Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Jan, 2022 12:16 PM
गणेश शंकर विद्यार्थी अपने समय के जाने-माने पत्रकार थे। वह राष्ट्रीय एकता और आम आदमी के हक के लिए हमेशा संघर्षशील रहते थे
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Inspirational Story: गणेश शंकर विद्यार्थी अपने समय के जाने-माने पत्रकार थे। वह राष्ट्रीय एकता और आम आदमी के हक के लिए हमेशा संघर्षशील रहते थे। जिन दिनों वह कानपुर में थे, उन दिनों वहां कुछ शरारती तत्व शहर का साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने पर लगे थे। शहर की हालत से गणेश शंकर बेहद परेशान थे और किसी तरह शांति स्थापित करना चाहते थे। उन्होंने दंगा-फसाद करने वालों को सबक सिखाने की ठान ली। विद्यार्थी जी शरीर से दुबले-पतले थे मगर आत्मविश्वास और साहस उनमें कूट-कूट कर भरा हुआ था। एक दिन वह लोगों को शांत कराते हुए जनरल गंज की ओर निकल गए।
वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि एक पहलवान जैसा दिखने वाला आदमी एक जूते की दुकान को लूट रहा है। वह जूतों को बोरे में भर रहा था और दुकानदार उसके सामने हाथ जोड़े गिड़गिड़ा रहा था।
यह देख कर विद्यार्थी जी ने पहलवान को गलत काम करने के लिए जोर से फटकारा। वहां पर कई लोग खड़े थे। वे सब हैरान रह गए कि एक दुबला-पतला व्यक्ति भीमकाय शरीर वाले बदमाश को ललकार रहा है।
बदमाश विद्यार्थी जी की ओर लपका तो वह उसे दुत्कारते हुए बोले, ‘‘तुम्हें शर्म नहीं आती? दुकान का माल क्या मुफ्त है? इतने तगड़े होकर भी दूसरों की सेवा या मदद तो नहीं कर रहे, उल्टे दूसरे का सामान लूट रहे हो।’’
बदमाश यह सुनकर शर्मिंदा हो गया और सारा सामान छोड़कर वहां से चंपत हो गया। उसके जाने के बाद लोग विद्यार्थी जी से बोले, ‘‘वह आदमी आप से तगड़ा था तो भी आपको उससे डर नहीं लगा।’’
वह बोले, ‘‘वह तगड़ा कहां था? सिर्फ शरीर से तगड़े को मैं तगड़ा नहीं मानता। वह मन से दुर्बल था, तभी तो गलत काम कर रहा था। गलत काम करने वालों का शरीर भले ही मजबूत हो लेकिन वे मन से बहुत कमजोर होते हैं। यदि हम मनुष्य होकर भी मनुष्यता से दूर भागते हैं तो मनुष्य का अर्थ ही क्या रह जाता है?’’
विद्यार्थी जी की इस बात पर वहां उपस्थित सभी लोग शर्मिंदा हो गए और आगे से कोई गलत नहीं करने एवं न ही किसी दूसरे को गलत काम करने देने का निर्णय लिया।