Kundli Tv- यहां गाय करती है शिवलिंग का जलाभिषेक, जानें इस मंदिर का रहस्य

Edited By Jyoti,Updated: 21 Jul, 2018 04:15 PM

jata shankar tirth

अपनी भव्यता और अलौकिकता के चलते धर्मशाला की विध्यांचल पर्वत श्रंखला में स्थित तीर्थ विश्वभर मे विख्यात है। मान्यता के अनुसार इस स्थान को जटायु की तपोभूमि माना जाता है।

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अपनी भव्यता और अलौकिकता के चलते धर्मशाला की विध्यांचल पर्वत श्रंखला में स्थित तीर्थ विश्वभर मे विख्यात है। मान्यता के अनुसार इस स्थान को जटायु की तपोभूमि माना जाता है। इस तीर्थ की सबसे बड़ी व खास विशेषता ये है कि जहां भगवान जटाशंकर का जलाभिषेक करने वाली जलधारा का राज़ आज तक कोई नहीं जान सका। 

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इस तीर्थ को की प्रसिद्धि का असली श्रेय श्रेय ब्रह्मलीन संतश्री केशवदासजी त्यागी (फलाहारी बाबा) को जाता है। हालांकि तीर्थ अपनी भंडारा प्रथा के चलते अर्द्धकुंभ और सिंहस्थ में लोकप्रिय है। वर्तमान में उनके शिष्य मंहत बद्रीदासजी तीर्थ का संरक्षण कर रहे हैं। इतिहास की मानें तो लगभग 600 साल पहले वैष्णव संप्रदाय के वनखंडी नामक एक महात्मा यहां निवास करते थे, जिन्हें लाल बाबा भी कहते थे।
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लाल बाबा प्रतिदिन धाराजी के नर्मदा तट पर स्नान के लिए जाते थे और सूर्योदय के समय जटाशंकर लौटकर भगवान्‌ का अभिषेक करते थे। उनके कमज़ोर होने पर नर्मदा माता ने प्रकट होकर भगवान के अभिषेक के साथ-साथ विभिन्न कामों के लिए हमेशा बहने वाली पांच जलधाराओं का वरदान जटाशंकर तीर्थ के लिए दिया। कालांतर में कलयुग के प्रभाव से चार जलधाराएं लोप हो चुकी है और भगवान का अखंड अभिषेक करने वाली जलधारा सतत प्रवाहित है।
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नीललोहित शिवलिंग
जटाशंकर महादेव पर नीले व लाल रंग की धारियां हैं, इसलिए इसे नीललोहित शिवलिंग भी कहा जाता है। मंदिर की छत से सटी चट्टान पर बिल्प पत्र का वृक्ष है, इसलिए बिल्वपत्र और जल से भगवान का अखंड अभिषेक होता है। इस संबंध में वाग्योग चेतना पीठम् के संचालक मुनि पंडित रामाधार द्विवेदी कहते हैं कि जटाशंकर की जलधारा और नर्मदा जल का स्वाद एक है और धाराजी में धावडी कुंड में जब वेग से जल गिरता था तब वह चट्टानों में स्थान बनाता था।

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यहां की लोक मान्यता के अनुसार चंद्रकेश्वर तीर्थ पर अत्रि ऋषि के पुत्र चंद्रमा का आश्रम था, जो कालांतर में च्यवन ऋषि की तपोभूमि बना और चंद्रमा ने जटायु की मदद की थी। इससे जाहिर है कि अनादिकाल में यहां पर जटायु ने तप किया था। जलधारा के मुहाने पर लगा गोमुख लगभग 200 वर्ष पूर्व बागली रियासत के राजपुरोहित पंडित सोमेश्वर त्रिवेदी ने स्थापित करवाया था।

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सावन माह में होता है अखंड महारुद्राभिषेक
इस तीर्थ पर श्रावण मास में पिछले15 वर्षों से अखंड महारुद्राभिषेक हो रहा है। इसमें  भगवान जटाशंकर का महारुद्राभिषेक, पार्थिव पूजन, महामृत्युंजय मंत्रों का जाप, पंचाक्षर मंत्र जाप, सहस्त्रार्चन और हवन आदि क्रियाएं जारी हैं। साथ ही पठानकोट हमले और आतंकी हमलों में शहीद सैनिकों की आत्मशांति के लिए गीता पाठ एवं हवनात्मक क्रियांए भी हो रही हैं। श्रावण मास में 51 हजार पार्थिव लिंगों का निर्माण और पूजन भी होता है।
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सभी मनोकामनाएं होती हैं पूरी 
मान्यता है कि मनोरथ सिद्ध करने के लिए सच्चे मन से भगवान जटाशंकर का अभिषेक करने के बाद पति-पत्नी या कोई भी श्रद्धालु मंदिर की दीवारों पर स्वास्तिक चिन्ह को गोबर से उल्टा उकेरता है तो उसकी मनोकामना पूर्ण होती है। साथ ही मनोकामना पूर्ण होने के बाद उसे उन उल्टे स्वास्तिक को सीधा करने के लिए तीर्थ पर फिर से आना होता है।
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