Jatayu Ramayana Story: रामायण में जटायु कौन थे? राजा दशरथ से मित्रता और बलिदान की अमर कथा

Edited By Updated: 19 Dec, 2025 08:56 AM

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Jatayu Ramayan Story: रामायण केवल देवताओं और राजाओं की कथा नहीं, बल्कि उन महान आत्माओं का भी स्मरण है जिन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। ऐसी ही एक दिव्य और प्रेरणादायक कथा है गिद्धराज जटायु की, जिन्होंने माता सीता की रक्षा...

Jatayu Ramayan Story: रामायण केवल देवताओं और राजाओं की कथा नहीं, बल्कि उन महान आत्माओं का भी स्मरण है जिन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। ऐसी ही एक दिव्य और प्रेरणादायक कथा है गिद्धराज जटायु की, जिन्होंने माता सीता की रक्षा करते हुए रावण से युद्ध किया और अपने प्राणों की आहुति दे दी। लेकिन जटायु केवल एक पक्षी नहीं थे। वे धर्म, मित्रता और त्याग के सजीव प्रतीक थे।

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जटायु कौन थे?
शास्त्रों के अनुसार, जटायु गरुड़ वंश के महान गिद्ध थे। उनके पिता अरुण सूर्यदेव के सारथी थे और गरुड़ उनके पितृव्य (चाचा) थे। इस प्रकार जटायु दिव्य वंश से उत्पन्न, अपार बलशाली और धर्मनिष्ठ थे। उनमें तीव्र वेग, शौर्य और अन्याय के विरुद्ध खड़े होने का अद्भुत साहस था। इसी कारण वे माता सीता के हरण के समय मौन दर्शक नहीं बने, बल्कि धर्म की रक्षा के लिए रावण से भिड़ गए।

राजा दशरथ और जटायु की मित्रता कैसे हुई?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार राजा दशरथ वन में तपस्या हेतु गए थे। उस समय कुछ राक्षसों ने उन पर आक्रमण करने का प्रयास किया। जटायु ने संकट को भांप लिया और तपस्या में लीन दशरथ की रक्षा की। जब राजा को यह ज्ञात हुआ, तो वे जटायु के पराक्रम और धर्मनिष्ठा से अत्यंत प्रभावित हुए।

यहीं से दोनों के बीच गहरी मित्रता हुई। दोनों ने यह मौन वचन लिया कि संकट में एक-दूसरे के परिवार की रक्षा करेंगे। इसी कारण वनवास के दौरान जब श्रीराम से जटायु की भेंट हुई, तो जटायु ने स्वयं को दशरथ का मित्र बताया और राम ने उन्हें पिता तुल्य सम्मान दिया।

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सीता हरण के समय जटायु का बलिदान
जब रावण माता सीता का हरण कर रहा था, तब जटायु ने उसे रोका और स्वयं को दशरथ का मित्र तथा राम का सेवक बताया। भीषण युद्ध हुआ, परंतु रावण ने छलपूर्वक जटायु के पंख काट दिए। घायल अवस्था में भी जटायु ने अंतिम सांस तक धर्म निभाया और श्रीराम को सीता हरण की पूरी जानकारी दी।

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श्रीराम द्वारा जटायु का अंतिम संस्कार
जटायु के निधन पर श्रीराम अत्यंत व्यथित हुए। उन्होंने जटायु को अपने पिता के समान मानते हुए गोदावरी नदी के तट पर उनका अंतिम संस्कार किया और पिंडदान किया। शास्त्रों के अनुसार, श्रीराम के हाथों अंतिम संस्कार होने से जटायु को मोक्ष की प्राप्ति हुई।

जटायु की कथा यह सिखाती है कि धर्म की रक्षा के लिए किया गया बलिदान अमर हो जाता है। जटायु न केवल एक वीर योद्धा थे, बल्कि सच्चे मित्र, भक्त और धर्मरक्षक भी थे।

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