Kakori Conspiracy: 9 अगस्त को काकोरी कांड के 100 वर्ष पूरे, ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ने के लिए क्रांतिकारियों ने लूटा सरकार का खजाना

Edited By Updated: 09 Aug, 2025 06:38 AM

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Kakori train robbery: काकोरी कांड स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक चिर स्मरणीय स्वर्णिम घटना है, जिसकी पूरी योजना क्रांतिवीर राम प्रसाद बिस्मिल ने बनाई थी। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारियों द्वारा ब्रिटिश राज के विरुद्ध भयंकर युद्ध...

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Kakori train robbery: काकोरी कांड स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक चिर स्मरणीय स्वर्णिम घटना है, जिसकी पूरी योजना क्रांतिवीर राम प्रसाद बिस्मिल ने बनाई थी। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारियों द्वारा ब्रिटिश राज के विरुद्ध भयंकर युद्ध छेड़ने की इच्छा से हथियार खरीदने के लिए ब्रिटिश सरकार का ही खजाना लूट लेने की एक ऐतिहासिक घटना थी, जो 9 अगस्त, 1925 को घटी। इसने ब्रिटिश शासन के खिलाफ क्रांतिकारियों के संघर्ष को उजागर किया और स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई दिशा दी।

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हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के क्रांतिकारियों ने अपने शौर्य, संकल्प, साहस, स्वातंत्र्यप्रेम एवं त्याग का अद्भुत परिचय देते हुए 08 डाऊन, सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन को रोक कर ब्रिटिश सरकार के खजाने पर कब्जा कर लिया था।

रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने ट्रेन से 4679 रुपए, 1 आना और 6 पाई लूट लिए। इस घटना से क्रांतिकारी गतिविधियों को नई ऊर्जा मिली, जो ब्रिटिश हुकूमत के लिए बहुत बड़ी चुनौती थी।

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क्रांतिकारी आंदोलन चलाने के लिए धन एकत्र करने की दृष्टि से, 9 अगस्त 1925 को सायंकाल के समय क्रांतिकारी संगठन के 10 सदस्यों ने काकोरी स्टेशन से ट्रेन में प्रवेश किया। लखनऊ से पहले काकोरी रेलवे स्टेशन पर रुक कर जैसे ही गाड़ी आगे बढ़ी, क्रांतिकारियों ने चेन खींचकर उसे रोक लिया और रक्षक के डिब्बे से सरकारी खजाने का बक्सा नीचे गिरा दिया।

पहले तो उसे खोलने का प्रयास किया गया, किन्तु जब वह नहीं खुला तो अशफाक उल्ला खां ने अपना माऊजर (पिस्तौल) मन्मथनाथ गुप्त को पकड़ा दिया और हथौड़ा लेकर बक्सा तोड़ने में जुट गए।

मन्मथनाथ गुप्त ने उत्सुकतावश व जल्दबाजी में माऊजर का ट्रिगर दबा दिया जिससे छूटी गोली अहमद अली नामक यात्री को लग गई, जो मौके पर ही ढेर हो गया। सिक्कों व नोटों से भरे चमड़े के थैले चादरों में बांधकर शीघ्रतावश वहां से भागने में एक चादर वहीं छूट गई। अगले दिन समाचार पत्रों के माध्यम से यह समाचार पूरे संसार में फैल गया।  हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के केवल 10 सदस्यों ने इस पूरी घटना को अंजाम दिया था।

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ट्रेन डकैती में जर्मनी के बने चार माऊजर काम में लाए गए थे। इन पिस्तौलों की विशेषता यह थी कि इनमें बट के पीछे लकड़ी का बना एक और कुंदा लगाकर रायफल की तरह इस्तेमाल किया जा सकता था।

इस घटना द्वारा अंग्रेजी शासन को चुनौती देने के अर्थ बहुत व्यापक निकले। एक ओर जहां क्रांतिकारी गतिविधियों को नई ऊर्जा मिली और उनमें तीव्रगति से वृद्धि हुई, वहीं दूसरी ओर अंग्रेज सरकार इस घटना से पूरी तरह हिल गई और उसने इसे बहुत गंभीरता से लिया। 4679 रुपए की लूट पर कार्रवाई के लिए सरकारी कवायद में 8 लाख रुपए से अधिक खर्च हुए।

पुलिस को घटनास्थल पर मिली चादर में लगे धोबी के निशान से इस बात का पता चल गया कि चादर शाहजहांपुर के किसी व्यक्ति की है। शाहजहांपुर के धोबियों से पूछने पर मालूम हुआ कि चादर बनारसी लाल की है। बिस्मिल के सांझीदार बनारसी लाल से मिल कर पुलिस ने इस डकैती का सारा भेद प्राप्त कर लिया।

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काकोरी कांड के मुख्य प्रकरण का फैसला सुनाया जा चुका था। न्यायालय में काकोरी कांड का पूरक प्रकरण दर्ज हुआ और 13 जुलाई, 1927 को सरकार के विरुद्ध साजिश रचने का संगीन आरोप लगाते हुए अशफाक उल्ला खां को फांसी तथा शचीन्द्रनाथ बख्शी को आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई। उनमें से 14 को साक्ष्य न मिलने के कारण रिहा कर दिया गया।

4 क्रांतिकारियों राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह को फांसी दी गई और 2 को कालापानी जबकि 16 अन्य लोगों को 4 से 14 वर्ष तक की अलग-अलग सजाएं सुनाई गईं।

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सैशन जज के फैसले के खिलाफ 18 जुलाई, 1927 को अवध चीफ कोर्ट में अपील दायर की गई। चीफ कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सर लुइस शर्ट और विशेष न्यायाधीश मोहम्मद रजा के सामने दोनों मामले पेश हुए। जगतनारायण ‘मुल्ला’ को सरकारी पक्ष रखने का काम सौंपा गया जबकि सजायाफ्ता क्रांतिकारियों की ओर से के.सी. दत्त, जयकरणनाथ मिश्र व कृपाशंकर हजेला ने क्रमश: राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह व अशफाक उल्ला खां की पैरवी की।

राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने अपनी पैरवी खुद की क्योंकि सरकारी खर्चे पर उन्हें लक्ष्मीशंकर मिश्र नामक एक बड़ा साधारण-सा वकील दिया गया था, जिसे लेने से उन्होंने साफ मना कर दिया। बिस्मिल ने चीफ कोर्ट के सामने जब धाराप्रवाह अंग्रेजी में फैसले के खिलाफ बहस की तो सरकारी वकील जगतनारायण मुल्ला बगलें झांकते नजर आए। लखनऊ जेल में राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’ गीत लिखा। काकोरी में शहीदों की स्मृति में एक स्मारक बनाया गया है।  

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