदि आप अपने साथ ऐसी ही वस्तुएं लेकर आते रहे तो बेकार की वस्तुओं से मेरा घर भर जाएगा। मुझे व्यर्थ की वस्तुओं से कोई मोह नहीं। मुझे बस मां सरस्वती की कृपा की आवश्यकता है।’’ कवि के इस स्वाभिमानी रूप को देखकर राजा आश्चर्यचकित रह गए। वह समझ गए कि कवि कुंभनदास की निर्धनता उनकी विवशता नहीं है बल्कि इसी तरह का जीवन उन्हें संतुष्टि देता है। वह लोभ, मोह , माया आदि से बहुत ऊपर उठ चुके हैं। उस दिन से कुंभनदास राजा के प्रिय हो गए। राजा के लिए यह गर्व का विषय था कि उनके राज्य में कुंभनदास जैसे लोग रहते हैं।