Kundli Tv- कोई भी रत्न पहनने से पहले इन बातों का रखें ध्यान

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 04 Sep, 2018 09:45 AM

keep these things carefully before wearing any gemstone

ग्रहों के अनिष्ट से बचने के लिए अथवा ग्रहों के शुभ प्रभाव बढ़ाने के लिए रत्नों के धारण का प्रचलन प्राचीन काल से होता आ रहा है।

ये नहीं देखा तो क्या देखा (देखें Video)
ग्रहों के अनिष्ट से बचने के लिए अथवा ग्रहों के शुभ प्रभाव बढ़ाने के लिए रत्नों के धारण का प्रचलन प्राचीन काल से होता आ रहा है। भारतीय ज्योतिष प्रणाली में प्राय: प्रत्येक ज्योतिषी अपने मार्गदर्शन में अधिकता से इनका उपयोग बताया करते हैं किन्तु रत्नों के उपयोग में बहुत अधिक सावधानी की आवश्यकता है।
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रत्नों का उपयोग जहां एक ओर बहुत अधिक लाभकारी है वहीं बिना सावधानी बिना जन्म कुंडली के गहन चिंतन के अभाव में खतरनाक भी सिद्ध हो सकता है। मात्र नाम राशि देखी और रत्न धारण कर लिया, किसी ने बता दिया भाग्येश गुरु है, कमजोर अवस्था में है इसलिए भाग्य उदय नहीं हो रहा है। भाग्य की बढ़ौतरी के लिए पुखराज धारण कर लें या लग्नेश शुक्र कमजोर है, शत्रु राशि पर है या इस कारण से कमजोर है, आप तुरंत डायमंड पहन लें, इसका उपरत्न जरकन ही पहन लें, यह उचित नहीं है। 
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रत्नों का वास्तव में प्रभाव होता है इनमें संबंधित ग्रहों की रश्मियां समाहित रहती हैं। अत: यह निश्चित ही प्रभाव बढ़ाने में कारगर है किन्तु ये संबंधित भाव का शुभ ही प्रभाव बढ़ाएंगे, यह निश्चित नहीं है। इसके लिए एक तो रत्न का दोष रहित होना आवश्यक है अर्थात रत्न चाहे बिल्कुल असली हो या असली रत्न के उप रत्न हों, वे साफ होने चाहिएं। यह देख लेना चाहिए कि रत्न-उपरत्न में कोई चीर आदि तो दिखाई नहीं दे रहा है, वह किसी प्रकार से खंडित तो नहीं है, साथ ही छींटें रहित भी है या नहीं आदि बातों की पूरी तरह जांच कर लेनी चाहिए या किसी रत्न विशेषज्ञ को दिखाकर पूछ लेना चाहिए। 
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यह तो रत्न धारण करने के बारे में एक पक्ष हुआ। इससे भी शक्तिशाली जो पक्ष है उसके अनुसार आप रत्न द्वारा अपनी जन्मकुंडली के कौन-से भाव के शुभ प्रभाव को बढ़ाना चाहते हैं। जिस भाव के शुभ प्रभाव को आप बढ़ाना चाहते हैं उस भाव से संबंधित दूसरी राशि किस भाव का प्रतिनिधित्व कर रही है, यह देखकर रत्न धारण करना पहले बताई सावधानी से भी अधिक सावधानी बरतने योग्य बात है। 
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भारतीय ज्योतिष विज्ञान के अनुसार नौ ग्रहों में सूर्य, चन्द्र को छोड़कर हर एक ग्रह को दो राशियों का स्वामी माना गया है अर्थात सूर्य चन्द्र के अलावा हर ग्रह जन्मकुंडली के दो भावों से संबंधित है यानी उनका स्वामी है। यदि कुंडली के किसी भाव के प्रभाव को बढ़ाना है तो उस भाव में जो राशि है, उसके स्वामी से संबंधित ग्रह के अनुसार रत्न धारण करवाया जाता है। यह उस स्थिति में तो सही कहा जा सकता है जब वह ग्रह कुंडली के ऐसे दूसरे भाव का भी स्वामी हो, जोकि शुभ ही समझा जाता हो, जैसे कोई ग्रह केन्द्र त्रिकोण दोनों ही शुभ भावों का स्वामी हो। 

इसे उदाहरण द्वारा भी समझें जैसे मेष लग्न है जिसका स्वामी मंगल ग्रह है। इस भाव का स्वामी मंगल शत्रु राशि पर या कुंडली में ऐसी पोजीशन में जिसके कारण हम इसे कमजोर समझ रहे हैं, जिसके लिए रत्न के रूप में मूंगा धारण एक उपचार है। निश्चित ही अच्छा मूंगा मंगल ग्रह को मजबूती दे सकता है किन्तु यहां प्रथम भाव (लग्न) के साथ मंगल के स्वामित्व से संबंधित दूसरी राशि राशि वृश्चिक जो कुंडली के आठवें भाव में है, के प्रभाव में भी इससे बढ़ौतरी होगी, परिणामत: मंगल की दशा अन्तर्दशा में भी शुभ एवं अशुभ दोनों तरह के फल प्राप्त होंगे। 
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वहीं यदि मंगल ऐसे दो भावों का स्वामी हो, जो दोनों ही भाव शुभ समझे जाते हों जैसे लग्न कर्क हो तब मंगल केन्द्र त्रिकोण (पंचम एवं नवम) दोनों शुभ भावों का स्वामी होगा, मूंगा धारण करने से दोनों ही शुभ भावों के प्रभाव में बढ़ौतरी होगी जोकि किसी भी दृष्टि से अनुचित नहीं है। अत: किसी भी भाव के शुभ प्रभाव को बढ़ाने या उसके स्वामी ग्रह के शुभ प्रभाव को बढ़ाने में इस एक पक्ष को सबसे अधिक ध्यान में रख कर रत्न धारण करना चाहिए अन्यथा लाभ की जगह हानि हो सकती है।  
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