Edited By Prachi Sharma,Updated: 18 Apr, 2024 11:00 AM
एक मंदिर निर्माण के समय तीन श्रमिक धूप में बैठे पत्थर तोड़ रहे थे। उधर से गुजर रहे एक संत ने उनसे पूछा, “क्या कर रहे हैं ?”
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Inspirational Story: एक मंदिर निर्माण के समय तीन श्रमिक धूप में बैठे पत्थर तोड़ रहे थे। उधर से गुजर रहे एक संत ने उनसे पूछा, “क्या कर रहे हैं ?”
एक बोला, “अरे महाराज, पत्थर तोड़ रहा हूं। उसके कहने के लहजे में दुख बोझ झलक रहा था। भला पत्थर तोड़ना आनंद की बात कैसे हो सकती है। वह उत्तर देकर फिर बुझे हुए मन से पत्थर तोड़ने लगा।”
तभी संत की ओर देखते हुए दूसरे श्रमिक ने कहा, “बाबा, यह तो रोजी रोटी है। मैं तो बस अपनी आजीविका कमा रहा हूं। हालांकि उसने जो कहा, वह भी ठीक बात थी। वह पहले मजदूर जितना दुखी तो नहीं था, लेकिन आनंद की कोई झलक उसकी आंखों में नहीं दिख रही थी।
बात भी सही है, आजीविका कमाना भी एक काम है, उसमें आनंद की अनुभूति कैसे हो सकती है।”
तीसरा श्रमिक वैसे तो हाथों से पत्थर तोड़ रहा था, पर उसके होंठों पर गीत के स्वर फूट रहे थे। उसने गीत को रोक कर संत को उत्तर दिया, “बाबा, मैं तो मां का घर बना रहा हूं।
उसकी आंखों में चमक थी, हृदय में जगदम्बा के प्रति भक्ति हिलोर ले रही थी।”
तीनों श्रमिकों की बात सुनकर संत यह कहते हुए भाव समाधि में डूब गए कि सचमुच जीवन तो वही है, पर दृष्टिकण भिन्न होने से सब कुछ बदल जाता है। जीवन का आनंद किसी वस्तु या परिस्थति में नहीं, बल्कि जीने वाले के दृष्टिकोण में है।