Name और Fame की चाहत है तो इस दिशा में रखें जल

Edited By ,Updated: 30 Jan, 2017 01:57 PM

keep water in this direction

पृथ्वी पर ज्यादातर जल का प्रभाव है और हर पूर्णिमा के दिन समुद्र में ज्यादा पानी का प्रभाव देखा गया है। जल के दो प्रकार प्रमुख हैं- प्रथम वह जो तीर्थ रूप में मंदिर में दिया जाता है और उसे पीने मात्र

पृथ्वी पर ज्यादातर जल का प्रभाव है और हर पूर्णिमा के दिन समुद्र में ज्यादा पानी का प्रभाव देखा गया है। जल के दो प्रकार प्रमुख हैं- प्रथम वह जो तीर्थ रूप में मंदिर में दिया जाता है और उसे पीने मात्र से आशीर्वाद मिलता है और एक वह जल जिसमें मुम्बई डूब गई थी। वास्तुशास्त्र में जल का सही रूप से उसका वास करवाने से वह जल तीर्थ में बदल जाता है और हमें आशीर्वाद देता रहता है पर गलत जगह में जल का वास करने से हमारे जीवन को डूबने से कोई नहीं बचा सकता। जल तत्व में ध्यान करने योग्य बीजाक्षर है। यह तत्व अद्र्ध चंद्राकार है। इसका ध्यान करने वाले को न भूख लगती है और न प्यास लगती है। इससे व्यक्ति में जल में डुबकी लगाने व तैरने की क्षमता बढ़ जाती है। जल से भय नहीं लगता।

 

घातक हो सकता है गलत जगह में जल का वास 
वास्तु शास्त्र में सही दिशा में जल रखने से वह जल की ऊर्जा जीवन में ऐश्वर्य प्रदान किए बिना नहीं रहती और जिनको अपना नाम करना हो तो पूर्व दिशा में गणित करने के बाद उसे स्थापित करने से जीवन में नेम और फेम दोनों ही सहज से प्राप्त हो जाते हैं। परंतु इसका ठीक से ज्ञान न हो तो यह जल जीवन को डुबो भी देता है। 


उत्तर दिशा तथा पूर्व दिशा के जल के स्वभाव व गुण-धर्म भिन्न-भिन्न हैं। इसी प्रकार पश्चिम व दक्षिण में रखे हुए जल के स्वभाव में गुणधर्म भिन्न हैं। 70 प्रतिशत पानी हमारे शरीर में है और भूलोक पर भी 70 प्रतिशत पानी ही है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जो शरीर के भीतर है वैसा ही बाहर है। पूरा जीवन पांच तत्व के लय में बंधा हुआ है। जब किसी भी तत्व की लय टूटती है तो हमारे भीतर की लय भी सूक्ष्म में टूटती ही है और जो लय के गुणधर्म हैं उस तत्व के परिणाम हमें भोगने पड़ते हैं।


इस जल को सही दिशा में लाकर हम जीवन में बहुत कुछ पा सकते हैं, इसलिए ये जल तत्व अपने आप में सारी प्रकृित को समाए हुए हैं। इस जल तत्व को हम नजरअंदाज नहीं कर सकते। हमारे जीवन में जल का दृष्टि होना ही काफी है। यह तत्व बिगड़ते ही मानो जीवन में ग्रहण लगना प्रारंभ हो जाता है।

।। वं बीज वारुण ध्यायेतत्वमद्धशशिप्रभम।
क्षुत्तृष्णादिसहिष्णुत्वं जल मध्ये च मज्जनम।।

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