सरयूदासजी की ऐसी सहनशीलता देख दुश्मन की आंखों में आया पानी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 10 Jan, 2018 02:12 PM

inspirational story of mahatma sarayudasji

महात्मा सरयूदास का जन्म गुजरात के पारडी नामक गांव में हुआ था। उनका बचपन का नाम ‘भोगीलाल’ था। बचपन में उन्हें अपने पड़ोसी ‘बजा भगत’ का सत्संग मिला। सरयूदास जी की शिक्षा-दीक्षा बहुत थोड़ी थी। वह अपने मामा के ही घर पर रहकर उनका व्यापार संभालते थे।

महात्मा सरयूदास का जन्म गुजरात के पारडी नामक गांव में हुआ था। उनका बचपन का नाम ‘भोगीलाल’ था। बचपन में उन्हें अपने पड़ोसी ‘बजा भगत’ का सत्संग मिला। सरयूदास जी की शिक्षा-दीक्षा बहुत थोड़ी थी। वह अपने मामा के ही घर पर रहकर उनका व्यापार संभालते थे। कुछ दिनों बाद सरयूदास का विवाह हो गया पर उनकी पत्नी अधिक दिनों तक जीवित नहीं रह सकीं। एक बार की बात है कि सरयूदास रेलगाड़ी से कहीं जा रहे थे। गाड़ी में भारी भीड़ थी। कहीं तिल रखने की भी जगह नहीं थी।


किसी तरह से संत जी को गाड़ी में बैठने की जगह मिल गई। गाड़ी में संत जी के पास ही एक मजबूत कद-काठी का व्यक्ति बैठा था। वह बार-बार संत की ओर पैर बढ़ाकर उन्हें ठोकर मार देता था। संत सरयूदास ने बड़े दयाभाव से कहा, ‘‘भाई संकोच मत करना। लगता है तुम्हारे पैर में कहीं पीड़ा है जिसे दिखाने को तुम बार-बार पैर मेरी ओर बढ़ाते हो फिर वापस खींच लेते हो। मुझे सेवा का मौका दो। मैं भी तुम्हारा अपना ही हूं।’’ यह कहते हुए संत ने व्यक्ति के पैर उठाकर अपने गोद में रख लिए और उसे सहलाने लगे। संत के ऐसा करने पर यात्री शर्मिन्दा हुआ और क्षमा याचना करते हुए कहने लगा, ‘‘महाराज मेरा अपराध क्षमा करें। आप महात्मा हैं, सहृदय हैं। यह मुझे अब एहसास हुआ है।’’


सहनशीलता ऐसा गुण है जिसे हमें अपने अंदर विकसित करना चाहिए। व्यक्ति का सहनशील होना ही उसे इस दुनिया में आगे ले जाता है। हृदय की विशालता का मूल्यांकन बाहरी वैभव से नहीं किया जा सकता। हृदय में स्थान हो तो छोटी कुटिया में भी स्थान बन जाना मुश्किल नहीं है। हृदय में सहृदया, संतोष है तो इंसान कुटिया में भी सुखी रहता है और असंतोष है तो ऐसा जीव महलों में भी सुखी नहीं है।

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